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रविवार, 7 अगस्त 2016

laghukatha

लघुकथा
युग का दास
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लड़केवालों से मिलाने चलना है तो चलो पर मैं वही पोशाक पहनूँगी जो मुझे पसंद है। उन्हें दिखाने के लिये साड़ी लपेट कर जाऊँ और चार दिन बाद जींस पहनूँ तो उनके साथ धोखा होगा न? मेरी शिक्षा, आदत, स्वभाव, पसन्द-नापसन्द स्वीकार हो तो ही बात आगे बढ़ाना। जैसे मैं नहीं चाहती कि मुझसे सच छिपाया जाए, वैसे ही वे भी नहीं चाहेंगे कि उन्हें सच न बताया जाए। आप ज़माने की दुहाई मत दो।
जमाना जो चाहे करे मैं क्यों बनूँ युग का दास?
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