दोहा सलिला
*
अग्रज के आशीष से, जीव हुआ संजीव।
सदा सदय हों शारदा, गणपति करुणासींव।।
*
अनिल अनल से मिल सलिल, भू नभ को ले साथ।
जीवन को दे जीवनी, जिए उठाकर माथ।।
*
मिल रहा आशीष भौजी का मिला है सुख नवल।
कांति शुक्ला हो जहाँ, है वहाँ ही हिंदी गज़ल।।
*
योगा कह लें योग को, भोगा कहें न भोग।
प्रीतम पी तम हो नहीं, तज अंग्रेजी रोग।।
*
पानी दुर्ग बचा सके, नारी हो दुर्गेश।
अपव्यय तनिक न जो करे, वह विदेह मिथलेश।।
*
शशि त्यागी हर निशा हो, सिर्फ अमावस-रात।
शशि सज्जित हर रात का, अमर रहे अहिवात।।
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अग्रज के आशीष से, जीव हुआ संजीव।
सदा सदय हों शारदा, गणपति करुणासींव।।
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अनिल अनल से मिल सलिल, भू नभ को ले साथ।
जीवन को दे जीवनी, जिए उठाकर माथ।।
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मिल रहा आशीष भौजी का मिला है सुख नवल।
कांति शुक्ला हो जहाँ, है वहाँ ही हिंदी गज़ल।।
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योगा कह लें योग को, भोगा कहें न भोग।
प्रीतम पी तम हो नहीं, तज अंग्रेजी रोग।।
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पानी दुर्ग बचा सके, नारी हो दुर्गेश।
अपव्यय तनिक न जो करे, वह विदेह मिथलेश।।
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शशि त्यागी हर निशा हो, सिर्फ अमावस-रात।
शशि सज्जित हर रात का, अमर रहे अहिवात।।
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