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सोमवार, 5 सितंबर 2016

गुरु वंदन

मेरे गुरु, अग्रजवत श्री सुरेश उपाध्याय जी 
शत-शत वंदन    


दोहा मुक्तिका


*
गुरु में भाषा का मिला, अविरल सलिल प्रवाह 
अँजुरी भर ले पा रहा, शिष्य जगत में वाह 
*
हो सुरेश सा गुरु अगर, फिर क्यों कुछ परवाह? 
अगम समुद में कूद जा, गुरु से अधिक न थाह 
*
गुरु की अँगुली पकड़ ले, मिल जाएगी राह 
लक्ष्य आप ही आएगा, मत कर कुछ परवाह 
*
गुरु समुद्र हैं ज्ञान का, ले जितनी है चाह
नेह नर्मदा विमल गुरु, ज्ञान मिले अवगाह *
हर दिन नया न खोजिए, गुरु- न बदलिए राह
मन श्रृद्धा-विश्वास बिन, भटके भरकर आह 
*  
एक दिवस क्यों? हर दिवस, गुरु की गहे पनाह
जो उसकी शंका मिटे, हो शिष्यों में शाह
*
नेह-नर्मदा धार सम, गुरु की करिए चाह
दीप जलाकर ज्ञान का, उजियारे अवगाह
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