मानव सभ्यता को भारतीय विरासत :
भास्कराचार्य - गुरुत्वाकर्षण शक्ति की खोज न्यूटन से सदियों पहले की

आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। वास्तव में गुरुत्वाकर्षण के रहस्य की खोज न्यूटन से कई सदियों पहले भास्कराचार्य ने कर ली थी। भास्कराचार्य ने अपने ग्रंथ सिद्धांतशिरोमणि में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है। सिद्धांत शिरोमणी के गोलाध्याय भुवनखंड के अनुसार :-
आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या।
आकृष्यते तत्पततीव भाति समेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे।।
अर्थात् पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है। इस कारण वह जमीन पर गिरते हैं किन्तु आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे? अर्थात् आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियां संतुलन बनाए रखती हैं।
ऋषि भरद्वाज - विमान यांत्रिकी के जनक

आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। जबकि सदियों पहले ही ऋषि भरद्वाज ने विमान शास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने की खोज कर डाली थी। वस्तुतः ऋषि भरद्वाज वायुयान के आविष्कारक हैं।
गर्गमुनि - नक्षत्रों के खोजकर्ता

गर्गमुनि ने श्रीकृष्ण और अर्जुन के बारे नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ बताया, वह पूरी तरह सही सिद्ध हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने बहुत पहले बता दिये थे।
ऋषि विश्वामित्र - ज्ञान - पुरुषार्थ के समुच्चय

ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय (शासक) थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिये हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी (ज्ञानसाधक / अन्वेषक) हो गये। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। विश्वामित्र ने ही प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली लाखों साल पहले खोजी थी। विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तप भंग होना प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल (अलौकिक ज्ञान) से कर दिखाया था।
महर्षि सुश्रुत - शल्यविज्ञान के प्रणेता

शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) महर्षि सुश्रुत हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई सुश्रुतसंहिता ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी है। आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज लगभग चार सदी पहले की है। महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्य चिकित्सा भी करते थे।
आचार्य चरक -
चरकसंहिता जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचनेवाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व त्वचा चिकित्सक हैं। आचार्य चरक ने शरीर विज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन शोधें की। आजकल सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे मधुमेह (डायबिटीज), हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी।
पतंजलि -
आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर है।आज भी इसका उपचार लंबा, कष्टप्रद और खर्चीला है। लेकिन कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर (कर्करोग) का और्वेदिक औषधियों और योग से उपचार और निदान ।
आचार्य च्यवन:
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