प्रातस्मरण स्तोत्र (दोहानुवाद सहित) -संजीव 'सलिल'
II ॐ श्री गणधिपतये नमः II
== प्रातस्मरण स्तोत्र (दोहानुवाद सहित) ==
हिंदी काव्यानुवाद: संजीव 'सलिल'
*
प्रात:स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिंदूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मं
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डमा खण्डलादि सुरनायक वृन्दवन्द्यं
*
प्रात सुमिर गणनाथ नित, दीनस्वामि नत माथ.
शोभित गात सिंदूर से, रखिये सिर पर हाथ..
विघ्न-निवारण हेतु हों, देव दयालु प्रचण्ड.
सुर-सुरेश वन्दित प्रभो!, दें पापी को दण्ड..
प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमान मिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानं.
तं तुन्दिलंद्विरसनाधिप यज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो:शिवाय.
*
ब्रम्ह चतुर्मुखप्रात ही, करें वन्दना नित्य.
मनचाहा वर दास को, देवें देव अनित्य..
उदर विशाल- जनेऊ है, सर्प महाविकराल.
क्रीड़ाप्रिय शिव-शिवासुत, नमन करूँ हर काल..
प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्त शोक दावानलं गणविभुंवर कुंजरास्यम.
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाह मुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्यं..
*
जला शोक-दावाग्नि मम, अभय प्रदायक दैव.
गणनायक गजवदन प्रभु!, रहिए सदय सदैव..
जड़-जंगल अज्ञान का, करें अग्नि बन नष्ट.
शंकर-सुत वंदन नमन, दें उत्साह विशिष्ट..
श्लोकत्रयमिदं पुण्यं, सदा साम्राज्यदायकं.
प्रातरुत्थाय सततं यः, पठेत प्रयाते पुमान..
नित्य प्रात उठकर पढ़े, त्रय पवित्र श्लोक.
सुख-समृद्धि पायें 'सलिल', वसुधा हो सुरलोक..
== प्रातस्मरण स्तोत्र (दोहानुवाद सहित) ==
हिंदी काव्यानुवाद: संजीव 'सलिल'
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प्रात:स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिंदूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मं
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डमा
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प्रात सुमिर गणनाथ नित, दीनस्वामि नत माथ.
शोभित गात सिंदूर से, रखिये सिर पर हाथ..
विघ्न-निवारण हेतु हों, देव दयालु प्रचण्ड.
सुर-सुरेश वन्दित प्रभो!, दें पापी को दण्ड..
प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमान मिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानं.
तं तुन्दिलंद्विरसनाधिप यज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो:शिवाय.
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ब्रम्ह चतुर्मुखप्रात ही, करें वन्दना नित्य.
मनचाहा वर दास को, देवें देव अनित्य..
उदर विशाल- जनेऊ है, सर्प महाविकराल.
क्रीड़ाप्रिय शिव-शिवासुत, नमन करूँ हर काल..
प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्त शोक दावानलं गणविभुंवर कुंजरास्यम.
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाह मुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्यं..
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जला शोक-दावाग्नि मम, अभय प्रदायक दैव.
गणनायक गजवदन प्रभु!, रहिए सदय सदैव..
जड़-जंगल अज्ञान का, करें अग्नि बन नष्ट.
शंकर-सुत वंदन नमन, दें उत्साह विशिष्ट..
श्लोकत्रयमिदं पुण्यं, सदा साम्राज्यदायकं.
प्रातरुत्थाय सततं यः, पठेत प्रयाते पुमान..
नित्य प्रात उठकर पढ़े, त्रय पवित्र श्लोक.
सुख-समृद्धि पायें 'सलिल', वसुधा हो सुरलोक..
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