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शनिवार, 3 अगस्त 2019

दोहा दुनिया

दोहा दुनिया 
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मटक-मटक जो फिर रहे, अटक रहे हर ठौर। 
सटके; फटक न सफलता, अटकें; करिए गौर।।

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कृष्णा-कृष्णा सब करें, कृष्ण हँस रहे देख 
द्रुपदसुता का नाम ले, क्यों मेरा उल्लेख?

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कंकर भी शंकर बने, कर विराट का संग
रंग नहीं बदरंग हो, अगर करो सत्संग

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प्राण गए तो देह के, अंग दीजिए दान.
जो मरते जी सकेंगे, ऐसे कुछ इंसान.

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दिल के दिल में क्या छिपा, बेदिल से मत बोल 
संग न सँगदिल का करो, रह जाएगी झोल

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सही करो तो गलत क्यों, समझें-मानें लोग? 
गलत करो तो सही, कह; बढ़ा रहे हैं रोग.

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सजे अधर पर जब हँसी, धन्य हो गयी आप 
पैमाना कोई नहीं, जो खुशियाँ ले नाप

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अर्थ न रहे अनर्थ में, अर्थ बिना सब व्यर्थ 
समझ न पाया किस तरह, समझा सकता अर्थ.
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लिखा बिन लिखे आज कुछ, पढ़ा बिन पढ़े आज 
केर-बेर के संग से, सधे न साधे काज




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