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सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

होली


होली खेलें सिया की सखियाँ - स्व. शांति देवी वर्मा

होली खेलें सिया की सखियाँ,
जनकपुर में छायो उल्लास....

रजत कलश में रंग घुले हैं, मलें अबीर सहास.
होली खेलें सिया की सखियाँ...

रंगें चीर रघुनाथ लला का, करें हास-परिहास.
होली खेलें सिया की सखियाँ...

एक कहे: 'पकडो, मुंह रंग दो, निकरे जी की हुलास.'
होली खेलें सिया की सखियाँ...

दूजी कहे: 'कोऊ रंग चढ़े ना, श्याम रंग है खास.'
होली खेलें सिया की सखियाँ...

सिया कहें: ' रंग अटल प्रीत का, कोऊ न अइयो पास.'
होली खेलें सिया की सखियाँ...

सियाजी, श्यामल हैं प्रभु, कमल-भ्रमर आभास.
होली खेलें सिया की सखियाँ...

'शान्ति' निरख छवि, बलि-बलि जाए, अमिट दरस की प्यास.
होली खेलें सिया की सखियाँ...



होली खेलें चारों भाई - स्व. शांति देवी वर्मा

होली खेलें चारों भाई, अवधपुरी के महलों में...

अंगना में कई हौज बनवाये, भांति-भांति के रंग घुलाये.
पिचकारी भर धूम मचाएं, अवधपुरी के महलों में...

राम-लखन पिचकारी चलायें, भारत-शत्रुघ्न अबीर लगायें.
लखें दशरथ होएं निहाल, अवधपुरी के महलों में...

सिया-श्रुतकीर्ति रंग में नहाई, उर्मिला-मांडवी चीन्ही न जाई.
हुए लाल-गुलाबी बाल, अवधपुरी के महलों में...

कौशल्या कैकेई सुमित्रा, तीनों माता लेंय बलेंयाँ.
पुरजन गायें मंगल फाग, अवधपुरी के महलों में...

मंत्री सुमंत्र भेंटते होली, नृप दशरथ से करें ठिठोली.
बूढे भी लगते जवान, अवधपुरी के महलों में...

दास लाये गुझिया-ठंडाई, हिल-मिल सबने मौज मनाई.
ढोल बजे फागें भी गाईं,अवधपुरी के महलों में...

दस दिश में सुख-आनंद छाया, हर मन फागुन में बौराया.
'शान्ति' संग त्यौहार मनाया, अवधपुरी के महलों में...


