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सोमवार, 12 अक्टूबर 2020

विरासत : सब बुझे दीपक जला लूँ महीयसी महादेवी वर्मा

विरासत : 
सब बुझे दीपक जला लूँ  
महीयसी महादेवी वर्मा
*

सब बुझे दीपक जला लूं
घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं
क्षितिज कारा तोडकर अब
गा उठी उन्मत आंधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास तन्मय तडित बांधी,
धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं!
भीत तारक मूंदते द्रग
भ्रान्त मारुत पथ न पाता,
छोड उल्का अंक नभ में
ध्वंस आता हरहराता
उंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूं!
लय बनी मृदु वर्तिका
हर स्वर बना बन लौ सजीली,
फैलती आलोक सी
झंकार मेरी स्नेह गीली
इस मरण के पर्व को मैं आज दीवाली बना लूं!
देखकर कोमल व्यथा को
आंसुओं के सजल रथ में,
मोम सी सांधे बिछा दीं
थीं इसी अंगार पथ में
स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार में उनको सुला लूं!
अब तरी पतवार लाकर
तुम दिखा मत पार देना,
आज गर्जन में मुझे बस
एक बार पुकार लेना
ज्वार की तरिणी बना मैं इस प्रलय को पार पा लूं!
आज दीपक राग गा लूं!
***

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
हर सिक्के में हैं सलिल, चित-पट दोनों साथ
बिना पैर के मंज़िलें, कैसे पाए हाथ
*
पुत्र जन्म हित कर दिया, पुत्री को ही दान
फिर कैसे हम कह रहे?, है रघुवंश महान?
*
सत्ता के टकराव से, जुड़ा धर्म का नाम
गलत न पूरा दशानन, सही न पूरे राम
*
मार रहे जो दशानन , खुद करते अपराध
सीता को वन भेजते, सत्ता के हित साध
*
कैसी मर्यादा? कहें, कैसा यह आदर्श?
बेबस को वन भेजकर, चाहा निज उत्कर्ष
*
मार दिया शम्बूक को, अगर पढ़ लिया वेद
कैसा है दैवत्व यह, नहीं गलत का खेद
*
१२-१०-२०१६ 

नर्मदा नामावली

नर्मदा नामावली
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
पुण्यतोया सदानीरा नर्मदा.
शैलजा गिरिजा अनिंद्या वर्मदा.
शैलपुत्री सोमतनया निर्मला.
अमरकंटी शांकरी शुभ शर्मदा.
आदिकन्या चिरकुमारी पावनी.
जलधिगामिनी चित्रकूटा पद्मजा.
विमलहृदया क्षमादात्री कौतुकी.
कमलनयनी जगज्जननि हर्म्यदा.
शाशिसुता रौद्रा विनोदिनी नीरजा.
मक्रवाहिनी ह्लादिनी सौंदर्यदा.
शारदा वरदा सुफलदा अन्नदा.
नेत्रवर्धिनि पापहारिणी धर्मदा.
सिन्धु सीता गौतमी सोमात्मजा.
रूपदा सौदामिनी सुख-सौख्यदा.
शिखरिणी नेत्रा तरंगिणी मेखला.
नीलवासिनी दिव्यरूपा कर्मदा.
बालुकावाहिनी दशार्णा रंजना.
विपाशा मन्दाकिनी चित्रोंत्पला.
रुद्रदेहा अनुसूया पय-अंबुजा.
सप्तगंगा समीरा जय-विजयदा.
अमृता कलकल निनादिनी निर्भरा.
शाम्भवी सोमोद्भवा स्वेदोद्भवा.
चन्दना शिव-आत्मजा सागर-प्रिया.
वायुवाहिनी कामिनी आनंददा.
मुरदला मुरला त्रिकूटा अंजना.
नंदना नाम्माडिअस भव मुक्तिदा.
शैलकन्या शैलजायी सुरूपा.
विपथगा विदशा सुकन्या भूषिता.
गतिमयी क्षिप्रा शिवा मेकलसुता.
मतिमयी मन्मथजयी लावण्यदा.
रतिमयी उन्मादिनी वैराग्यदा.
यतिमयी भवत्यागिनी शिववीर्यदा.
दिव्यरूपा तारिणी भयहांरिणी.
महार्णवा कमला निशंका मोक्षदा.
अम्ब रेवा करभ कालिंदी शुभा.
कृपा तमसा शिवज सुरसा मर्मदा.
तारिणी वरदायिनी नीलोत्पला.
क्षमा यमुना मेकला यश-कीर्तिदा.
साधना संजीवनी सुख-शांतिदा.
सलिल-इष्ट माँ भवानी नरमदा.
***
१२-१०-२०१४
मुक्तिका
मुस्कान
संजीव 'सलिल'
*
जिस चेहरे पर हो मुस्कान,
वह लगता हमको रस-खान..
अधर हँसें तो लगता है-
हैं रस-लीन किशन भगवान..
आँखें हँसती तो दिखते -
उनमें छिपे राम गुणवान..
उमा, रमा, शारदा लगें
रस-निधि कोई नहीं अनजान..
'सलिल' रस कलश है जीवन
सुख देकर बन जा इंसान..
*
१२-१०-२०१४

