कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 28 जून 2018

साहित्य त्रिवेणी २३. रेल अभियांत्रिकी का अंग : छंद

२३. रेल अभियांत्रिकी का अंग : छंद
बसंत कुमार शर्मा
संपर्क: ३५४ रेल्वे डुप्लेक्स बंगला, फेथ वेली स्कूल के सामने, पचपेढ़ी, साउथ सिविल लाइंस, जबलपुर (म.प्र.) ४८२००१, चलभाष: ९७५२४ १५९०७।
*
  शिशु के जन्म के समय रोने की आवाज, माँ की मीठी लोरी से लेकर राम नाम सत्य की आवाज तक अगर हम किसी शब्द या शब्दों के समूह की ध्वनि को ध्यान से सुनें तो पायेंगे कि उसमें लय है, जो छंद का एक आवश्यक गुण है। छोटी-छोटी ध्वनियाँ जो आसपास हमें सुनाई देतीं हैं, उनमें भी एक लय होती है, गति-यति होती है। इन लयबद्ध ध्वनियों को सुनकर मन को सुकून मिलता है, आनंद होता है, मानव ही नहीं, अपितु पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों तक की कार्यदक्षता में अभूतपूर्व वृद्धि होती है। कोयल की पिहू-पिहू, पपीहे के पीहू, मोर की कूक सुनकर तो मन मन्त्र-मुग्ध हो जाता है। काव्य में इन ध्वनियों का प्रयोग आदिकाल से होता रहा है।छंद में कही गई बातें मन में सीधे बैठ जाती हैं, मन को झकझोर देती हैं। काव्य में छंद का अति महत्वपूर्ण स्थान है। कबीर के दोहे, तुलसी के दोहे और चौपाइयाँ, रसखान के सवैये जनमानस के पटल पर आज तक अंकित हैं।  
शिशु
अब बात करते हैं रेल की और उसमें छंदों के प्रयोग की, रेल जब चलती है तो उसकी छुक-छुक की आवाज जिसकी गति धीरे-धीरे बढ़ती है, एक छंद में ढलकर, लयबद्ध होकर ही निकलती है। रेल की पटरी को जब रख-रखाव के लिए ट्रैकमैन एक साथ उठाने के लिए आवाज लगाते हैं, उसमें भी एक लय होती है, जो लोहे की भारी पटरी को भी उठाने में उनको सक्षम बना देती है। उनकी यह एकजुटता देखते ही बनती है, यह छंद की शक्ति का ही कमाल है। यह भी देखा है कि 'हैया हो' या ऐसी ही अन्य निरर्थक ध्वनि एक साथ उच्चारते श्रमिक अपनी सामर्थ्य से भारी कार्य कर गुजरते हैं किंतु किसी कारण से उनकी लय भंग हो जाए तो अपेक्षाकृत हल्का काम भी नहीं कर पाते।
रेलवे में छंदों के माध्यम से भी विभिन्न सार्थक संदेश, जनता और रेल कर्मियों के बीच पहुँचाए जाते हैं। ये नारे, उक्तियाँ आदि भी छंद में ही होते हैं और सबकी जुबान पर चढ़े होते हैं। कर्मचारियों और श्रमिकों को इनसे कार्य संपादन की प्रेरणा मिलाती है। समय-समय पर रेल मजदूरों के आंदोलनॉन में नारों का प्रयोग किया जाता है। इनका व्यापक प्रभाव होता जो कार्यकर्ताओं में जोश भरने का कार्य करता है। यही छंद की शक्ति है। (इन नारों की दो सम तुकांती पंक्तियाँ हों तो उन्हें छंद स्वीकारने में किसी को कठिनाई न होगी किंतु द्विपदिक छंद की अर्धाली मान कर नारे को छंद कहना अजीब लगने के बाद भी सत्य है- सं.)
