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गुरुवार, 20 मई 2021

दोहों के रंग आँखके संग

दोहा सलिला:
दोहों के रंग आँख के संग
संजीव
*
आँख लड़ी झुक उठ मिली, मुंदी कहानी पूर्ण
लाड़ मुहब्बत ख्वाब सँग, श्वास-आस का चूर्ण
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आँख कहानी लघुकथा, उपन्यास रस छंद
गीत गजल कविता भजन, सुख-दुःख परमानंद
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एक आँख से देखते, धूप-छाँव जो मीत
वही उतार-चढ़ाव पर, चलकर पाते जीत
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धूल झोंकते आँख में, आँख बिछाकर लोग
चुरा-मिला आँखें दिखा, झूठ मनाते सोग
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कभी किसी की आँख का, बनें न काँटा आप
कभी आप की आँख में, सके न काँटा व्याप
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२०-५-२०१५ 

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