लघुकथा

लघु कथा
समय का फेर
*
गुरु जी शिष्य को पढ़ना-लिखना सिखाते परेशां हो गए तो खीझकर मारते हुए बोले- ' तेरी तकदीर में तालीम है ही नहीं तो क्या करुँ? तू मेरा और अपना दोनों का समय बरबाद कार रहा है. जा भाग जा, इतने समय में कुछ और सीखेगा तो कमा खायेगा.'
गुरु जी नाराज तो रोज ही होते थे लेकिन उस दिन चेले के मन को चोट लग गयी. उसने विद्यालय आना बंद कर दिया, सोचा: 'आज भगा रहे हैं. ठीक है भगा दीजिये, लेकिन मैं एक दिन फ़िर आऊंगा... जरूर आऊंगा.'
गुरु जी कुछ दिन दुखी रहे कि व्यर्थ ही नाराज हुए, न होते तो वह आता ही रहता और कुछ न कुछ सीखता भी. धीरे-धीरे गुरु जी वह घटना भूल गए.
कुछ साल बाद गुरूजी एक अवसर पर विद्यालय में पधारे अतिथि का स्वागत कर रहे थे. तभी अतिथि ने पूछा- 'आपने पहचाना मुझे?'
गुरु जी ने दिमाग पर जोर डाला तो चेहरा और घटना दोनों याद आ गयी किंतु कुछ न कहकर चुप ही रहे.
गुरु जी को चुप देखकर अतिथि ही बोला- 'आपने ठीक पहचाना. मैं वही हूँ. सच ही मेरे भाग्य में विद्या पाना नहीं है, आपने ठीक कहा था किंतु विद्या देनेवालों का भाग्य बनाना मेरे भाग्य में है यह आपने नहीं बताया था.'
गुरु जी अवाक् होकर देख रहे थे समय का फेर.
**
१२-१०-२०१४ 

नवगीत

नवगीत
*
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
गए विदेशी पर देशी
अंग्रेज कर रहे शासन
भाषण देतीं सरकारें पर दे
न सकीं हैं राशन
मंत्री से संतरी तक कुटिल
कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
नेता-अफसर दुर्योधन हैं,
जज-वकील धृतराष्ट्र
धमकी देता सकल राष्ट्र
को खुले आम महाराष्ट्र
आँख दिखाते सभी
पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों
अपना घर
करते हम बर्बाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होगे आजाद?
खाप और फतवे हैं अपने
मेल-जोल में रोड़ा
भष्टाचारी चौराहे पर खाए
न जब तक कोड़ा
तब तक वीर शहीदों के
हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो
समाज में
ध्वस्त न हो मर्याद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
पनघट फिर आबाद हो
सकें, चौपालें जीवंत
अमराई में कोयल कूके,
काग न हो श्रीमंत
बौरा-गौरा साथ कर सकें
नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच
गाँव में
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
रीति-नीति, आचार-विचारों
भाषा का हो ज्ञान
समझ बढ़े तो सीखें
रुचिकर धर्म प्रीति
विज्ञान
सुर न असुर, हम आदम
यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो
हो पायेगा
धरती पर आबाद
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?
*
१२-१०-२०१४

गीत

गीत:
सहज हो ले रे अरे मन !
*
मत विगत को सच समझ रे.
फिर न आगत से उलझ रे.
झूमकर ले आज को जी-
स्वप्न सच करले सुलझ रे.

प्रश्न मत कर, कौन बूझे?
उत्तरों से कौन जूझे?
भुलाकर संदेह, कर-
विश्वास का नित आचमन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
उत्तरों का क्या करेगा?
अनुत्तर पथ तू वरेगा?
फूल-फलकर जब झुकेगा-
धरा से मिलने झरेगा.

बने मिटकर, मिटे बनकर.
तने झुककर, झुके तनकर.
तितलियाँ-कलियाँ हँसे,
ऋतुराज का हो आगमन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
स्वेद-सीकर से नहा ले.
सरलता सलिला बहा ले.
दिखावे के वसन मैले-
धो-सुखा, फैला-तहा ले.

जो पराया वही अपना.
सच दिखे जो वही सपना.
फेंक नपना जड़ जगत का-
चित करे सत आकलन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
सारिका-शुक श्वास-आसें.
देह पिंजरा घेर-फांसे.
गेह है यह नहीं तेरा-
नेह-नाते मधुर झाँसे.

भग्न मंदिर का पुजारी
आरती-पूजा बिसारी.
भारती के चरण धो, कर -
निज नियति का आसवन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
कैक्टस सी मान्यताएँ.
शूल कलियों को चुभाएँ.
फूल भरते मौन आहें-
तितलियाँ नाचें-लुभाएँ.

चेतना तेरी न हुलसी.
क्यों न कर ले माल-तुलसी?
व्याल मस्तक पर तिलक है-
काल का है आ-गमन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
12-10-2010 

शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

सरस्वती वंदना डॉ0सतीश चंद्र शर्मा "सुधांशु"

