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मंगलवार, 17 सितंबर 2024

विश्व कीर्तिमानधारी ग्रंथों के प्रणयन में जबलपुर का अवदान

विश्व कीर्तिमानधारी ग्रंथों के प्रणयन में जबलपुर का अवदान

गीतिका श्रीव
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            संस्कारधानी जबलपुर का हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में अवदान अमूल्य और चिरस्मरणीय रहा है। संस्कारधानी कहे जाने वाले इस नगर को छायावाद की एक स्तंभ, 'हिंदी की आधुनिक मीरा' विशेषण से विभूषित की गई महीयसी महादेवी वर्मा की ननिहाल तथा हिंदी के प्रथम मान्य वैयाकरण कांटा प्रसाद गुरु, एक भारतीय आत्मा माखन लाल चतुर्वेदी, संपादक प्रवर महावीर प्रसाद द्विवेदी, ख्यात टीकाकार रामानुज लाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलहरीवी', प्रकांड मेधा के धनी महादेव प्रसाद 'सामी', केशव प्रसाद पाठक, पन्नालाल श्रीवास्तव 'नूर, भवानी प्रसाद मिश्र, ब्योहर राजेन्द्र सिंह। लक्ष्मण सिंह चौहान, सुभद्रा कुमारी चौहान, द्वारका प्रसाद मिश्र, सेठ गोविंद दास तथा आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी आदि महान विभूतियों की कर्म भूमि होने का सौभाग्य मिला है। इस विरासत को ग्रहण कार वर्तमान समय में जबलपुर के रचनाकार हिंदी के विकास में अपना योगदान देते हुए विश्व कीर्तिमान धारी ग्रंथों के प्रयणन में सहभागी होकर नगर को नया गौरव प्रदान कर रहे हैं।

भारत को जानें : राष्ट्रीय एकता का महाग्रंथ

            गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से सम्मानित ग्रंथ 'भारत को जानें' के लेखन में ४६६ रचनाकारों ने अपना योगदान किया है। इस ग्रंथ में भारत के सभी २८ राज्यों और ८ केंद्र शासित प्रदेशों की जन सांख्यिकी, संस्कृति-कला-साहित्य, इतिहास, प्राकृतिक सौंदर्य, भौगोलिक संरचना, प्रमुख व्यक्तित्व तथा उपलब्धियों पर दोहों-चौपाइयों के माध्यम से प्रकाश डाला गया है। ग्रंथ की रूपरेखा निर्धारण में तंजानिया निवासी संपादक डॉ. ममता सैनी श्रीमती के साथ श्रीमती विनीता श्रीवास्तव तथा आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' का पूर्ण सहयोग रहा। सलिल जी ने अपने साहित्यिक समूह विश्ववाणी हिंदी संस्थान में सक्रिय रहे रचनाकारों को इस पुनीत कार्य से जुड़ने हेतु प्रेरित किया। फलत: जबलपुर से सलिल जी और विनीता जी के अतिरिक्त बसंत कुमार शर्मा, सुरेंद्र सिंह पवार, डॉ. साधना वर्मा, छाया सक्सेना 'प्रभु', मीना भट्ट, हरि सहाय पाण्डेय, उदय भानु तिवारी 'मधुकर', कृष्णा राजपूत, डॉ. अनिल कुमार कोरी, विनीता पैगवार 'विधि', उमा मिश्रा 'प्रीति', अनुराधा गर्ग 'दीप्ति' के अतिरिक्त अन्य नगरों के २० रचनाकारों ने अपने भाव सुमनों से इस ग्रंथ को अलंकृत किया। सलिल जी का सहयोग इस ग्रंथ संबंधी कार्यक्रमों के लिए गीतकार के रूप में भी रहा।

आयुर्वेद को जानें : पारंपरिक ज्ञान की पताका

            आयुर्वेद भारत की सनातन ज्ञान परंपरा का मानवता को कालजयी उपहार है। डॉ. ममता सैनी के संपादन में इस विश्व कीर्तिमानधारी ग्रंथ को मूर्तरूप देने वाले १२५ रचनाकारों में जबलपुर से आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', बसंत शर्मा, विनीता श्रीवास्तव, मनोज शुक्ल, मिथलेश बड़गैया आदि का योगदान महत्वपूर्ण रहा।

