-: नव गीत :-
पग की किस्मत / सिर्फ भटकना
संजीव 'सलिल'
*
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
सावन-मेघ
बरसते आते.
रवि गर्मी भर
आँख दिखाते.
ठण्ड पड़े तो
सभी जड़ाते.
कभी न थमता
पौ का फटना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
मीरा, राधा,
सूर, कबीरा,
तुलसी, वाल्मीकि
मतिधीरा.
सुख जैसे ही
सह ली पीड़ा.
नाम न छोड़ा
लेकिन रटना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
लोकतंत्र का
महापर्व भी,
रहता जिस पर
हमें गर्व भी.
न्यूनाधिक
गुण-दोष समाहित,
कोई न चाहे-
कहीं अटकना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
समय चक्र
चलता ही जाये.
बार-बार
नव वर्ष मनाये.
नाश-सृजन को
संग-संग पाए.
तम-प्रकाश से
'सलिल' न हटना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
थक मत, रुक मत,
झुक मत, चुक मत.
फूल-शूल सम-
हार न हिम्मत.
'सलिल' चलाचल
पग-तल किस्मत.
मौन चलाचल
नहीं पलटना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 26 दिसंबर 2009
नव गीत: पग की किस्मत / सिर्फ भटकना -संजीव 'सलिल'
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8 टिप्पणियां:
आ. आचार्य जी,
सुन्दर प्रवाहपूर्ण कविता ने मन मोह लिया।
शकुन्तला बहादुर
pratibha_saksena@yahoo.com, ekavita
आ. आचार्य जी!
बड़ी तथ्यपूर्ण कवितायें होती हैं आपकी - वायवी न होकर ठोस !
- प्रतिभा.
'सलिल' वायवी हो बने, वाष्प- गगन को चूम.
बरस पड़े भू पर- मचे, नव जीवन की धूम..
प्रतिभा का सत्संग पा, ऊगें अंकुर नित्य.
स्नेह-साधना सफल हो, पनपें मूल्य अनित्य..
shukla_abhinav@yahoo.com
वाह अति सुन्दर ..
बहुत दिनों बाद इतना अच्छा नव गीत पढने को मिला.
आपको अनेक धन्यवाद्.
थक मत, रुक मत,
झुक मत, चुक मत.
फूल-शूल सम-
हार न हिम्मत.
'सलिल' चलाचल
पग-तल किस्मत.
मौन चलाचल
नहीं पलटना.
_______________________
Abhinav Shukla
206-694-3353
amitabh.ald@gmail.com
आ० आचार्य जी,
अच्छा नवगीत!
थक मत, रुक मत,
झुक मत, चुक मत.
फूल-शूल सम-
हार न हिम्मत.
'सलिल' चलाचल
पग-तल किस्मत.
मौन चलाचल
नहीं पलटना.
राज मार्ग हो
प्रभावयुक्त पंक्तियाँ।
चरैवेति को सार्थक करती हुई!
सादर
अमित
pratapsingh1971@gmail.com
आदरणीय आचार्य जी
बहुत ही सुन्दर, ओजपूर्ण और उत्साह वर्धक है यह नवगीत.
सादर
प्रताप
kanhaiyakrishna@hotmail.com
आ. आचार्य जी,
सार्थक गीत है
Krishna Kanhaiya
shar_j_n ekavita
आदरणीय सलिल जी,
अंतिम बंद बहुत ही सुन्दर!
सादर शार्दुला
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