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बुधवार, 24 सितंबर 2014

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
*
पानी-पानी
हुए बादल

आदमी की
आँख में
पानी नहीं बाकी
बुआ-दादी
हुईं मैख़ाना
कभी साकी
देखकर
दुर्दशा मनु की
पलट गयी
सहसा छागल

कटे जंगल
लुटे पर्वत
पटे सरवर

तोड़ पत्थर
खोद रेती
दनु हुआ नर

त्रस्त पंछी
देख सिसका
कराहा मादल

जुगाड़े धन
भवन, धरती
रत्न, सत्ता और

खाली हाथ
आखिर में
मरा मनुज पागल

***



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