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शनिवार, 26 मार्च 2022

रामाधीन पाताल

यहां पर है रामायणकालीन 'पाताल लोक'
 प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथों की पौराणिक कथाओं में एक पाताल लोक का जिक्र बार-बार मिलता है, लेकिन सवाल उठता था कि क्या पाताल लोक पूरी तरह से काल्पनिक है या इसका को अस्तित्व भी है? रामायण की कथा के मुताबिक पवनपुत्र हनुमान पाताल लोक तक पहुंचे थे। भगवान राम के सबसे बड़े भक्त हनुमान ने अपने ईष्ट देव को अहिरावण के चंगुल से बचाने के लिए एक सुरंग से पाताल लोक पहुंचे थे।
 इस कथा के मुताबिक पाताल लोक ठीक धरती के नीचे है। वहां तक पहुंचने के लिए 70 हजार योजन की गहराई पर जाना पड़ता है। अगर आज के वक्त में हम अपने देश में कहीं सुरंग खोदना चाहें तो ये सुरंग अमेरिका महाद्वीप के मैक्सिको, ब्राजील और होंडुरास जैसे देशों तक पहुंचेगी। हाल ही में वैज्ञानिकों ने मध्य अमेरिका महाद्वीप के होंडुरास में सियूदाद ब्लांका नाम के एक गुम प्राचीन शहर की खोज की है। वैज्ञानिकों ने इस शहर को आधुनिक लाइडार (LIDER) तकनीक से खोज निकाला है।
 इस शहर को बहुत से जानकार वह पाताल लोक मान रहे हैं जहां राम भक्त हनुमान पहुंचे थे। दरअसल इस विश्वास की एक पुख्ता वजहें हैं। पहली, अगर भारत या श्रीलंका से कोई सुरंग खोदी जाएगी तो वह सीधे यहीं निकलेगी। दूसरी वजह यह है कि वक्त की हजारों साल पुरानी परतों में दफन सियुदाद ब्लांका में ठीक राम भक्त हनुमान के जैसे वानर देवता की मूर्तियां मिली हैं।
 इतिहासकारों का कहना है कि प्राचीन शहर सियुदाद ब्लांका के लोग एक विशालकाय वानर देवता की मूर्ति की पूजा करते थे। लिहाजा यह संभावना तलाशी जा रही है कि कहीं हजारों साल प्राचीन सियूदाद ब्लांका का ही तो रामायण में जिक्र पाताल पुरी के तौर पर नहीं है। पूर्वोत्तर होंडुरास के घने वर्षा जंगलों के बीच मस्कीटिया नाम के इलाके में हजारों साल पहले एक गुप्त शहर सियूदाद ब्लांका था। यह भी कहा जाता है कि हजारों साल पहले इस प्राचीन शहर में एक फलती-फूलती सभ्यता सांस लेती थी, जो अचानक ही वक्त की गहराइयों में गुम हो गई।
 अब तक की खुदाई में इस शहर के ऐसे कई अवशेष मिले हैं जो इशारा करते हैं कि सियूदाद के निवासी वानर देवता की पूजा करते थे। यहां सियूदाद के वानर देवता की घुटनों के बल बैठे मूर्ति को देखते ही राम भक्त हनुमान की याद आ जाती है।
 घुटनों पर बैठे बजरंग बली की मूर्ति वाले मंदिर आपको हिंदुस्तान में जगह-जगह मिल जाएंगे। हनुमान जी के एक हाथ में उनका जाना-पहचाना हथियार गदा भी रहता है। दिलचस्प बात ये है कि प्राचीन शहर से मिली वानर-देवता की मूर्ति के हाथ में भी गदा जैसा हथियार नजर आता है।
मध्य अमेरिका के एक मुल्क में प्राचीन शहर की खोज के साथ सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि रामायण की कथा में ऐसे सूत्र बिखरे पड़े हैं जो कहते हैं कि भारत या श्रीलंका की जमीन के ठीक नीचे वह लोग रहते हैं जिसे पाताल पुरी कहा जाता था। पाताल पुरी का जिक्र रामायण के उस अध्याय में आता है, जब मायावी अहिरावण राम और लक्ष्मण का हरण कर उन्हें अपने माया लोक पाताल पुरी ले जाता है।
 रामायण की कथा के अनुसार हनुमान जी को अहिरावण तक पहुंचने के लिए पातालपुरी के रक्षक मकरध्वज को परास्त करना पड़ा था जो ब्रह्मचारी हनुमान का ही पुत्र था। दरअसल, मकरध्वज एक मत्स्यकन्या से उत्पन्न हुए थे, जो लंकादहन के बाद समुद्र में आग बुझाते हनुमान जी के पसीना गिर जाने से गर्भवती हुई थी। रामकथा के मुताबिक अहिरावण वध के बाद भगवान राम ने वानर रूप वाले मकरध्वज को ही पातालपुरी का राजा बना दिया था, जिसे पाताल पुरी के लोग पूजने लगे थे।
यहां पर है रामायणकालीन 'पाताल लोक'
होंडुरास के गुप्त प्राचीन शहर के बारे में सबसे पहले ध्यान दिलाने वाले अमेरिकी खोजी थियोडोर मोर्डे ने दावा किया था कि स्थानीय लोगों ने उन्हें बताया था कि वहां के प्राचीन लोग वानर देवता की ही पूजा करते थे। उस वानर देवता की कहानी काफी हद तक मकरध्वज की कथा से मिलती-जुलती है। हालांकि अभी तक प्राचीन शहर सियूदाद ब्लांका और रामकथा में कोई सीधा रिश्ता नहीं मिला है।
