सलिल सृजन सितंबर २१
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कायस्थों के कुलनाम
कायस्थों को बुद्धिजीवी, मसिजीवी, कलम का सिपाही आदि विशेषण दिए जाते रहे हैं। भारत के धर्म-अध्यात्म, शासन-प्रशासन, शिक्षा-समाज हर क्षेत्र में कायस्थों का योगदान सर्वोच्च और अविस्मरणीय है। कायस्थों के कई कुलनाम व उपनाम उनके कार्य से जुड़े रहे हैं। पुराण कथाओं में भगवान चित्रगुप्त के १२ पुत्र चारु, सुचारु, चित्र, मतिमान, हिमवान, चित्रचारु अरुण,अतीन्द्रिय,भानु, विभानु, विश्वभानु और वीर्यवान कहे गए हैं। ये सब विशेषताएँ बताते हैं। नाम चारु = सुंदर, सुचारु = सुदर्शन, चित्र = मनोहर, मतिमान = बुद्धिमान, हिमवान = समृद्ध, चित्रचारु = दर्शनीय, अरुण = प्रतापी, अतीन्द्रिय = ध्यानी, भानु = तेजस्वी, विभानु = प्रकाशक, विश्वभानु = अँधेरा मिटानेवाला तथा वीर्यवान = बहु संततिवान। कायस्थों के अवदान को देखते हुए उन्हें समय-समय पर उपनाम या उपाधियाँ दी गईं। कुछ कुलनाम निम्न हैं।
सक्सेना - शक आक्रमणकारियों की सेनाओं को परसर करनेवाले, शक (संदेहों) का समाधान करने वाले।
श्रीवास्तव- वास्तव में श्री (लक्ष्मी) सम्पन्न।
खरे- खरा (शुद्ध) आचार-व्यवहार रखनेवाले।
भटनागर- सभ्य योद्धा, देश-समाज के लिए युद्ध करनेवाले।
सहाय- सबकी सहायता हेतु तत्पर रहने वाले।
रायजादा- शासकों को बुद्धिमत्तापूर्णराय देनेवाले।
कानूनगो- कानूनों का ज्ञान रखनेवाल्व, कानून बनानेवाले।
राय- शासकों को राय-मशविरा देनेवाले।
बख्शी- जिन्हें बहुमूल्य योगदान के फलस्वरूप शासकों द्वारा जागीरें बख्शीश (ईनाम) के रूप में दी गईं।
व्यवहार-ब्योहार- सद व्यवहार वृत्ति से युक्त।
श्रीवास्तव- वास्तव में 'श्री' (धन-विद्या) संपन्न। नारायण- विष्णु भक्त।
रंजन - कला निष्णात।
सारंग- समर्पित प्रेमी, सरंग पक्षी अपने साथ का निधन होने पर खुद भी जान दे देता है।
बहादुर- पराक्रमी।
प्रसाद- ईश्वरीय कृपया से प्राप्त, पवित्र, श्रेष्ठ।
वर्मा- अपने देश-समाज की रक्षा करनेवाले।
सिंह/सिन्हा/सिन्हे/सिंघे/जयसिन्हा/ जय सिंघे- सिंह की तरह।
माथुर- मथुरा निवासी।
कर्ण- राजा कर्ण के विश्वासपात्र तथा उनके नाम पर शासन करनेवाले।
राढ़ी- राढ़ी नदी पार कर बंगाल-उड़ीसा आदि में शासन व्यवस्था स्थापित करनेवाले।
दास- सेवा वृत्ति (नौकरी) करनेववाले।
घोष- इनका जयघोष किया जाता रहा।
शाह/साहा- राजसत्ता युक्त।
गुणाधारित उपनाम विविध विविध जातियों के गुणवानों द्वारा प्रयोग किए जाने के कारण वर्मा जाटों, माथुर वैश्यों, सिंह बहादुर आदि राजपूतों में भी प्रयोग किए जाते हैं। कायस्थों में गोत्र तथा अल्ल (वैश्यों में आँकने) भी होते हैं।
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सॉनेट
राजू भाई!