होली
दोहा मुक्तिका (दोहा ग़ज़ल):
दोहा का रंग होली के संग :
*
होली हो ली हो रहा, अब तो बंटाधार.
मँहगाई ने लील ली, होली की रस-धार..
*
अन्यायी पर न्याय की, जीत हुई हर बार..
होली यही बता रही, चेत सके सरकार..
*
आम-खास सब एक है, करें सत्य स्वीकार.
दिल के द्वारे पर करें, हँस सबका सत्कार..
*
ससुर-जेठ देवर लगें, करें विहँस सहकार.
हँसी-ठिठोली कर रही, बहू बनी हुरियार..
*
कचरा-कूड़ा दो जला, साफ़ रहे संसार.
दिल से दिल का मेल ही, साँसों का सिंगार..
*
जाति, धर्म, भाषा, वसन, सबके भिन्न विचार.
हँसी-ठहाके एक हैं, नाचो-गाओ यार..
*
गुझिया खाते-खिलाते, गले मिलें नर-नार.
होरी-फागें गा रहे, हर मतभेद बिसार..
*
तन-मन पुलकित हुआ जब, पड़ी रंग की धार.
मूँछें रंगें गुलाल से, मेंहदी कर इसरार..
*
यह भागी, उसने पकड़, डाला रंग निहार.
उस पर यह भी हो गयी, बिन बोले बलिहार..
*
नैन लड़े, झुक, उठ, मिले, कर न सके इंकार.
गाल गुलाबी हो गए, नयन शराबी चार..
*
दिलवर को दिलरुबा ने, तरसाया इस बार.
सखियों बीच छिपी रही, पिचकारी से मार..
*
बौरा-गौरा ने किये, तन-मन-प्राण निसार.
द्वैत मिटा अद्वैत वर, जीवन लिया सँवार..
*
रतिपति की गति याद कर, किंशुक है अंगार.
दिल की आग बुझा रहा, खिल-खिल बरसा प्यार..
*
मन्मथ मन मथ थक गया, छेड़ प्रीत-झंकार.
तन ने नत होकर किया, बंद कामना-द्वार..
*
'सलिल' सकल जग का करे, स्नेह-प्रेम उद्धार.
युगों-युगों मनता रहे, होली का त्यौहार..
२५-२-२०११
***
होली की कुण्डलियाँ:
मनायें जमकर होली
*
होली हो ली हो रही होगी फिर-फिर यार
मोदी राहुल ममता माया जयललिता तैयार
जयललिता तैयार न जीवनसाथी-बच्चे
इसीलिये तो दाँव न चलते कोई कच्चे
कहे 'सलिल' कवि बच्चेवालों की जो टोली
बचकर रहे न गीतका दें ये भंग की गोली
*
होली अनहोली न हो, खायें अधिक न ताव.
छेड़-छाड़ सीमित करें, अधिक न पालें चाव..
अधिक न पालें चाव, भाव बेभाव बढ़े हैं.
बचें करेले सभी, नीम पर साथ चढ़े हैं..
कहे 'सलिल' कविराय, न भोली है अब भोली.
बचकर रहिये आप, मनायें जम भी होली..
*
होली जो खेले नहीं, वह कहलाये बुद्ध.
माया को भाये सदा, सत्ता खातिर युद्ध..
सत्ता खातिर युद्ध, सोनिया को भी भाया.
जया, उमा, ममता, सुषमा का भारी पाया..
मर्दों पर भारी है, महिलाओं की टोली.
पुरुष सम्हालें चूल्हा-चक्की अबकी होली..
*
होली ने खोली सभी, नेताओं की पोल.
जिसका जैसा ढोल है, वैसी उसकी पोल..
वैसी उसकी पोल, तोलकर करता बातें.
लेकिन भीतर ही भीतर करता हैं घातें..
नकली कुश्ती देख भ्रमित है जनता भोली.
एक साथ मिल खर्चे बढ़वा खेलें होली..
होली २०१५
***
होली के दोहे
*
होली हो ली हो रही, होली हो ली हर्ष
हा हा ही ही में सलिल, है सबका उत्कर्ष
होली = पर्व, हो चुकी, पवित्र, लिए हो
*
रंग रंग के रंग का, भले उतरता रंग
प्रेम रंग यदि चढ़ गया कभी न उतरे रंग
*
पड़ा भंग में रंग जब, हुआ रंग में भंग
रंग बदलते देखता, रंग रंग को दंग
*
शब्द-शब्द पर मल रहा, अर्थ अबीर गुलाल
अर्थ-अनर्थ न हो कहीं, मन में करे ख़याल
*
पिच् कारी दीवार पर, पिचकारी दी मार
जीत गई झट गंदगी, गई सफाई हार
*
दिखा सफाई हाथ की, कहें उठाकर माथ
देश साफ़ कर रहे हैं, बँटा रहे चुप हाथ
*
अनुशासन जन में रहे, शासन हो उद्दंड
दु:शासन तोड़े नियम, बना न मिलता दंड
*
अलंकार चर्चा न कर, रह जाते नर मौन
नारी सुन माँगे अगर, जान बचाए कौन?
*
गोरस मधुरस काव्य रस, नीरस नहीं सराह
