एक सीख !
माँ
स्वामी विवेकानन्द
एक युवक ने स्वामी विवेकानन्द जी से पूछा: 'स्वामी जी
मैं अपनी माँ का क़र्ज़ किस तरह अदा कर सकता हूँ?'
स्वामी जी धीरे से मुस्कराए
और उससे कहा: 'आज जब तुम काम पर जाओ तो एक छोटा पत्थर किसी कपडे में
लपेटकर अपने पेट पर बांध लेना, फिर शाम को मुझसे आकर मिलना।'
युवक स्वामी जी
की बात सुनकर चला गया और उसने वही किया जैसा स्वामी जी ने उससे करने को कहा थ।
शाम होते ही युवक स्वामी जी के पास आया। स्वामी जी ने उससे को पूछा: 'कहो
कैसा रहा आज का दिन?'
युवक बोला: 'स्वामी जी बहुत परेशानी हुई इस पत्थर की वजह से।'!
स्वामी जी मुस्कराए और कहां: 'तुम्हें अपने सवाल का जवाब मिल गया? माँ अपनी औलाद को ९ महीने पेट में पालती है लेकिन जरा
सी भी परेशान नही होती और तुम बस एक ही दिन में इतना परेशान हो गए। माँ का क़र्ज़ कोई भी अदा नही कर सकता।'
माँ
स्वामी विवेकानन्द
एक युवक ने स्वामी विवेकानन्द जी से पूछा: 'स्वामी जी
मैं अपनी माँ का क़र्ज़ किस तरह अदा कर सकता हूँ?'
स्वामी जी धीरे से मुस्कराए
और उससे कहा: 'आज जब तुम काम पर जाओ तो एक छोटा पत्थर किसी कपडे में
लपेटकर अपने पेट पर बांध लेना, फिर शाम को मुझसे आकर मिलना।'
युवक स्वामी जी
की बात सुनकर चला गया और उसने वही किया जैसा स्वामी जी ने उससे करने को कहा थ।
शाम होते ही युवक स्वामी जी के पास आया। स्वामी जी ने उससे को पूछा: 'कहो
कैसा रहा आज का दिन?'
युवक बोला: 'स्वामी जी बहुत परेशानी हुई इस पत्थर की वजह से।'!
स्वामी जी मुस्कराए और कहां: 'तुम्हें अपने सवाल का जवाब मिल गया? माँ अपनी औलाद को ९ महीने पेट में पालती है लेकिन जरा
सी भी परेशान नही होती और तुम बस एक ही दिन में इतना परेशान हो गए। माँ का क़र्ज़ कोई भी अदा नही कर सकता।'
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