छंदबद्ध भारत का संविधान : राष्ट्रीयता का पुराण

            संविधान किसी देश को एक सूत्र में पिरोने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। यह नागरिकों, शासन और प्रशासन के कर्तव्यों और अधिकारों का निर्धारण करता है। खेद का विषय है की अधिकांश भारतीयों के घरों में अनेक धार्मिक और साहित्यिक ग्रंथ होते हैं जिन्हें समय समय पर पढ़ जाता है किंतु भारत का संविधान बमुश्किल १% घरों में है। यही कारण है की भारतीयों में संविधान और कानूनों के प्रति जागरूकता और सम्मान भाव की कमी है। इस अभाव की पूर्ति का उद्देश्य लेकर डॉ. ओंकार साहू 'मृदुल', डॉ.सपना दत्ता, डॉ. मधु शंखढर 'स्वतंत्र' तथा आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने इस सारस्वत अनुष्ठान को पूर्ण किया। इस महत्वपूर्ण कार्य में मध्य प्रदेश के १० रचनाकारों में से ७ जबलपुर से रहे। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', सुनीता परसाई, कृष्णा राजपूत, अनुराधा पारे, अनुराधा गर्ग, भारती नरेश पाराशर तथा आशा निर्मल जैन (सीहोरा) इस ग्रंथ की रचना में महत्वपूर्ण योगदान किया।

हिंदी सोनेट सलिला : सृजन नर्मदा विमला

            विश्व कीर्तिमान धारी ग्रंथों की परिकल्पना, परियोजन और मूर्तन में नींव की तरह भूमिका निभा रहे सलिल जी के मन में जबलपुर को केंद्र में रखकर एक ग्रंथ तैयार करने का विचार आया। हिंदी साहित्य में इटेलियन छंद सॉनेट को जीवंत करने के लिए ख्यात छंदज्ञ सलिल जी ने स्वयं अध्ययन कर सॉनेट के इतिहास, रचना विधान, प्रकारों आदि का अध्ययन किया, सैंकड़ों सॉनेट रचे, हिंदी पिंगल की मान्यताओं व विधानों के अनुसार मानक निर्धारण कार अपने ५० साथियों से ५०-५० सॉनेट लिखवाए और तब उनमें से ३२ का चयन कार उनके १०-१० प्रतिनिधि सॉनेट इस ग्रंथ में प्रकाशित किए। इस एक ग्रंथ ने ३ कीर्तिमान (१) हिंदी का प्रथम साझा सॉनेट संकलन (शेक्सपीरियन शैली), (२) प्रथम संकलन जिसमें ३२ सॉनेटकार सम्मिलित हैं तथा (३) प्रथम संकलन जिसमें ३२१ सॉनेट एक साथ प्रकाशित हुए हैं, स्थापित किए हैं। इस ग्रंथ में जिले से आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', डॉ. संतोष शुक्ला, छाया सक्सेना 'प्रभु', सुरेंद्र सिंह पवार, हरि सहाय पांडे, सुनीता परसाई, इं. विपिन श्रीवास्तव, मनीष सहाय 'सुमन', भारती नरेश पाराशर तथा आशा निर्मल जैन ने सहभागिता कर हिंदी साहित्य में सॉनेट छंद को स्थापित करने का सफल प्रयास किया है।

छंद सोरठा खास : पढ़ें अधर रख हास

            विश्व कीर्तिमान धारी उक्त प्रयासों के अतिरिक्त व्यक्तिगत रूप से विश्व कीर्तिमान स्थापित करने का श्रेय विश्ववाणी हिंदी संस्थान की संरक्षक डॉ. संतोष शुक्ला मिल जिन्होंने हिंदी की प्रथम सोरठा सतसई "छंद सोरठा खास' की रचना अपने साहित्यिक गुरु आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' के मार्गदर्शन में की इस ग्रंथ का सुंदर आवरण नगर की सिद्धहस्त कलाकार, सुकवि स्व. जवाहर लाल चौरसिया 'तरुण' की पुत्री अस्मिता शैली ने बनाया है।

            उक्त सभी महत्वपूर्ण प्रयासों तथा उनके साकार होने में जबलपुर के रचनाकारों की भूमिका की सराहना की जानी चाहिए। इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि यह क्रम निरंतर चलता रहे और जबलपुर के साहित्यकार भारत की राजभाषा हिंदी के उन्नयन में सार्थक भूमिका निभाते रहें।
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संपर्क- द्वारा श्री प्रभात श्रीवास्तव, नृसिंह वार्ड, नरसिंहपुर 





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