करतल ध्वनि कर सरस की, करें सभी जन वाह
*
जला गंदगी स्वच्छ रख, मनु तन-मन-संसार
मत तन मन रख स्वच्छ तू, हो आसार में सार
*
आराधे राधे; कहे आ राधे! घनश्याम
वाम न होकर वाम हो, क्यों मुझसे हो श्याम
होली २०१८
***
अबकी फागुन में शरारत ये मेरे साथ हुई
मोदी-ममता की लगावट, हुई खटास मुई
युद्ध बंगाल का कुरुक्षेत्र से संगीन अधिक
तीर-तलवार चला कह रहे, चुभा न सुई
रंगे हाथों न पकड़ जाएँ, कभी इस खातिर
दिल की रंगीनियों ने, दिमागी ज़मीं न छुई
*
मुक्तिका
होली मने
*
भावना बच पाए तो होली मने
भाव ना बढ़ पाएँ तो होली मने
*
काम ना मिल सके तो त्यौहार क्या
कामना हो पूर्ण तो होली मने
*
साधना की सिद्धि ही होली सखे!
साध ना पाए तो क्या होली मने?
*
वासना से दूर हो होली सदा
वास ना हो दूर तो होली मने
*
झाड़ ना काटो-जलाओ अब कभी
झाड़ना विद्वेष तो होली मने
*
लालना बृज का मिले तो मन खिले
लाल ना भटके तभी होली मने
*
साज ना छोड़े बजाना मन कभी
साजना हो साथ तो होली मने
***
होली सलिला
होरी के जे हुरहुरे
*
होरी के जे हुरहुरे, लिये स्नेह-सौगात
कौनऊ सुन मुसक्या रहे, कौनऊ दिल सहलात
कौनऊ दिल सहलात, किन्हऊ खों चढ़ि गओ पारा,
जिन खों पारा चढ़े, होय उनखों मूं कारा
कि बोलो सा रा रा रा
*मुठिया भरे गुलाल से, लै पिचकारी रंग।
शारद ब्रह्मा को रंगें, देखे सब जग दंग।।
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
काली जी पर कोई भी, चढ़ा न पाया रंग।
हुए लाल-पीले तुनक, शिव जी पीकर भंग।।
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
मुठिया भरे गुलाल से, लै पिचकारी रंग।
शारद गणपति को रंगें, रिद्धि-सिद्धि है दंग।।
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
भांग भवानी से भरे, सूँढ गजानन मौन।
पिएँ गटागट रोक दे, कहिए कैसे कौन।।
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
गुप्त चित्र पर डलेगा, कैसे कहिए रंग।
चित्रगुप्त की चतुरता, देखें देव अनंग।।
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
सिय बिन मूरत राम की, लगे अवध में आज।
होली कैसे मनाएँ, कहिए योगिराज।।
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
गो-गो कहते मातु से, राधा से 'कम सून'
लख महेश गोविन्द को, नचे शीश धर नून
कि बोलो सा रा रा रा
*
मंजु विजय की चाह ले, करें शुक्ल को श्याम
विद्या शंकर भज उमा, भांग पिएँ अविराम
कि बोलो सा रा रा रा
*
कोट पैंट भौजी पहिन, चली सुनाने फाग
चुप नरेंद्र भूषण सजा, नाचें धरकर स्वांग
कि बोलो सा रा रा रा
*
कविता पिचकारी लए, नारायन कुलदीप
फाग बाल्टी उड़ेलें, भउजी लै रंग डीप
कि बोलो सा रा रा रा
*
घनाक्षरी
*
नैन पिचकारी तान-तान बान मार रही, देख पिचकारी ​मोहे ​बरजो न राधिका
​आस-प्यास रास की न फागुन में पूरी हो तो, मुँह ही न फेर ले साँसों की साधिका
गोरी-गोरी देह लाल-लाल हो गुलाल सी, बाँवरे से ​साँवरे की कामना भी बाँवरी-
बैन​ से मना करे, सैन से हाँ हाँ कहे, नायक के आस-पास घूम-घूम नायिका ​
*
होली पर चढ़ाए भाँग, लबों से चुआए पान, झूम-झूम लूट रहे फाग गा मुशायरा
शायरी हसीन करें, तालियाँ बटोर चलें, हाय-हाय करती जलें-भुनेंगी शायरा
रंग गोविंद को, भंग कुलदीप को, भांग लै नरेंद्र संग सलिल हुआ है बावरा
कत्ल मुस्कान करे, कैंची सी जुबान चले, माइक से यारी, प्यारा लगे जैसे मायरा
*
काव्य की पिचकारी - आचार्य संजीव सलिल

