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बुधवार, 24 सितंबर 2014

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव 
*
अँगना सूना 
बिन गौरैया 

उषा उदास 
न कलरव बाकी 
गुमसुम है 
मुँडेर वह बाँकी 
शुक-शिशु 
करे न 
ता-ता-थैया 

चुग्गा-दाना 
किसे खिलायें?
कौन कीट का
भोग लगाये  
कौन चुगे कृमि 
बेकल गैया 

संझा बेकल 
खिड़की सूनी 
कल खो गयी 
बेकली दूनी 
गुम पछुआ 
पुरवैया 

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2 टिप्‍पणियां:

amitasharma2000 ने कहा…

amitasharma2000@yahoo.com

बहुत सुंदर रचना .बहुत सच्ची सी अच्छी सी ,सुकोमल सी
बहुत बहुत बधाई
बहुत ताजगी की अनुभूति करा दी आपने
आभार

अमिता

Shashi Padha ने कहा…

shashipadha@gmail.com

संझा बेकल
खिड़की सूनी
कल खो गयी
बेकली दूनी
गुम पछुआ
पुरवैया संजीव जी, बहुत खूबसूरत । बधाई ।

शशि पाधा