लेकिन सुदूर घने वर्षा वनों में जमीन में दफन एक प्राचीन शहर अपने इतिहास के साथ सांस ले रहा है ये शायद दुनिया कभी नहीं जा पाती अगर अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम ने उसे तलाशने के लिए क्रांतिकारी तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया होता। LIDAR के नाम से जानी जाने वाली तकनीक ने जमीन के नीचे की 3-D मैपिंग से कैसे प्राचीन शहर को खोज निकाला। मध्य अमेरिकी देश होंडुरास में वानर देवता वाले प्राचीन शहर की खोज बरसों पुरानी है। होंडूरास में उस प्राचीन शहर की किवदंती सदियों से सुनाई जाती हैं जहां बजरंग बली जैसे वानर देवता की पूजा की जाती थी। ये कहानियां होंडूरास पर राज करने वाले पश्चिमी लोगों तक भी पहुंची।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद एक अमेरिकी पायलट ने होंडुरास के जंगलों में कुछ अवशेष देखने की बात की, लेकिन इसके बारे में पहली पुख्ता जानकारी अमेरिकी खोजकर्ता थियोडोर मोर्डे ने 1940 में दी। एक अमेरिकी मैगजीन में उसने लिखा कि उस प्राचीन शहर में वानर देवता की पूजा होती थी, लेकिन उसने शहर की जगह का खुलासा नहीं किया। बाद में रहस्यमय हालात में थियोडोर की मौत हो जाने से प्राचीन शहर की खोज अधूरी रह गई।
इसके करीब 70 साल बाद अब होंडुरास के घने जंगलों के बीच मस्कीटिया नाम के इलाके में प्राचीन शहर के निशान मिलने शुरू हुए हैं जो लाइडार तकनीक से संभव हुआ। अमेरिका के ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी और नेशनल सेंटर फॉर एयरबोर्न लेजर मैपिंग ने होंडुरास के जंगलों के ऊपर आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से प्राचीन शहर के निशान को खोज निकाला है।
लाइडार तकनीक की मदद से ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने होंडुरास के जंगलों के ऊपर से उड़ते हुए अरबों लेजर तरंगें जमीन पर फेंकीं। इससे जंगल के नीचे की जमीन का 3-डी डिजिटल नक्शा तैयार हो गया। थ्री-डी नक्शे से जो आंकड़े मिले उससे जमीन के नीचे प्राचीन शहर की मौजूदगी का पता चल गया। वैज्ञानिकों ने पाया की जंगलों की जमीन की गहराइयों में मानव निर्मित कई चीजें मौजूद हैं।
हालांकि लाइडार तकनीक से जंगल के नीचे प्राचीन शहर होने के निशान मिल गए हैं, लेकिन ये निशान किवदंतियों में जिक्र होने वाला सियूदाद ब्लांका के ही हैं, ये शायद कभी पता ना चले।
दरअसल, पर्यावरण के प्रति सजग होंडुरास जंगलों के बीच खुदाई की इजाजत नहीं देता है, ऐसे में सिर्फ ये अनुमान ही लगाया जा सकता है कि जंगलों में एक प्राचीन शहर दफन है, इस इलाके में बजरंगबली जैसी वानर देवता की कुछ मूर्तियां जरूर मिली हैं, जिससे ये कयास लगाए जाने लगे हैं कि कहीं किवदंतियों का ये शहर रामायण में जिक्र पाताल लोक ही तो नहीं है।
वर्ष 1940 में हुई इस जानकारी की पुष्टि एसएमएस (स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज), लखनऊ के निदेशक व वैदिक विज्ञान केन्द्र के प्रभारी प्रो. डॉ. भरत राज सिंह ने की है। उन्होंने बताया कि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद एक अमेरिकी पायलट ने होंडुरास के जंगलों में कुछ अवशेष देखे थे। उसकी पहली जानकारी अमेरिकी खोजकर्ता थियोडोर मोर्ड ने 1940 में दी थी। 
3-डी नक्शे में जमीन के नीचे गहराइयों में मानव निर्मित कई वस्तुएं दिखाई दीं। इसमें हाथ में गदा जैसा हथियार लिए घुटनों के बल बैठी हुई है वानर मूर्ति भी दिखी है। हालांकि होंडुरास के जंगल की खुदाई पर प्रतिबंध के कारण इस स्थान की वास्तविक स्थिति का पता लग पाना मुश्किल है।
अमेरिकी इतिहासकार भी मानते हैं कि पूर्वोत्तर होंडुरास के घने जंगलों के बीच मस्कीटिया नाम के इलाके में हजारों साल पहले एक गुप्त शहर सियूदाद ब्लांका का अस्तित्व था। वहां के लोग एक विशालकाय वानर मूर्ति की पूजा करते थे। प्रो. भरत ने बताया कि बंगाली रामायण में पाताल लोक की दूरी 1000 योजन बताई गई है, जो लगभग 12,800 किलोमीटर है।
यह दूरी सुरंग के माध्यम से भारत व श्रीलंका की दूरी के बराबर है। रामायण में वर्णन है कि अहिरावण के चंगुल से भगवान राम व लक्ष्मण को छुड़ाने के लिए बजरंगबली को पातालपुरी के रक्षक मकरध्वज को परास्त करना पड़ा था। मकरध्वज बजरंगबली के ही पुत्र थे, लिहाजा उनका स्वरूप बजरगंबली जैसा ही था। अहिरावण के वध के बाद भगवान राम ने मकरध्वज को ही पातालपुरी का राजा बना दिया था।

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