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संग हमेशा रहे ठहाके
झुका न पाए तुमको फाके
उन्हें झुकाया राजू भाई!
खुद को पाया राजू भाई!
आम आदमी के किस्से कह
जन गण-मन में तुम पाए रह
युग-सच पाया राजू भाई!
हो कठोर क्यों गया ईश्वर?
रहे अनसुने क्रंदन के स्वर
दूर धरा से गया गजोधर
चाहा-पाया राजू भाई!
किया पराया राजू भाई!
बहुत रुलाया राजू भाई!
२१-९-२०२२
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त्रिपदिक (हाइकु) गीत
बात बेबात
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बात बेबात
कहते कटी रात
हुआ प्रभात।
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सूर्य रश्मियाँ
अलस सवेरे आ
नर्तित हुईं।
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हो गया कक्ष
आलोकित ज्यों तुम
प्रगट हुईं।
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कुसुम कली
परिमल बिखेरे
दस दिशा में -
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मन अवाक
सृष्टि मोहती
छबीली मुई।
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परदा हटा
बज उठी पायल
यादों की बारात।
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दे पकौड़ियाँ
आँखें, आँखों में झाँक
कुछ शर्माईं ?
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गाल गुलाबी
अकहा सुनकर
आप लजाईं।
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अघट घटा
अखबार नीरस
लगने लगा-
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हौले से लिया
हथेली को पकड़
छुड़ा मुस्काईं।
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चितवन में
बही नेह नर्मदा
सिहरा गात
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चहक रही
गौरैया मुंडेर पर
कुछ गा रही।
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फुदक रही
चंचल गिलहरी
मन भा रही।
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झोंका हवा का
उड़ा रहा आँचल
नाचतीं लटें-
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खनकी चूड़ी
हाथ न आ, ललचा
इठला रही।
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फ़िज़ा महकी
घटा घिटी-बरसी
गुँजा नग़मात
२१-९-२०२०
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दोहा सलिला:
कुछ दोहे अनुप्रास के
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अजर अमर अक्षर अमित, अजित असित अवनीश
अपराजित अनुपम अतुल, अभिनन्दन अमरीश
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अंबर अवनि अनिल अनल, अम्बु अनाहद नाद
अम्बरीश अद्भुत अगम, अविनाशी आबाद
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अथक अनवरत अपरिमित, अचल अटल अनुराग
अहिवातिन अंतर्मुखी, अन्तर्मन में आग
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आलिंगन कर अवनि का, अरुण रश्मियाँ आप्त
आत्मिकता अध्याय रच, हैं अंतर में व्याप्त
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अजब अनूठे अनसुने, अनसोचे अनजान
अनचीन्हें अनदिखे से,अद्भुत रस अनुमान
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अरे अरे अ र र र अड़े, अड़म बड़म बम बूम
अपनापन अपवाद क्यों अहम्-वहम की धूम?
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अकसर अवसर आ मिले, बिन आहट-आवाज़
अनबोले-अनजान पर, अलबेला अंदाज़
२१-९-२०१३
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हाइकु गीत :
प्रात की बात
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सूर्य रश्मियाँ
अलस सवेरे आ
नर्तित हुईं.
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शयन कक्ष
आलोकित कर वे
कहतीं- 'जागो'.
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कुसुम कली
लाई है परिमल
तुम क्यों सोए?
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हूँ अवाक मैं
सृष्टि नई लगती
अब मुझको.
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ताक-झाँक से
कुछ आह्ट हुई,
चाय आ गई.
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चुस्की लेकर
ख़बर चटपटी
पढ़ूँ, कहाँ-क्या?
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अघट घटा
या अनहोनी हुई?
बासी खबरें.
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दुर्घटनाएँ,
रिश्वत, हत्या, चोरी,
पढ़ ऊबा हूँ.
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चहक रही
गौरैया, समझूँ क्या
कहती वह?
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चें-चें करती
नन्हीं चोचें दिखीं
ज़िन्दगी हँसी.
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घुसा हवा का
ताज़ा झोंका, मुस्काया
मैं बाकी आशा.
*
मिटा न सब
कुछ अब भी बाकी
उठूँ-सहेजूँ.
२१.९.२०१०
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