कार्यशाला:
रचना एक रचनाकार दो
*
पथरीले थे रास्ते, दुख का नहीं हिसाब ।
अनुभव अनुभव जोड़कर, छाया बनी किताब ।। -छाया शुक्ला
छाया बनी किताब, धूप हँस पढ़ने बैठी।
छोड़ न पाई चाह, ह्रदय में छाया पैठी।।
देखें दर्पण सलिल, न टिकते बिंब हठीले।
लिख कविता संजीव, स्वप्न पाए नखरीले।। -संजीव
***
१०.६.२०१८
रचना एक रचनाकार दो
*
पथरीले थे रास्ते, दुख का नहीं हिसाब ।
अनुभव अनुभव जोड़कर, छाया बनी किताब ।। -छाया शुक्ला
छाया बनी किताब, धूप हँस पढ़ने बैठी।
छोड़ न पाई चाह, ह्रदय में छाया पैठी।।
देखें दर्पण सलिल, न टिकते बिंब हठीले।
लिख कविता संजीव, स्वप्न पाए नखरीले।। -संजीव
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१०.६.२०१८
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