घनाक्षरी:फूंकता कवित्त प्राण...
संजीव 'सलिल'
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फूँकता कवित्त प्राण, डाल मुरदों में जान,दीप बाल अंधकार, ज़िन्दगी का हरता।
नर्मदा निनाद सुनो,सच की ही राह चुनो,
जीतता सुधीर वीर, पीर पीर सहता।।
'सलिल'-प्रवाह पैठ, आगे बढ़ नहीं बैठ,
सागर है दूर पूर, दूरी हो निकटता।
आना-जाना खाली हाथ, कौन कभी देता साथ,
हो अनाथ भी सनाथ, प्रभु दे निकटता।।
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(वर्णिक छंद, 8-8-8-7 पर यति,
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