मुक्तक
*
एक से हैं हम मगर डरे - डरे
जी रहे हैं छाँव में मरे - मरे
मारकर भी वो नहीं प्रसन्न है
टांग तोड़ कह रहे अरे! अरे!!
*
बता रहे कुसूरवार हमको ही
सता रहे हजार बार हमको ही
नज़र झुकाई तो झुकाई क्यों कहो?
धता बता रहे निहार हमको ही
*
उफ़ मैंने क्या किया?
जिया न लेकर दिया
जाम उठा हाथों में-
कहा न लेकिन पिया
*
मत पूछो कब-कहाँ निहारा?
अनजाने ही किसे पुकारा
लुक-छिप खेले आँख मिचौली
जो उसको ही मिला सहारा
*
नहीं बोलना कुछ कह बोला
बोल नयन से अधर न खोला
अच्छा-खासा है प्रमोद यह
बिना शहद मधु चुप रह घोला
*
प्रेरणा किसको मिली कब और कैसे?
अर्चना किसने करी कब और कैसे?
वंदना ने प्रार्थना का पथ न रोका-
साधना-आराधना कब और कैसे?
*
उषा की आभा गुलाबी खूब है
प्रभा संध्या की सुहानी खूब है
चाँदनी को देख तारों ने कहा-
विभा चंदा की प्रभावी खूब है
*
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एक से हैं हम मगर डरे - डरे
जी रहे हैं छाँव में मरे - मरे
मारकर भी वो नहीं प्रसन्न है
टांग तोड़ कह रहे अरे! अरे!!
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बता रहे कुसूरवार हमको ही
सता रहे हजार बार हमको ही
नज़र झुकाई तो झुकाई क्यों कहो?
धता बता रहे निहार हमको ही
*
उफ़ मैंने क्या किया?
जिया न लेकर दिया
जाम उठा हाथों में-
कहा न लेकिन पिया
*
मत पूछो कब-कहाँ निहारा?
अनजाने ही किसे पुकारा
लुक-छिप खेले आँख मिचौली
जो उसको ही मिला सहारा
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नहीं बोलना कुछ कह बोला
बोल नयन से अधर न खोला
अच्छा-खासा है प्रमोद यह
बिना शहद मधु चुप रह घोला
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प्रेरणा किसको मिली कब और कैसे?
अर्चना किसने करी कब और कैसे?
वंदना ने प्रार्थना का पथ न रोका-
साधना-आराधना कब और कैसे?
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उषा की आभा गुलाबी खूब है
प्रभा संध्या की सुहानी खूब है
चाँदनी को देख तारों ने कहा-
विभा चंदा की प्रभावी खूब है
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