सरस्वती वंदना
डॉ0सतीश चंद्र शर्मा "सुधांशु"
*
माँ शारदे ममतामयी
करता तुझे शत-शत नमन।।
स्वर और व्यंजन रूप में
अन्तर्निहित उदबोध है ।
तेरी कृपा के बिना क्या
शिक्षा,कला परिबोध है।
माँ शारदे अमृतमयी
अर्पित तुझे श्रद्धा सुमन।।
तू कला की अभिव्यंजना
अलकापुरी है शिल्प की।
तू काल चिन्तन, भाव अरु
सम्भावना परिकल्प की ।
माँ शारदे गरिमामयी
अज्ञान तम करती हरण।।
हे मात ज्ञान प्रदायिनी
निज पुत्र को कुछ ज्ञान दे।
हो सृजन जन कल्याण हित
ऐसा मुझे वरदान दे ।
माँ शारदे महिमामयी
रच सकूँ पद, दोहा,भजन।।
*
-डॉ0सतीश चंद्र शर्मा "सुधांशु", प्र0सम्पादक "नये क्षितिज" पत्रिका त्रय मासिक
बाबू कुटीर,ब्रह्मपुरी पिंडारा रोड बिसौली-243720बदायूँ(उ0प्र0)
जन्म दिनांक/स्थान- 1मार्च 1054 ,बिसौली( बदायूँ)
माता-स्व0श्री मती कटोरी देवी
पिता-स्व0 श्री बाबू राम शर्मा
पत्नी-श्री मती कुसुम लता शर्मा
शिक्षा-स्नातक ,आई0जी0डी0बॉम्बे,
विद्या वाचस्पति,विद्या सागर
प्रकाशित पुस्तकें- 1-व्यंग की टंकार,2-दाग अच्छे हैं 3-चमचों का इंटरव्यू 4-काव्य सुमन 5-कलम का सिपाही (सभी व्यंग संग्रह)6-बस खिड़की भर आसमान(गीत संग्रह)7-अपनी परछाईयाँ(ग़ज़ल संग्रह)8- ठिल्लम ठिल्ला बड़ा चिबिल्ला (बाल काव्य)
उपलब्धि-6 पत्रिकाओं में विशेषांक,कवि विशेष के रूप में प्रकाशन, 100 से अधिक प्रमुख हिंदी पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन,कई पत्रिकाओं के गीत,ग़ज़ल विशेषांक में प्रकाशित।18 प्रान्तों की विभिन्न साहित्यिक सामाजिक संस्थाओं द्वारा 10 बार नकद धनराशि सहित 135 सम्मान प्राप्त।
के0बी0 हिंदी साहित्य समिति(पंजी0) के संस्थापक अध्यक्ष 2015 से तथा प्रति वर्ष भव्य समारोह में साहित्यकारों का सम्मान।अब तक 525 साहित्यकारों का सम्मान(3 5000₹ 45 साहित्यकार 2100₹ व 56 साहित्यकार 1100₹ एवम शेष शाल,सम्मान पत्र,प्रतीक चिन्ह से।
सम्पादित- भारत दर्शन (खण्ड काव्य) ,मिथिलेश दीक्षित का काव्य विमर्श व चिंतन , "नये क्षितिज" त्रय मासिक पत्रिका 2015 से।
सम्प्रति- उ0प्रदेश पुलिस से राजपत्रित अधिकारी पद से रिटायर्ड,स्वतंत्र लेखन,मंचो व आकाश वाणी/दूरदर्शन पर काव्य पाठ।
डाक पता-बाबू कुटीर' ,ब्रह्मपुरी पिंडारा रोड बिसौली-243720 बदायूँ (उ0प्रदेश) मोबा0 -8394034005
ईमेल-drsudhanshukavi2015@gmail.com

मानव छंद

मानव छंद
(१४ मात्रिक मानव जातीय छंद, यति ५-९)मापनी- २१ २, २२ १ २२
*
आँख में बाकी न पानी
बुद्धि है कैसे सयानी?
.
है धरा प्यासी न भूलो
वासना, हावी न मानी
.
कौन है जो छोड़ देगा
स्वार्थ, होगा कौन दानी?
.
हैं निरुत्तर प्रश्न सारे
भूल उत्तर मौन मानी
.
शेष हैं नाते न रिश्ते
हो रही है खींचतानी
.
देवता भूखे रहे सो
पंडितों की मेहमानी
.
मैं रहूँ सच्चा विधाता!
तू बना देना न ज्ञानी
.
संजीव, १०.१०.२०१८

अर्गला स्तोत्र

 अर्गला स्तोत्र हिंदी काव्यानुवाद सहित 
।।ॐ।। 
यह अर्गला स्तोत्र है।।
। ॐ अर्गला स्तोत्र मंत्र यह, विष्णु ऋषि ने रच गाया।
। छंद अनुष्टुप, महालक्ष्मी देव अंबिका-मन भाया ।
। सप्तशती के अनुष्ठान में, भक्त पाठ-विनियोग करें।
।ॐ चण्डिका मातु नमन शत, मारकंडे' नित जाप करें।
*
।ॐ जयंती मंगलाकाली, शांत कालिका कपालिनी।
। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री माँ, सुध-स्वःस्वाहा जय पालागी।१।
*
। जय-जय-जय देवी चामुंडा, दु:खहर्ता हर प्राणी की।
। व्याप्त सभी में रहनेवाली, कालयात्री जय पालागी।२।
*
। मधु-कैटभ वध कर ब्रम्हा को, वर देने वाली मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोह-विजय दो, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।३।
*
। महिषासुर-वधकर्ता माता, भक्तों को सुख दो मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।४।
*
। रक्तबीज संहारकारिणी, चण्ड-मुण्डहंता मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।५।
*
। शुम्भ-निशुम्भ, धूम्रलोचन का वध करनेवाली मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।६।
*
। युग-युग सबके द्वारा वन्दित, हे सब सुखदायिनी मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।७।
*
। रूप-चरित चिंतन से ज्यादा, सब दुश्मननाशक मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।८।
*
। चरणकमल में नत मस्तक जो, पाप हरें उनके मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।९।
*
। भक्तिपूर्वक जो पूजें, उनकी हर व्याधि हरो मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१०।
*
। उन्हें, तुम्हें जो भक्तिपूर्वक पूजें हे अंबे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।११।
*
। दो सौभाग्य परमसुख जननी!, दो आरोग्य मुझे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१२।
*
। द्वेष रखें जो उन्हें मिटाकर, मेरी शक्ति बढ़ा मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१३।
*
। देवी माँ! कल्याण करो दे संपति-सुख सब मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१४।
*
। शीश मुकुटमणि पग-तल घिसते, देव दनुज दोनों मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१५।
*
। ज्ञान-कीर्ति, धन-धान्य, लक्ष्मी, भक्तजनों को दो मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१६।
*
। दुर्दान्ती दनुजों का दर्प मिटानेवाली हे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१७।
*
। चतुर्भुजी विधि-वंदित हो, हे चौकर परमेश्वरी मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१८।
*
। कृष्णवर्ण विष्णु स्तुति करते, सदा तुम्हारी ही मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१९।
*
। हिमगिरि-तनया-पति शिव वंदित, हो तुम परमेश्वरी मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२०।
*
। इंद्राणी-पति सद्भवित हो, तुम्हें पूजते नित मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२१।
*
। अति प्रचण्ड दैत्यों को दण्डित, कर-कर दर्प-हरण मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२२।
*
। सदा-सदा आनंद असीमित, निज भक्तों के दे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२३।
*
। मन मोहे मन-माफ़िक जो, वह पत्नि प्रदान करो मैया!।
। श्रेष्ठ-कुला, संसार-समुद दुर्गम से, जो तारे मैया!।२४।
*
। करे अर्गला-स्तोत्र पाठ जो, सप्तशती संग-पढ़ मैया!।
। जप-संख्या अनुसार श्रेष्ठ फल, सुख-सम्पति पाता मैया!।२५।
*
। इति देवी का अर्गला स्तोत्र पूर्ण हुआ।
=========================
संजीव, ७९९९५५९६१८ / ९४२५१८३२४४

