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मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

स्पर्श चिकित्सा, हस्त मुद्रा, डी.सी. जैन

कृति चर्चा-
'स्पर्श चिकित्सा एवं मुद्रा विज्ञान रहस्य' - काया रखिए स्वस्थ्य
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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                    तरंगाें से छूकर दी जाने वाली ऊर्जा ही स्पर्श चिकित्सा है। शरीर की व्याधियाँ, बीमारियाँ या रोग दाे प्रकार से दूर किए जा सकते हैं। रासायनिक ऊर्जा (केमिकल एनर्जी) अर्थात आहार अथवा औषधियाओं द्वारा तथा ब्रह्मांडीय ऊर्जा (यूनिवर्सल एनर्जी) अर्थात तरंगाें के माध्यम से किया जाने वाला इलाज। रोगी को छूकर तरंगों के माध्यम से की जानेवाली चिकित्सा पद्धति ही स्पर्श चिकित्सा है। प्राचीन जापानी उपचार तकनीक रेकी में हाथों का उपयोग कर बाधित ऊर्जा को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुधारने के लिए प्रयोग किया जाता है। हमारी काया (देह, तन या शरीर) में आत्मा के रूप में ऊर्जा जन्मजात होती है। यह ऊर्जा शिथिल हो तो व्यक्ति बीमार होता है। औषधि (दवा, मेडिसन) या शल्यक्रिया (सर्जरी) का उपयोग बाह्य हस्तक्षेप कर शरीर का रसायन (केमेस्ट्री) बदलने का प्रयास किया जाता है। यह तरीका बीमारी से छुटकारा दिलाता है किंतु किसी अन्य स्तर पर भिन्न दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) उत्पन्न कर देता है। योगाभ्यास अथवा स्पर्श चिकित्सा अपनाकर ऐसे दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। लाक्षणिक चिकित्सा पद्धतियाँ रोग के लक्षणों का शमन करती हैं किंतु रोग की जड़ का उन्मूलन नहीं करतीं। स्पर्श चिकित्सा पद्धति रोग के लक्षणों का उपचार नहीं, रोग की जड़ का उन्मीलन ऊर्जा संचार द्वारा करते हैं जिसका कोई अन्य दुष्प्रभाव नहीं होता। स्पर्श साधना सिद्धि से हम अपनी सामान्य सीमाओं को पार कर ऐसी शक्ति प्राप्त कर पाते हैं जो व्याधियों की जड़ का उन्मूलन करती हैं।

                    भारत में प्राचीन काल से स्पर्श चिकित्सा तथा मुद्रा विज्ञान की साधना की जाती रही है। भगवान शिव, महावीर, बुद्ध आदि को देखें तो वे एक विशिष्ट आसान में बैठे होते हैं, उनके नेत्र और हाथ विशिष्ट भंगिमा में होते हैं। जन सामान्य इसे देखकर भी अनदेखा कर देता है चूँकि उसे इस विषय पर कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। अभियंता डी. सी. जैन जी ने सपार्ष चिकित्सा तथा मुद्रा विज्ञान विषयक सनातन सिद्धांतों का अध्ययन और अभ्यास कर इसे लोक कल्याण हेतु पुस्तक के रूप में उपलब्ध कराकर पुण्य अर्जित किया है। हिंदी में इस विषय पर साहित्य का नितांत अभाव है। कुछ व्यावसायिक जन आधा-अधूरा ज्ञान प्राप्त कर स्पर्श चिकित्सा करते हैं किंतु वे रोगी को संपूरण ज्ञान नहीं देते ताकि रोगी उनके परामर्श हेतु बाध्य होकर उन्हें अर्थ लाभ कराता रहे। श्री जैन ने 'स्पर्श चिकित्सा एवं मुद्रा विज्ञान रहस्य' सहर्षक कृति का लेखन-प्रकाशन कर इस दुर्लभ ज्ञान को सर्व साधारण के लिए सुलभ किया है। 

                    'स्पर्श चिकित्सा एवं मुद्रा विज्ञान रहस्य' पुस्तक में सात चक्रों, ऊर्जा बंध, प्रतिरोधक शक्ति वृद्धि, नाड़ी संस्थान, विशुद्धि चक्र, मणिपुर चक्र, मूलाधार चक्र, स्वाधिसठन चक्र, कोणीय ऊर्जा आदि को कहलाने तथा ऊर्जित करने की प्रामाणिक जानकारी दी गई है। विशिष्ट रोगों (हृदरोग, सिर दर्द, चक्कर आना, कमर दर्द, आँखों और गले के रोग, पाचन रोग, मूत्र विकार, थायराइड ग्रन्थि, माइग्रेन, गाल ब्लेडर, लीवर, रक्त प्रवाह, साइटिका आदि) से उपजे विकारों की स्पर्श चिकित्सा संबंधी विधि चित्रों सहित दी गई है। श्री जैन ने स्वयं स्पर्श चिकित्सा तथा हस्त मुद्राओं का अभ्यास कार अपनी व्याधियों पर नियंत्रण किया है। लगभग ९० वर्ष की आयु में भी श्री जैन सक्रिय हैं, इसका कारण वे अपनी स्वास्थ्य-साधना को ही मानते हैं। यह लोकोपयोगी कृति हर घर में होना चाहिए और हर व्यक्ति को आवश्यकतानुसार हस्त मुद्राओं, स्पर्श चिकित्सा और योग आसनों का अभ्यास करना चाहिए। 

वास्तव में शालेय स्तर पर इस पुस्तक की विषय वस्तु प्राथमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रम में सम्मिलित की जाना चाहिए। अध्यापकों को स्पर्श चिकित्सा और हस्त मुद्राओं का प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे विद्यार्थियों को सिखा सकें और हमारी भावी पीढ़ी शारीरिक मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहकर जियावन के हर क्षेत्र में विजय पटक फहरा सके। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि इन्हीं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों का अनुशीलन और अभ्यास दीर्घायु रहते रहे हैं। श्री जैन इस स्तुत्य कार्य हेतु साधुवाद के पात्र हैं। 
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