एक रचना
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आज प्रभु श्री कृष्ण के जन्म का छटवाँ दिन 'छटी पर्व' है। बुंदेलखंड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मालवा आदि में यह दिन लोकपर्व 'पोला' के रूप में मनाया जाता है। पशुओं को स्नान कराकर, सुसज्जित कर उनका पूजन किया जाता है। इन दिन पशुओं से काम नहीं लिया जाता अर्थात सवैतनिक राजपत्रित अवकाश स्वीकृत किया जाता है। पशुओं का प्रदर्शन और प्रतियोगिताएँ मेले आदि की विरासत क्रमश: समापन की ओर हैं। विक्रम समय चक्र के अनुसार इसी तिथि को मुझे जन्म लेने का सौभाग्य मिला। माँ आज ही के दिन हरीरा, सोंठ के लड्डू, गुलगुले आदि बनाकर भगवन श्रीकृष्ण का पूजन कर प्रसाद मुझे खिलाकर तृप्त होती रहीं। अदृश्य होकर भी उनका मातृत्व संतुष्ट होता रहे इसलिए मेरी बड़ी बहिन आशा जिज्जी और धर्मपत्नी साधना आज भी यह सब पूरी निष्ठां से करती हैं। बड़भागी, अभिभूत और नतमस्तक हूँ तीनों के दिव्य भाव के प्रति। आज बाँकेबिहारी की 'छठ' पूजना तो कलम का धर्म है कि बधावा गाकर खुद को धन्य करे-
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नन्द घर आनंद है
गूँज रहा नव छंद है
नन्द घरा नंद है
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मेघराज आल्हा गाते
तड़ित देख नर डर जाते
कालिंदी कजरी गाये
तड़प देवकी मुस्काये
पीर-धीर-सुख का दोहा
नव शिशु प्रगट मन मोहा
चौपाई-ताला डोला
छप्पय-दरवाज़ा खोला
बंबूलिया गाये गोकुल
कूक त्रिभंगी बन कोयल
बेटा-बेटी अदल-बदल
गया-सुन सोहर सम्हल-सम्हल
जसुदा का मुख चंद है
दर पर शंकर संत है
प्रगटा आनँदकंद है
नन्द घर आनंद है
गूँज रहा नाव छंद है
नन्द घरा नंद है
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काल कंस पर मँडराया
कर्म-कुंडली बँध आया
बेटी को उछाल फेंका
लिया नाश का था ठेका
हरिगीतिका सुनाई दिया
काया कंपित, भीत हिया
सुना कबीरा गाली दें
जनगण मिलकर ताली दें
भेद न वासुदेव खोलें
राई-रास चरण तोलें
गायें बधावा, लोरी, गीत
सुना सोरठा लें मन जीत
मति पापी की मन्द है
होना जमकर द्वन्द है
कटना भव का फंद
नन्द घर आनंद है
गूँज रहा नाव छंद है
नन्द घरा नंद है
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१-९-२०१६
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नन्द घर आनंद है
गूँज रहा नव छंद है
नन्द घरा नंद है
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