चित्रगुप्त प्रभु

 वन्दन

शरणागत हम
*
शरणागत हम
चित्रगुप्त प्रभु!
हाथ पसारे आये।
*
अनहद, अक्षय,अजर,अमर हे!
अमित, अभय,अविजित अविनाशी
निराकार-साकार तुम्हीं हो
निर्गुण-सगुण देव आकाशी।
पथ-पग, लक्ष्य, विजय-यश तुम हो
तुम मत-मतदाता प्रत्याशी।
तिमिर हटाने
अरुणागत हम
द्वार तिहांरे आये।
*
वर्ण, जात, भू, भाषा, सागर
अनिल, अनल,दिश, नभ, नद,गागर
तांडवरत नटराज ब्रम्ह तुम,
तुम ही बृज-रज के नटनागर।
पैग़ंबर, ईसा,गुरु बनकर
तारों अंश सृष्टि हे भास्वर!
आत्म जगा दो
चरणागत हम
झलक निहारें आये।
*
आदि-अंत, क्षय-क्षर विहीन हे!
असि-मसि,कलम-तूलिका हो तुम
गैर न कोई सब अपने हैं-
काया में हैं आत्म सभी हम।
जन्म-मरण,यश-अपयश चक्रित
छाया-माया,सुख-दुःख हो सम।
द्वेष भुला दो
करुणाकर हे!
सुनों पुकारें, आये।

*****
गुजरती अनुवाद
વન્દના

શરણાગત અમે

શરણાગત અમે
ચિત્રગુપ્ત પ્રભુ
હાથ પસારી આવ્યા .

અમાપ ,અખુંટા ,અજર ,અમર છે
અમિત ,અભય, અવિજયી, અવિનાશી,
નિરાકાર, સાકાર તમે છો
નિર્ગુણ ,સગુણ દેવ આકાશી
પથ -પગ લક્ષ્ય વિજય,યશ તમે છો
તમેજ મત -મતદાતા ,પ્રત્યાશી
અંધકાર મટાવા
સૂર્ય સમક્ષ અમે
દ્વાર તમારે આવ્યા .

વર્ણ ,જાત , ભૂ, ભાષા ,સાગર
અનિલ, અગ્નિ ,ખૂણો ,નભ, નદી ,ગાગર
તાંડવકરનાર નટરાજ બ્રહ્મ તમે
તમેજ બૃજ -રજ ના નટનાગર
પૈગમ્બર,ઈસા, ગુરુ બનીને
તારાજ અંશ શ્રુષ્ટિ છે ભાસ્વર
આત્મા જગાડવાને
ચરણાગત અમે
ઝલક નિહારવાને આવ્યા.

આદિ -અંત ,ક્ષય -ક્ષર વિહીન છે
કટાર-અંજન , કલમ તૂલિકા તમે છો
પારકા નથી કોઈ બધાંજ તમે છો
કાયા માં છે પોતાના બધા અમે
જન્મ -મરણ , યશ-અપયશ ચક્રીત
છાયા-માયા ,સુખ -દુઃખ સર્વ સરખા
દ્વેષ ભુલાવો
કરુણાકર છો
સાંભળો પોકારવાને આવ્યા .

મૂળ રચના :આચાર્ય સંજીવ વર્મા "સલિલ"