भारतीय रेल में प्रयुक्त किये जाने वाले नारे और उनमें प्रयोग किये गए छंदों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं: 'राष्ट्र की जीवन रेखा' -१३ मात्रिक छंद, 'स्वच्छ रेल स्वच्छ भारत' -१३ मात्रिक छंद, सावधानी हटी, दुर्घटना घटी - -१९ मात्रिक छंद; १०-९ पर यति, 'दुर्घटना से देर भली' -१४ मात्रिक हाकलि छंद, संरक्षा का वरण करो / दुर्घटना का हरण करो -१४ मात्रिक सखी छंद।
भारतीय चलचित्र जीवन के हर क्षेत्र का प्रतिबिंब होते हैं। अनेक चलचित्रों में श्रमिकों की महत्ता,श्रम की अवहेलना, श्रमिक-जीवन की विसंगतियाँ चित्रित की गई हैं। दो उदाहरण देखें: १. फ़ौलादी हैं सीने अपने फ़ौलादी हैं बाहें  हम चाहें तो पैदा कर दें चट्टानों में राहें -२८ मात्रिक छंद; यति १६-१२ यौगिक जातीय सार छंद, २. गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है / चलना ही जिंदगी है, चलती ही जा रही है - १२ मात्रिक आदित्य छंद + १३ मात्रिक भागवत जातीय छंद का मिश्रण।
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने भारतीय रेल को लेकर मुक्तक रचे हैं जो छंदों पर आधारित हैं:
प्रभु तो प्रभु है, ऊपर हो या नीचे हो। / नहीं रेल के प्रभु सा आँखें मीचे हो।। / निचली श्रेणी की करता कुछ फ़िक्र न हो- / ऊँची श्रेणी के  हित लिए गलीचे हो।।(२२ मात्रिक महारौद्र जातीय कुंडल छंद, १२-१० पर यति)
ट्रेन पटरी से उतरती जा रही। / यात्रियों को अंत तक पहुँचा रही।। / टिकिट थोड़ी यात्रा का था लिया- / पार भव  से मुफ्त में करवा रही।। (महापौराणिक जातीय, सुमेरु छंद)
शुक्र करिए रेलवे का रात-दिन। / काम चलता ही नहीं है ट्रेन बिन।। / करें पल-पल याद प्रभु को आप फिर- / समय काटें यार चलती श्वास गिन।। (महापौराणिकजातीय छंद )
जो चाहे भगवान् वही तो होता है। / दोष रेल मंत्री को क्यों जग देता है।। / चित्रगुप्त प्रभु दुर्घटना में मार रहे- / नाव आप तू कर्म नदी में खेता है।। (२२ मात्रिक महारौद्र जातीय कुंडल छंद, १२-१० पर यति)
१५ मात्रिक तैथिक जातीय पुनीत छंद में रचा गया मेरा बाल गीत देखें: नगर गाँव जब आती रेल / सबका मन हर्षाती रेल / मिल जाता है सबका साथ / आगे  बढ़ती जाती  रेल / ऊँचे पर्वत, नदियाँ, खेत / सबकी सैर कराती रेल / धीमी कभी; कभी हो तेज / मंजिल पर पहुँचाती रेल / हो जाओ पटरी से दूर / सीटी खूब बजाती रेल / करती नहीं किसी में भेद / सबको पास बिठाती रेल / रहे स्वच्छ रखना यह ध्यान / गन्दी तनिक न भाती रेल।
निस्संदेह सरसरी तौर पर भारतीय रेल और छंद में कोई संबंध भेले ही प्रतीत न हो, गहराई से विचारें तो पाएँगे कि रेल की पटरी बिछाने हेतु गिट्टी डालना हो, पटरी बिछाना हो, रेल आरम्भ होने की सीटी या घंटी बजाना हो, इंजिन का चका घुमाना हो या अन्य कोई कार्य ध्वनि-खण्डों की आवृत्तियाँ, गति और यति हर जगह सहज ही देखी जा सकती है और यह कहा जा सकता है कि रेल-यांत्रिकी और छंद का अन्योन्याश्रित संबंध है।

--------

कोई टिप्पणी नहीं: