नवगीत
*
बहुत हुआ
रोको भी
बारूदी गंध
शांति के कपोतों पर
बाजों का पहरा है
ऊपर है प्रवहमान
नीचे जल ठहरा है
सागर नभ छूता सा
पर पर्वत गहरा है
ऊषा संग
व्यस्त सूर्य
फैलाता धुंध
तानों से नातों की
छाती है घायल
तानो ना तो बाजे
मन-मृदंग-मादल
छलछलछल छलकेगी
यादों की छागल
आसों की
श्वासों में
घुले स्नेह-गंध
होना है यदि विदेह
साधन है देह
खोना भी पाना है
यदि वर लो गेह
जेठ-घाम रूपवती
गुणवंती मेह
रसवंती
शीत, शांति
मत तज, हो अंध
*
*
बहुत हुआ
रोको भी
बारूदी गंध
शांति के कपोतों पर
बाजों का पहरा है
ऊपर है प्रवहमान
नीचे जल ठहरा है
सागर नभ छूता सा
पर पर्वत गहरा है
ऊषा संग
व्यस्त सूर्य
फैलाता धुंध
तानों से नातों की
छाती है घायल
तानो ना तो बाजे
मन-मृदंग-मादल
छलछलछल छलकेगी
यादों की छागल
आसों की
श्वासों में
घुले स्नेह-गंध
होना है यदि विदेह
साधन है देह
खोना भी पाना है
यदि वर लो गेह
जेठ-घाम रूपवती
गुणवंती मेह
रसवंती
शीत, शांति
मत तज, हो अंध
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