ભાવાનુવાદ :કલ્પના ભટ્ટ

मुक्तक

मुकतक :
प्रीत की रीत सरस गीत हुई
मीत सँग श्वास भी संगीत हुई
आस ने प्यास को बुझने न दिया
बिन कहे खूब बातचीत हुई
*
क्या कहूँ, किस तरह कहूँ बोलो?
नित नई कल्पना का रस घोलो
रोक देना न कलम प्रभु! मेरी
छंद ही श्वास-श्वास में घोलो
*
छंद समझे बिना कहे जाते
ज्यों लहर-साथ हम बहे जाते
बुद्धि का जब अधिक प्रयोग किया
यूं लगा घाट पर रहे जाते
*
गेयता हो, न हो भाव रहे
रस रहे, बिम्ब रहे, चाव रहे
बात ही बात में कुछ बात बने
बीच पानी में 'सलिल' नाव रहे
*
छंद में ही सवाल करते हो
छंद का क्यों बवाल करते हो?
है जगत दन्द-फन्द में उलझा
छंद देकर निहाल करते हो
*
छंद आते नहीं मगर लिखता
देखने योग्य नहीं, पर दिखता
कैसा बेढब है बजारी मौसम
कम अमृत पर अधिक गरल बिकता
*
छंद-छंद में बसे हैं, नटखट आनंदकंद
भाव बिम्ब रस के कसे कितने-कैसे फन्द
सुलझा-समझाते नहीं, कहते हैं खुद बूझ
तब ही सीखेगा 'सलिल' विकसित होगी सूझ
*
खून न अपना अब किंचित बहने देंगे
आतंकों का अरि-खूं से बदला लेंगे
सहनशीलता की सीमा अब ख़त्म हुई
हर ईंटे के बदले में पत्थर देंगे
*
कहाँ और कैसे हो कुछ बतलाओ तो
किसी सवेरे आ कुण्डी खटकाओ तो
बहुत दिनों से नहीं ठहाके लगा सका
बहुत जल चुका थोड़ा खून बढ़ाओ तो
*
जीवन की आपाधापी ही है सरगम-संगीत
रास-लास परिहास इसी में मन से मन की प्रीत
जब जी चाहे चाहों-बाँहों का आश्रय गह लो
आँख मिचौली खेल समय सँग, हँसकर पा लो जीत
*
मेरा गीत शहीद हो गया, दिल-दरवाज़ा नहीं खुला।
दुनियादारी हुई तराज़ू, प्यार न इसमें कभी तुला।।
राह देख पथराती अखियाँ, आस निराश-उदास हुई-
किस्मत गुपचुप रही देखती, कभी न पाई विहँस बुला।।
*
रचनामृत का पान किया है मनुआ हुलस गया
गीत, गज़ल, कविता, छंदों से जियरा पुलक गया
समाचार, लघुकथा, समीक्षा चटनी, मीठा, पान
शब्द-भोज से तृप्त आत्मा-पंछी कुहुक गया
*

हाइकु, जनक छंद, क्षणिका, दोहा, सोरठा, शे'र

हाइकु :
ईंट रेत का
मंदिर मनहर
देव लापता
*
जनक छंद
नोबल आया हाथ जब
उठा गर्व से माथ तब
आँख खोलना शेष अब
*
क्षणिका :
पुज परनारी संग
श्री गणेश गोबर हुए।
रूप - रूपए का खेल
पुजें परपुरुष साथ पर
लांछित हुईं न लक्ष्मी।
दोहा :
तुलसी जब तुल सी गयी, नागफनी के साथ।
वह अंदर; बाहर हुई, तुलसी विवश उदास।।
*
सोरठा :
घटे रमा की चाह, चाह शारदा की बढ़े
गगन न देता छाँह, भले शीश पर जा चढ़े
*
शे'र :
लिए हाथों में अपना सर चले पर।
नहीं मंज़िल को सर कर सके हैं हम।
*
लघुकथा:
बुद्धिजीवी और बहस
संजीव
*
'आप बताते हैं कि बचपन में चौपाल पर रोज जाते थे और वहाँ बहुत कुछ सीखने को मिलता था। क्या वहाँ पर ट्यूटर आते थे?'
'नहीं बेटा! वहाँ कुछ सयाने लोग आते थे जिनकी बातें बाकि सभी लोग सुनते-समझते और उनसे पूछते भी थे।'
'अच्छा, तो वहाँ टी. वी. की तरह बहस और आरोप भी लगते होंगे?'
'नहीं, ऐसा तो कभी नहीं होता था।'
'यह कैसे हो सकता है? लोग हों, वह भी बुद्धिजीवी और बहस न हो... आप गप्प तो नहीं मार रहे?'
दादा समझाते रहे पर पोता संतुष्ट न हो सका और शुरू हो गयी बेमतलब बहस।
*

राजस्थानी मुक्तिका संजीव

राजस्थानी मुक्तिका
संजीव 
*
घाघरियो घुमकाय
मरवण घणी सुहाय 
*
गोरा-गोरा गाल 
मरते दम मुसकाय 
*
नैणा फोटू खैंच 
हिरदै लई मँढाय 
*
तारां छाई रात 
जाग-जगा भरमाय 
*
जनम-जनम रै संग 
ऐसो लाड़ लड़ाय 
*
देवी-देव मनाय  
मरियो साथै जाय 
*
           

लेख : राजस्थानी पर्व : संस्कृति और साहित्य - बुलाकी शर्मा

लेख :
राजस्थानी पर्व : संस्कृति और साहित्य
- बुलाकी शर्मा
*
लेखक परिचय 
जन्म - १ मई, १९५७, बीकानेर ।
राजस्थानी और हिंदी में चार दशकों से अधिक समय से लेखन । ३० के लगभग पुस्तकें प्रकाशित ।
व्यंग्यकार, कहानीकार, स्तम्भलेखक के रूप में खास पहचान । दैनिक भास्कर, बीकानेर सहित कई समाचार पत्रों में  वर्षों से साप्ताहिक व्यंग्य स्तम्भ लेखन ।
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली से राजस्थानी कहानी संग्रह - ' मरदजात अर दूजी कहानियां '
को सर्वोच्च राजस्थानी साहित्य पुरस्कार, २०१८। 
राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर का शिवचंद्र भरतिया गद्य पुरस्कार राजस्थानी कहानी संग्रह ' हिलोरो ' पर, वर्ष १९९६, राजस्थान साहित्य अकादमी से कन्हैया लाल सहल पुरस्कार हिंदी व्यंग्य संग्रह 'दुर्घटना के इर्दगिर्द ' पर, १९९९।  
अनेकानेक मान- सम्मान- पुरस्कार।  
*
हिंदी के सुपरिचित विद्वान आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी के द्वारा संचालित विश्व वाणी हिंदी संस्थान, जबलपुर लंबे समय से हिंदी भाषा और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए सराहनीय कार्य कर रही है। इस कार्य में सभी लोगों को जोड़ने के उद्देश्य से उन्होंने ' हिंदी भाषा और बोलियां ' व्हाट्सएप समूह भी शुरू कर रखा है। इस समय इस समूह के माध्यम से अलग-अलग भाषाओं और बोलियों के पर्व मनाए जा रहे हैं। पहले बुंदेली, बघेली, पचेली, निमाड़ी, मालवी और छत्तीसगढ़ी भाषा और बोलियों के पर्व मनाए गए और अब ५ अक्टूबर से ' राजस्थानी पर्व ' का शुभारंभ हुआ है जो २  सप्ताह तक चलेगा। इसके अंतर्गत राजस्थानी क्षेत्र का इतिहास, संस्कृति, साहित्य के साथ-साथ यहां के चित्रकला, भित्ति चित्रों सहित अनेक कला रूपों आदि के बारे में भी सहभागी साहित्यकार साथी जानकारी देंगे। इस २  सप्ताह के राजस्थानी पर्व के माध्यम से राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति के बारे में हम सभी अपने विचार साझा करेंगे और इन विचारों के माध्यम से अन्य भाषा क्षेत्रों के लोग भी हमारी राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति से पहले से ज्यादा परिचित हो सकेंगे, इसके लिए मैं आचार्य सलिल जी और उन की सक्रिय और समर्पित टीम में शामिल सुषमा सिंह जी, वीना सिंह जी सहित सभी का आभार प्रदर्शित करता हूं ।

