आज का चितन: थॉट ऑफ़ थे डे
अध्यापक पूर्ण सिंह
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''मैं
तो अपनी खेती करता हूँ, अपने हल और बैलों को सुबह उठाकर प्रणाम करता
हूँ ! मेरा जीवन जंगल के पेड़ों और पत्तियों की संगति में गुज़रता है,
आकाश के बादलों को देखते मेरा दिन निकल जाता है ! मैं किसी को धोखा
नहीं देता, हाँ, यदि कोई मुझे धोखा दे तो
उससे मेरी कोई हानि नहीं ! मेरे खेत में अन्न उग रहा है, मेरा घर
अन्न से भरा है, बिस्तर के लिए मुझे एक कमली काफी हैं, कमर के लिए
लंगोटी और सिर के लिए एक टोपी बस है ! हाथ - पाँव मेरे बलवान है,
शरीर मेरा आरोग्य है, भूख खूब लगती है, बाजरा और मकई , छाछ और दही ,
दूध और मक्खन बच्चों को खाने के लिए मिल जाता है !''
प्रस्तुति: दीप्ति गुप्ताक्या इस 'किसान' की सादगी और सच्चाई में वह मिठास नहीं जिसकी प्राप्ति के लिए भिन्न-भिन्न धर्म संप्रदाय लम्बी- चौड़ी और चिकनी चुपडी बातों द्वारा दीक्षा दिया करते हैं ?
- सरदार पूर्ण सिंह
पूर्ण सत्य का पूर्ण सिंह, करते यहाँ बखान
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