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रविवार, 10 जून 2018

दोहा सलिला

दोहा सलिला
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अग्रज के आशीष से, जीव हुआ संजीव
सदा सदय हों शारदा, गणपति करुणासींव
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अनिल अनल से मिल सलिल, भू नभ को ले साथ।  
जीवन को दे जीवनी, जिए उठाकर माथ।। 
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मिल रहा आशीष भौजी का मिला है सुख नवल।  
कांति शुक्ला हो जहाँ, है वहाँ ही हिंदी गज़ल।। 
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योगा कह लें योग को, भोगा कहें न भोग।  
प्रीतम पी तम हो नहीं, तज अंग्रेजी रोग।। 
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पानी दुर्ग बचा सके, नारी हो दुर्गेश।  
अपव्यय तनिक न जो करे, वह विदेह मिथलेश।। 
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शशि त्यागी हर निशा हो, सिर्फ अमावस-रात 
शशि सज्जित हर रात का, अमर रहे अहिवात
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