राजस्थानी भाषा की ग्राह्यता और स्वीकारता 

आचार्य श्री संजीव वर्मा सलिल जी के निर्देश पर सुषमा सिंह जी ने मुझे ' राजस्थानी भाषा की ग्राह्यता और स्वीकार्यता ' पर अपने विचार साझा करने का आग्रह किया, इसके लिए उनका साधुवाद । हमारी मातृभाषा राजस्थानी बहुत प्राचीन भाषा है ।इसकी एक समृद्ध और सुदीर्घ सांस्कृतिक परंपरा रही है । वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसका बहुत महत्व रहा है । राजस्थानी भाषा के अंकुर अपभ्रंश की कोख से आठवीं शताब्दी के अंदर दिखने लगे थे, जिसका प्रभाव उस समय के जैन कवि उद्योतन सूरि की रचना ' कवलय माला कहा ' में दृष्टिगत होता है । २ लाख से भी अधिक राजस्थानी की प्राचीन पांडुलिपियां हैं, जो गुजरात और मध्य प्रदेश की शोध संस्थाओं, प्रतिष्ठानों, म्यूजियमों, निजी पोथी खानों इत्यादि में पड़ी हैं । १५ वीं शताब्दी से लेकर १८ वीं शताब्दी के बीच की अनेक प्रसिद्ध पांडुलिपियां सरकारी प्रयासों से प्रकाशित हुई हैं ।

स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले राजस्थान की कई रियासतों और ठिकानों में सरकारी कामकाज की भाषा राजस्थानी ही थी । इसका प्रमाण राजकीय अभिलेखागार और जिला अभिलेखागार के अंदर सुरक्षित पट्टा पोली, फरमान, रुक्का, परवाना आदि दस्तावेज हैं । बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर सहित अनेक रियासतों और ठिकानों में राजस्थानी भाषा में ही कामकाज होता था। इससे स्पष्ट है कि राजस्थानी भाषा आरंभ से ही ग्राह्य और स्वीकार्य थी किंतु आजादी के पश्चात इसको संवैधानिक मान्यता नहीं मिल पाने से वह आज तक अपने वाजिब अधिकार के लिए संघर्षरत है । आज भी राजस्थानी भाषा करोड़ों कण्ठों में बसी है । राजस्थानी का वाशिंदा देश- विदेश के किसी भी कोने में रहता हो, वह अपनी मातृभाषा राजस्थानी में ही अपनों के बीच संवाद करता रहा है । हम राजस्थानी भाषियों को यह दर्द सालता रहता है कि इतनी समृद्ध और सम्पन्न राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता अब तक नहीं मिल पायी है किंतु यह सच्चाई है कि यह राजस्थान के जन-जन की भाषा है । यहां के जन नेता भी इस सच को स्वीकारते रहे हैं। चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल से सम्बद्ध हों । जब भी वे वोटों के लिए आमजन से संवाद करते हैं, जब सार्वजनिक सभाएं करते हैं, तब अपनी बात राजस्थानी भाषा में ही करते हैं । क्योंकि वे जानते हैं कि राजस्थानी में बात किए बिना उनकी बात का असर नहीं पड़ेगा। 

हमारी राजस्थानी भाषा और साहित्य की सामर्थ्य का गुणगान विश्वकवि रविंद्र नाथ टैगोर, महामना मदन मोहन मालवीय, विदेशी विद्वान डॉक्टर ग्रियर्सन, डॉक्टर एल पी टेसीटोरी, मैकलिस्टर, भारतीय भाषाविद सुनीति कुमार चातुरज्या सहित अनेकानेक विभूतियों ने किया है ।साहित्य अकादमी नई दिल्ली वर्षों से अन्य भारतीय भाषाओं के साथ राजस्थानी भाषाओं की पुस्तकों को भी प्रतिवर्ष पुरस्कृत करती रही है । राजस्थान में राज्य सरकार ने स्वायत्तशासी राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का गठन वर्षों पहले किया था । राजस्थानी भाषा की सामर्थ्य पूरा विश्व मानता है और इस की ग्राह्यता और स्वीकार्यता में किसी को कोई संदेह नहीं है किंतु एक चिंता सब को परेशान किए है । वह चाहे राजस्थानी भाषा हो या हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाएँ, हम शनै: शनै: अपनी मातृ भाषाओं और संस्कृति से कटते जा रहे हैं । बच्चों के भविष्य बनाने के सपनों में उलझे हम उन्हें अंग्रेजी माध्यम की स्कूलों में पढ़ाने को प्राथमिकता देने लगे हैं और चाहते हैं कि बच्चे घर में भी अंग्रेजी में ही हमसे बात करे । मैं सभी भाषाओं का पूरा सम्मान करता हूँ क्योंकि भाषाएं हमें एक-दूसरे को जोड़ने का पुल हैं। हमें अंग्रेजी सहित अन्य विदेशी भाषाएं भी सीखनी चाहिए किन्तु अपनी भाषा और संस्कृति को अपनी जन्मदात्री माँ की तरह सर्वोच्च आदर और सम्मान देना कभी नहीं भूलें । 

