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सोमवार, 25 दिसंबर 2017

दोहा दुनिया

शिव की तनया लाड़ली,
मिला नर्मदा नाम.
शिवा सरीखी रूपसी,
दे सुख-शांति ललाम.
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सुता लडैती शीश चढ़,
हँसती मिलता हर्ष.
रुद्र-सिर चढी रव करे,
रेवा दे उत्कर्ष.
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रुद्र-अक्ष से अश्रु बह,
कहलाए रुद्राक्ष.
उमा-नयन मछ्ली सदृश,
मुक्ता मणि मीनाक्ष.
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रुद्र-अक्ष के केंद्र में,
ज्योति-केंद्र लघु बिंदु.
छिद्र हुआ रुद्राक्ष में,
जैसे नभ में इंदु.
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समय-समय पर अक्ष में,
विविध भाव लें स्थान.
वे मुख बन रुद्राक्ष के,
करें शिवा-शिव-गान.
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हुआ हर्ष-अतिरेक शिव,
सलिल बने हर्षाश्रु.
कंकर-कंकर से करें,
प्रेम बहें प्रेमाश्रु.
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छोड़ अमरकंटक गए,
नीलकंठ कैलाश.
मातु नर्मदा गंग हो,
काटें भव के पाश.
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जगत्पिता शिव को नहीं,
किंचित माया-मोह.
लेकिन सहन न कर सके,
भार्या-प्रिया वियोग.
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शिव-तांडव से सृष्टि में,
व्यापा हाहाकार.
क्रोध शांत हरि ने किया,
हुआ जगत्-उद्धार.
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शिव ने शव को लगाया,
गले न माना भेद.
शव से शिव को मुक्तकर,
हरि थे शांत अखेद.
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हुआ बड़ा दिन वही जब,
शिव हो परम प्रशांत.
शिवा-याद में लीन हो,
रहे न भ्रांत, न क्रांत.
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25.12.2017

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