रंगोत्सव पर काव्य की पिचकारी गह हाथ.
शब्द-रंग से कीजिये, तर अपना सिर-माथ

फागें, होरी गाइए, भावों से भरपूर.
रस की वर्षा में रहें, मौज-मजे में चूर.

भंग भवानी इष्ट हों, गुझिया को लें साथ
बांह-चाह में जो मिले उसे मानिए नाथ.

लक्षण जो-जैसे वही, कर देंगे कल्याण.
दूरी सभी मिटाइये, हों इक तन-मन-प्राण.


अबकी बार होली में - आचार्य संजीव सलिल

करो आतंकियों पर वार अबकी बार होली में.
न उनको मिल सके घर-द्वार अबकी बार होली में.

बना तोपोंकी पिचकारी चलाओ यार अब जी भर.
निशाना चूक न पाए, रहो गुलज़ार होली में.

बहुत की शांति की बातें, लगाओ अब उन्हें लातें.
न कर पायें घातें कोई अबकी बार होली में.

पिलाओ भांग उनको फिर नचाओ भांगडा जी भर.
कहो बम चला कर बम, दोस्त अबकी बार होली में.

छिपे जो पाक में नापाक हरकत कर रहे जी भर.
करो बस सूपड़ा ही साफ़ अब की बार होली में.

न मानें देव लातों के कभी बातों से सच मानो.
चलो नहले पे दहला यार अबकी बार होली में.

जहाँ भी छिपे हैं वे, जा वहीं पर खून की होली.
चलो खेलें 'सलिल' मिल साथ अबकी बार होली में.
होली २०२१


होली का रंग राजनीति के संग
*
होली हो ली हो रही होगी फिर-फिर यार
मोदी राहुल ममता माया जयललिता तैयार
जयललिता तैयार न जीवनसाथी-बच्चे
इसीलिये तो दाँव न चलते कोई कच्चे
कहे 'सलिल' कवि बच्चेवालों की जो टोली
बचकर रहे न गीतका दें ये भंग की गोली
*
होली अनहोली न हो, खायें अधिक न ताव.
छेड़-छाड़ सीमित करें, अधिक न पालें चाव..
अधिक न पालें चाव, भाव बेभाव बढ़े हैं.
बचें करेले सभी, नीम पर साथ चढ़े हैं..
कहे 'सलिल' कविराय, न भोली है अब भोली.
बचकर रहिये आप, मनायें जम भी होली..
*
होली जो खेले नहीं, वह कहलाये बुद्ध.
माया को भाये सदा, सत्ता खातिर युद्ध..
सत्ता खातिर युद्ध, सोनिया को भी भाया.
जया, उमा, ममता, सुषमा का भारी पाया..
मर्दों पर भारी है, महिलाओं की टोली.
पुरुष सम्हालें चूल्हा-चक्की अबकी होली..
*
होली ने खोली सभी, नेताओं की पोल.
जिसका जैसा ढोल है, वैसी उसकी पोल..
वैसी उसकी पोल, तोलकर करता बातें.
लेकिन भीतर ही भीतर करता हैं घातें..
नकली कुश्ती देख भ्रमित है जनता भोली.
एक साथ मिल खर्चे बढ़वा खेलें होली..
हॉलों २०२१
***
फाग-नवगीत
संजीव
.
राधे! आओ, कान्हा टेरें
लगा रहे पग-फेरे,
राधे! आओ कान्हा टेरें
.
मंद-मंद मुस्कायें सखियाँ
मंद-मंद मुस्कायें
मंद-मंद मुस्कायें,
राधे बाँकें नैन तरेरें
.
गूझा खांय, दिखायें ठेंगा,
गूझा खांय दिखायें
गूझा खांय दिखायें,
सब मिल रास रचायें घेरें
.
विजया घोल पिलायें छिप-छिप
विजया घोल पिलायें
विजया घोल पिलायें,
छिप-छिप खिला भंग के पेड़े
.
मलें अबीर कन्हैया चाहें
मलें अबीर कन्हैया
मलें अबीर कन्हैया चाहें
राधे रंग बिखेरें
ऊँच-नीच गए भूल सबै जन
ऊँच-नीच गए भूल
ऊँच-नीच गए भूल
गले मिल नचें जमुन माँ तीरे
***
दोहा पिचकारी लिये
संजीव 'सलिल'
*
दोहा पिचकारी लिये,फेंक रहा है रंग.
बरजोरी कुंडलि करे, रोला कहे अभंग..
*
नैन मटक्का कर रहा, हाइकु होरी संग.
फागें ढोलक पीटती, झांझ-मंजीरा तंग..
*
नैन झुके, धड़कन बढ़ी, हुआ रंग बदरंग.
पनघट के गालों चढ़ा, खलिहानों का रंग..
*
चौपालों पर बह रही, प्रीत-प्यार की गंग.
सद्भावों की नर्मदा, बजा रही है चंग..
*
गले ईद से मिल रही, होली-पुलकित अंग.
क्रिसमस-दीवाली हुलस, नर्तित हैं निस्संग..
*
गुझिया मुँह मीठा करे, खाता जाये मलंग.
दाँत न खट्टे कर- कहे, दहीबड़े से भंग..
*
मटक-मटक मटका हुआ, जीवित हास्य प्रसंग.
मुग्ध, सुराही को तके, तन-मन हुए तुरंग..
*
बेलन से बोला पटा, लग रोटी के अंग.
आज लाज तज एक हैं, दोनों नंग-अनंग..
*
फुँकनी को छेड़े तवा, 'तू लग रही सुरंग'.
फुँकनी बोली: 'हाय रे! करिया लगे भुजंग'..
*
मादल-टिमकी में छिड़ी, महुआ पीने जंग.
'और-और' दोनों करें, एक-दूजे से मंग..
*
हाला-प्याला यों लगे, ज्यों तलवार-निहंग.
भावों के आवेश में, उड़ते गगन विहंग..
*
खटिया से नैना मिला, भरता माँग पलंग.
उसने बरजा तो कहे:, 'यही प्रीत का ढंग'..
*
भंग भवानी की कृपा, मच्छर हुआ मतंग.
पैर न धरती पर पड़ें, बेपर उड़े पतंग..
*
रंग पर चढ़ा अबीर या, है अबीर पर रंग.
बूझ न कोई पा रहा, सारी दुनिया दंग..
*
मतंग=हाथी, विहंग = पक्षी
*
जोगी रा सा रा रा रा रा