- संपर्क : सीताराम द्वार के सामने, जस्सूसर गेट के बाहर, बीकानेर -334004 राजस्थान
*
*
हिंदी के सुपरिचित विद्वान आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी के द्वारा संचालित विश्व वाणी हिंदी संस्थान, जबलपुर लंबे समय से हिंदी भाषा और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए सराहनीय कार्य कर रही है। इस कार्य में सभी लोगों को जोड़ने के उद्देश्य से उन्होंने ' हिंदी भाषा और बोलियां ' व्हाट्सएप समूह भी शुरू कर रखा है। इस समय इस समूह के माध्यम से अलग-अलग भाषाओं और बोलियों के पर्व मनाए जा रहे हैं। पहले बुंदेली, बघेली, पचेली, निमाड़ी, मालवी और छत्तीसगढ़ी भाषा और बोलियों के पर्व मनाए गए और अब ५ अक्टूबर से ' राजस्थानी पर्व ' का शुभारंभ हुआ है जो २  सप्ताह तक चलेगा। इसके अंतर्गत राजस्थानी क्षेत्र का इतिहास, संस्कृति, साहित्य के साथ-साथ यहां के चित्रकला, भित्ति चित्रों सहित अनेक कला रूपों आदि के बारे में भी सहभागी साहित्यकार साथी जानकारी देंगे। इस २  सप्ताह के राजस्थानी पर्व के माध्यम से राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति के बारे में हम सभी अपने विचार साझा करेंगे और इन विचारों के माध्यम से अन्य भाषा क्षेत्रों के लोग भी हमारी राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति से पहले से ज्यादा परिचित हो सकेंगे, इसके लिए मैं आचार्य सलिल जी और उन की सक्रिय और समर्पित टीम में शामिल सुषमा सिंह जी, वीना सिंह जी सहित सभी का आभार प्रदर्शित करता हूं ।

राजस्थानी भाषा की ग्राह्यता और स्वीकारता 

आचार्य श्री संजीव वर्मा सलिल जी के निर्देश पर सुषमा सिंह जी ने मुझे ' राजस्थानी भाषा की ग्राह्यता और स्वीकार्यता ' पर अपने विचार साझा करने का आग्रह किया, इसके लिए उनका साधुवाद । हमारी मातृभाषा राजस्थानी बहुत प्राचीन भाषा है ।इसकी एक समृद्ध और सुदीर्घ सांस्कृतिक परंपरा रही है । वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसका बहुत महत्व रहा है । राजस्थानी भाषा के अंकुर अपभ्रंश की कोख से आठवीं शताब्दी के अंदर दिखने लगे थे, जिसका प्रभाव उस समय के जैन कवि उद्योतन सूरि की रचना ' कवलय माला कहा ' में दृष्टिगत होता है । २ लाख से भी अधिक राजस्थानी की प्राचीन पांडुलिपियां हैं, जो गुजरात और मध्य प्रदेश की शोध संस्थाओं, प्रतिष्ठानों, म्यूजियमों, निजी पोथी खानों इत्यादि में पड़ी हैं । १५ वीं शताब्दी से लेकर १८ वीं शताब्दी के बीच की अनेक प्रसिद्ध पांडुलिपियां सरकारी प्रयासों से प्रकाशित हुई हैं ।

स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले राजस्थान की कई रियासतों और ठिकानों में सरकारी कामकाज की भाषा राजस्थानी ही थी । इसका प्रमाण राजकीय अभिलेखागार और जिला अभिलेखागार के अंदर सुरक्षित पट्टा पोली, फरमान, रुक्का, परवाना आदि दस्तावेज हैं । बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर सहित अनेक रियासतों और ठिकानों में राजस्थानी भाषा में ही कामकाज होता था। इससे स्पष्ट है कि राजस्थानी भाषा आरंभ से ही ग्राह्य और स्वीकार्य थी किंतु आजादी के पश्चात इसको संवैधानिक मान्यता नहीं मिल पाने से वह आज तक अपने वाजिब अधिकार के लिए संघर्षरत है । आज भी राजस्थानी भाषा करोड़ों कण्ठों में बसी है । राजस्थानी का वाशिंदा देश- विदेश के किसी भी कोने में रहता हो, वह अपनी मातृभाषा राजस्थानी में ही अपनों के बीच संवाद करता रहा है । हम राजस्थानी भाषियों को यह दर्द सालता रहता है कि इतनी समृद्ध और सम्पन्न राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता अब तक नहीं मिल पायी है किंतु यह सच्चाई है कि यह राजस्थान के जन-जन की भाषा है । यहां के जन नेता भी इस सच को स्वीकारते रहे हैं। चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल से सम्बद्ध हों । जब भी वे वोटों के लिए आमजन से संवाद करते हैं, जब सार्वजनिक सभाएं करते हैं, तब अपनी बात राजस्थानी भाषा में ही करते हैं । क्योंकि वे जानते हैं कि राजस्थानी में बात किए बिना उनकी बात का असर नहीं पड़ेगा। 

