कुल पेज दृश्य

सोमवार, 5 नवंबर 2012

पौराणिक आर्य युग रंजीत सिन्हा, कटिहार



पौराणिक आर्य युग 
रंजीत सिन्हा, कटिहार
सतयुग / ऋग्वैदिक काल --प्रारंभ वैशाख शुक्ल तृतीया, देव गंगा स्नान कर अन्य पुण्य कार्य करते हैं।

त्रेता / यजुर्वेदिक काल--प्रारंभ कार्तिक शुक्ल नवमी।

द्वापर / यजुदिक  / साम दिक काल--भद्र कृष्ण त्रयोदशी।

कलियुग / लौह युग --माघ पूर्णिमा, गंगा स्नान।
                                                                          
                                                                      अक्षय वट  
मनोकामना पूर्ण करने की क्षमताधारी पवित्र वृक्ष: 1. प्रयाग की किले में, 2. गया में।  पुरानों के अनुसार इनका अंत प्रलय काल में भी महीन होता।  पूजन से अमरत्व प्राप्ति। 
द्वादशाक्षर मन्त्र 
 "ओं नमो भगवते वासुदेवाय "--मूलतः वैश्वानर (अग्नि) को तथा कालांतर में विष्णु को समर्पित। 
                                                                     गन्धर्व-किन्नर 
ये देव-योनी में परिगणित होते हैं। ये गायन तथा नृत्य विधा में निपुण तथा राज्य-पालित होते रहे। किन्नर अलिंग (न पुरुष, न स्त्री) हैं इसलिए नवजात शिशु को लेकर नृत्य करते हैं  तथा कयानी-ध्यानी होने का आशीष देते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: