दोहा मुक्तिका:
राधा धारा प्रेम की :
संजीव
*
राधा धारा प्रेम की, श्याम स्नेह-सौगात।
बरसाने में बरसती, बिन बादल बरसात।।
*
माखनचोर न मोह मन, चित न चुरा चितचोर।
गोवर्धन गो पालकर, नृत्य दिखा बन मोर।।
*
आँख चुरा मुँह फेरकर, गया दिखाकर पीठ।
नहीं बेवफा वफ़ा की, माँग फेर ले दीठ।।
*
तंदुल ले त्रैलोक्य दे, कभी बढ़ाये चीर।
कौन कृष्ण सम मित्र की, हर सकता है पीर।।
*
विपद वृष्टि की सह सके, कृष्ण-ग्वाल मिल साथ।
देवराज निज सर धुनें, झुका सदा को माथ।।
*
स्नेह-'सलिल' यमुना विमल, निर्मल भक्ति प्रभात
राधा-मीरा कूल दो, कृष्ण कमल जलजात।।
*
कुञ्ज गली का बावरा, कर मन-मन्दिर वास।
जसुदा का छोरा 'सलिल', हुआ जगत विख्यात।।
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राधा धारा प्रेम की :
संजीव
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राधा धारा प्रेम की, श्याम स्नेह-सौगात।
बरसाने में बरसती, बिन बादल बरसात।।
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माखनचोर न मोह मन, चित न चुरा चितचोर।
गोवर्धन गो पालकर, नृत्य दिखा बन मोर।।
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पानी दूषित कर किया, जन हित पर आघात।
नाग कालिया को पड़ी, सहनी सर पर लात।।
*आँख चुरा मुँह फेरकर, गया दिखाकर पीठ।
नहीं बेवफा वफ़ा की, माँग फेर ले दीठ।।
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तंदुल ले त्रैलोक्य दे, कभी बढ़ाये चीर।
कौन कृष्ण सम मित्र की, हर सकता है पीर।।
*
विपद वृष्टि की सह सके, कृष्ण-ग्वाल मिल साथ।
देवराज निज सर धुनें, झुका सदा को माथ।।
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स्नेह-'सलिल' यमुना विमल, निर्मल भक्ति प्रभात
राधा-मीरा कूल दो, कृष्ण कमल जलजात।।
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कुञ्ज गली का बावरा, कर मन-मन्दिर वास।
जसुदा का छोरा 'सलिल', हुआ जगत विख्यात।।
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7 टिप्पणियां:
Pushpendra Yadav
वाह...वाह...वाह! उत्तम शिल्प, प्रेम आस्था और समर्पण के भाव से संयोजित अति संुदर दोहे... हार्दिक बधाई !!
Pradeep Kumar Singh Kushwaha
आदरणीय सलिल जी
हिंदी कक्षा में अपना आशीष देने साहित्य संगम पर पधारे हैं. एक बार पुन्ह स्वागत. आशा है यहाँ भी मार्गदर्शन करेंगे.
प्रदीप जी,
सलिल की सार्थकता पिपासा-तृप्ति में ही है किन्तु पिपासु को ग्रहण और सहन करने का कष्ट उठाना होगा। जहाँ प्रदीप है वहां प्रकाश तो है ही, सलिल-लहरों में प्रकाश किरणें पड़ें तो मनोहारी सर्जन की झिलमिल मन मोहती है.
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
Kanhaiya Tiwari
आदरणीय संजीव सलिल जी,
सुन्दर !प्रथम चरण मेँ "श्याम स्नेह"मेँ मात्रा भार अधिक होने कारण लय प्रवाह मेँ अवरोध होता है। इसे "श्याम नेह"करके पढेँ भाव परिवर्तन भी नही होगा और लय प्रवाह मे अवरोध नही होगा। सप्रेम।
स्नेह की मात्रा २+१ = ३ हैं। इसे अर्ध स + न मिलकर 'स्ने' एक साथ पढ़ें तो गतिरोध न होगा।
S.r. Pallav
दिव्य भव्य है आपके दोहोँ का आलोक।
मूल्यवान इतने सभी वारूँ कवितालोक ।।
. . . . . पल्लव *
दोहा-तरु, जड़-कथ्य है, नव पल्लव रस-खान.
पुष्प-बिम्ब, फल सरस-रस, बीज-सुलय कर गान..
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