पौराणिक आर्य युग
रंजीत सिन्हा, कटिहार
सतयुग / ऋग्वैदिक काल --प्रारंभ वैशाख शुक्ल तृतीया, देव गंगा स्नान कर अन्य पुण्य कार्य करते हैं।
त्रेता / यजुर्वेदिक काल--प्रारंभ कार्तिक शुक्ल नवमी।
द्वापर / यजुदिक / साम दिक काल--भद्र कृष्ण त्रयोदशी।
कलियुग / लौह युग --माघ पूर्णिमा, गंगा स्नान।
अक्षय वट
मनोकामना पूर्ण करने की क्षमताधारी पवित्र वृक्ष: 1. प्रयाग की किले में, 2. गया में। पुरानों के अनुसार इनका अंत प्रलय काल में भी महीन होता। पूजन से अमरत्व प्राप्ति।
द्वादशाक्षर मन्त्र
"ओं नमो भगवते वासुदेवाय
"--मूलतः वैश्वानर (अग्नि) को तथा कालांतर में विष्णु को समर्पित।
गन्धर्व-किन्नर
ये देव-योनी में परिगणित होते हैं। ये गायन तथा नृत्य विधा में निपुण तथा राज्य-पालित होते रहे। किन्नर अलिंग (न पुरुष, न स्त्री) हैं इसलिए नवजात शिशु को लेकर नृत्य करते हैं तथा कयानी-ध्यानी होने का आशीष देते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें