लघुकथा
ताबीज़
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मज़ार से निकालता देख उस्ताद ने टोंक यहाँ क्या कर रहा है? अखाड़े नहीं गया? जा ही रहा हूँ उस्ताद। कहता हुआ वह अखाड़े की ओर बढ़ गया और पहुँचते ही कपड़े उतार कर कुश्ती करने लगा। आज वह उस पहलवान से भी हार रहा था जिससे सामान्यत:जीता करता था।
उस्ताद ने देख कर अनदेखा कर दिया। बाद में रोककर समझाया कुश्ती में सही समय पर सही दाँव काम आता है और कुछ नहीं।
अगले दिन वह फिर अपने रंग में था किन्तु बाँह पर नहीं था ताबीज़।
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