लघुकथा
पैबंद
*
कल तक एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे थे वे दोनों। वर्षों से उन्हें साथ देखने की आदत थी लोगों को।
चुनाव की घोषणा, कुछ क्षेत्र महिलाओं और दलितों के लिए आरक्षित हुए तो एक के सामने अपना क्षेत्र बदलने की बाध्यता उत्पन्न हो गयी। सहयोगियों ने कान भरे की उसे धोखा दिया गया है। शंका पनपते ही मित्रता का आधार डगमगा गया। अन्य दलों ने अवसर का लाभ लिया और दोनों हार गए तो आँखों के आगे से पर्दा हटा। दोनों फिर साथ हुए पर मित्रता की चादर में लग चुका था पैबंद।
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पैबंद
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कल तक एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे थे वे दोनों। वर्षों से उन्हें साथ देखने की आदत थी लोगों को।
चुनाव की घोषणा, कुछ क्षेत्र महिलाओं और दलितों के लिए आरक्षित हुए तो एक के सामने अपना क्षेत्र बदलने की बाध्यता उत्पन्न हो गयी। सहयोगियों ने कान भरे की उसे धोखा दिया गया है। शंका पनपते ही मित्रता का आधार डगमगा गया। अन्य दलों ने अवसर का लाभ लिया और दोनों हार गए तो आँखों के आगे से पर्दा हटा। दोनों फिर साथ हुए पर मित्रता की चादर में लग चुका था पैबंद।
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