सड़गोड़ासनी 4:
सखी री! गाओ
*
सखी री! गाओ सड़गोड़ा,
सीखें मोंड़ी-मोंड़ा।
सखी री!...
*
हिरा नें जाएँ छंद कहूँ जे,
मन खों रुचे निगोड़ा।
सखी री!...
*
'राइम' रट रय, अरथ नें समझें
जैसें दौड़े घोड़ा।
सखी री!...
*
घटे नें अन-धन दान दिए सें,
देखो दें कें थोड़ा।
सखी री!...
*
लालच-दंभ, चैन कें दुसमन,
मारे, गिनें नें कोड़ा।
सखी री!...
*
आधी छोड़ एक खों धावा,
पाएँ नें हिंसा छोड़ा।
सखी री?...
*
4.6.2018, 7999559618
salil.sanjiv@gmail.com
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 7 जून 2018
सड़गोड़ासनी 4: सखी री! गाओ
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