हमारी राजस्थानी भाषा और साहित्य की सामर्थ्य का गुणगान विश्वकवि रविंद्र नाथ टैगोर, महामना मदन मोहन मालवीय, विदेशी विद्वान डॉक्टर ग्रियर्सन, डॉक्टर एल पी टेसीटोरी, मैकलिस्टर, भारतीय भाषाविद सुनीति कुमार चातुरज्या सहित अनेकानेक विभूतियों ने किया है ।साहित्य अकादमी नई दिल्ली वर्षों से अन्य भारतीय भाषाओं के साथ राजस्थानी भाषाओं की पुस्तकों को भी प्रतिवर्ष पुरस्कृत करती रही है । राजस्थान में राज्य सरकार ने स्वायत्तशासी राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का गठन वर्षों पहले किया था । राजस्थानी भाषा की सामर्थ्य पूरा विश्व मानता है और इस की ग्राह्यता और स्वीकार्यता में किसी को कोई संदेह नहीं है किंतु एक चिंता सब को परेशान किए है । वह चाहे राजस्थानी भाषा हो या हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाएँ, हम शनै: शनै: अपनी मातृ भाषाओं और संस्कृति से कटते जा रहे हैं । बच्चों के भविष्य बनाने के सपनों में उलझे हम उन्हें अंग्रेजी माध्यम की स्कूलों में पढ़ाने को प्राथमिकता देने लगे हैं और चाहते हैं कि बच्चे घर में भी अंग्रेजी में ही हमसे बात करे । मैं सभी भाषाओं का पूरा सम्मान करता हूँ क्योंकि भाषाएं हमें एक-दूसरे को जोड़ने का पुल हैं। हमें अंग्रेजी सहित अन्य विदेशी भाषाएं भी सीखनी चाहिए किन्तु अपनी भाषा और संस्कृति को अपनी जन्मदात्री माँ की तरह सर्वोच्च आदर और सम्मान देना कभी नहीं भूलें । 

- संपर्क : सीताराम द्वार के सामने, जस्सूसर गेट के बाहर, बीकानेर -334004 राजस्थान
*

दोहा सलिला

 दोहा सलिला :

*
सृजन कुञ्ज में खिल रहे, शत-शत दोहा फूल। 
अनिल धूप गति यति सदृश, भू नभ दो पद कूल।।
*
पाखी के दो पर चरण, चंचु पदादि समान। 
पैर पदांत गतिज रहें, नयन कहन ज्यों बान।।
*
पद्म सदृश पुष्पा रहे, विश्वबंधु बन कथ्य।   
मधुरस्मृति रवि किरण की,ममता सम युग सत्य।।
*
विपुल भाव; रस अश्क़ हैं, चिर अनुराग सुधीर। 
 अमृत सागर पा उषा, भू उतरी नभ चीर।।
*
हिंदुस्तानी हम सभी, निर्मल सलिल प्रशांत। 
मत निर्जीव समझ जगत, हम संजीव सुशांत।।
*  
१०-१०-२०२०

दोहा सलिला

दोहा सलिला :
*
सृजन कुञ्ज में खिल रहे, शत-शत दोहा फूल।
अनिल धूप गति यति सदृश, भू नभ दो पद कूल।।
*
पाखी के दो पर चरण, चंचु पदादि समान। 
पैर पदांत गतिज रहें, नयन कहन ज्यों बान।।
*
पद्म सदृश पुष्पा रहे, विश्वबंधु बन कथ्य।   
मधुरस्मृति रवि किरण की,ममता सम युग सत्य।।
*
विपुल भाव; रस अश्क़ हैं, चिर अनुराग सुधीर। 
 अमृत सागर पा उषा, भू उतरी नभ चीर।।
*
हिंदुस्तानी हम सभी, निर्मल सलिल प्रशांत। 
मत निर्जीव समझ जगत, हम संजीव सुशांत।।
*  
१०-१०-२०२०                                                                                                                                                     

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2020

हाइकु

 हाइकु

*
शेरपा शिखर
सफलता पखेरू
आकर गया
*
शेरपा हौसला
जिंदगी है चढ़ाई
कोशिश जयी
*
सिर हो ऊँचा
हमेशा पहाड़ सा
आकाश छुए
*
नदी बनिए
औरों की प्यास बुझा
खुश रहिए
*
आशा-विश्वास
खुद पर भरोसा
शेरपा धनी
***
संजीव
८-१०-१९
९४२५१८३२४४

सरस्वती-वन्दना' -देवकीनन्दन'शान्त'

 'सरस्वती-वन्दना'

-देवकीनन्दन'शान्त',साहित्यभूषण

* * * *
मां,मुझे गुनगुनाने का वर दे !
मेरी सांसों में संगीत भर दे !!

छन्द को भाव रसखान का दे !
गीत को दर्द इन्सान का दे !!
मेरी ग़ज़लें मुहब्बत भरी हों ;
दें मुझे ध्यान भगवान का दे ,
काव्य को कुछ तो अपना असर दे

सत्य बोलूं लिखूं शब्द स्वर दे !
या न बोलें जो ऐसे अधर दे !!
झूठ कैसा भी हो झूठ ही है ;
झूठ के पंख सच से क़तर दे !!
हौसले से भरी हर डगर दे

राष्ट्र-हित से जुड़ी भावना दे !
विश्व कल्याण की कामना दे !!
धर्म मज़हब समा जाएं जिसमें ;
योग जप-तप पगी साधना दे
जग को सुख-शान्तिआठोंपहर दे

'शान्त'शब्दों को चिंगारियां दे !
जग की पीड़ा को अमराइयां दे!!
कल्पना दे गरुड़ पंख जैसी ;
मेरे अनुभव को गहराइयां दे!!
मुझ पे इतनी कृपा और कर दे

मां मुझे गुनगुनाने का वर दे !
मेरी सांसों में संगीत भर दे !!

*
10/302,Indiranagar, लखनऊ-226016(UP)
9935217841, shantdeokin@gmail.com