चौपाई पर रीझकर, करे हाइकू ब्याह
सत्रह इंची वर भरे, चौंसठ इंची आह
जोगी रा सा रा रा रा रा

गीत फ़िदा हो ग़ज़ल पर, कर बैठा है प्यार
रुबाई है नज़्म सँग, लिव इन में बेज़ार
वजोगी रा सा रा रा रा रा

जवां कबीरा भा गया, हसीं फाग को आज
राखी का धागा लिए, दौड़ी तज सब काज
जोगी रा सा रा रा रा रा

मिलन-विरह श्रृंगार का, देखा दारुण रंग
सर शहीद का ले प्रिया, खेल संयम जंग
जोगी रा सा रा रा रा रा

बरगद बब्बा पर रही, नीम मुई रंग डाल
कहे ससुर देवर लगें, फागुन करे कमाल
जोगी रा सा रा रा रा रा

संसद में घुस गए हैं कैसे कैसे साँड़
निज दल को दल रहे हैं, तोड़ रहे हैं बाड़
जोगी रा सा रा रा रा रा

होते पाँव दिमाग के, जा संसद में बैठ
वेतन-भत्ते बढ़ाकर, क्यों न बनता पैठ
जोगी रा सा रा रा रा रा

दल खूँटा सांसद पड़ा, करे जुगाली मौन
खली-चुनी की फ़िक्र है, जनहित सोचे कौन
जोगी रा सा रा रा रा रा

बतकहाव कर रहे हैं, मंत्री जी बिन बात
हाँ में हाँ करते चतुर, बाकी खाते लात
जोगी रा सा रा रा रा रा

चखना काजू देखकर, चमक गए हैं गाल
अंगूरी ले नाचते, नेता करें धमाल
जोगी रा सा रा रा रा रा

सभी एक से एक हैं, अधिक धार्मिक नेक
राधा-कुर्सी अब्याही, चाह रहा हर एक
जोगी रा सा रा रा रा रा

सीता-निष्ठा को दिया, सबने जंगल भेज
शूर्पणखा सत्ता मिली, सजी तुरत ही सेज
जोगी रा सा रा रा रा रा

स्वार्थ सिद्ध जो कर सका, वही हुआ सिद्धार्थ
जन सेवार्थ न जी कभी, साध निजी सर्वार्थ
जोगी रा सा रा रा रा रा

विधा विधायक सीख लें, जुमलेबाजी ख़ास
काम नहीं वादा करो, खूब बँधाओ आस
जोगी रा सा रा रा रा रा

चट्टे-बट्टे एक ही, थैली के हैं आप
लोकनीति को भूलकर, बने देश को शाप
जोगी रा सा रा रा रा रा
होली २०२३
***

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