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बंधनों से मुक्त हो जा
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बंधनों से मुक्त हो जा कह रही राखी मुखर हो कभी अबला रही बहिना बने सबला अब प्रखर हो तोड़ देना वह कलाई जो अचाहे राह रोके काट लेना जुबां जो फिकरे कसे या तुझे टोंके सासरे जा, मायके से टूट मत, संयुक्त हो जा कह रही राखी मुखर हो बंधनों से मुक्त हो जा
बलि न तेरे हौसलों को रीति वामन कर सके अब इरादों को बाँध राखी तू सफलता वर सके अब बाँध रक्षा सूत्र तू ही ज़िंदगी को ज़िंदगी दे हो समर्थ-सुयोग्य तब ही समय तुझको बन्दगी दे स्वप्न हर साकार करने कोशिशों के बीज बो जा नयी फसलें उगाना है बंधनों से मुक्त हो जा
पूज्य बन जा राम राखी तुझे बाँधेगा जमाना सहायक हो बँधा लांबा घरों में रिश्ते जिलाना वस्त्र-श्रीफल कर समर्पित उसे जो सब योग्य दिखता अवनि की हर विपद हर ले शक्ति-वंदन विश्व करता कसर कोई हो न बाकी दाग-धब्बे दिखे धो जा शिथिल कर दे नेह-नाते बंधनों से मुक्त हो जा
- संजीव सलिल १५ अगस्त २०१६
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1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर सामयिक रचना ..
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं
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