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बुधवार, 14 सितंबर 2011

कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर की एक रचना हे चिरनूतन! आजि ए दिनेर प्रथम गाने का भावानुवाद: --संजीव 'सलिल'

कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर की एक रचना  हे चिरनूतन! आजि ए दिनेर प्रथम गाने का भावानुवाद:
संजीव 'सलिल'
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मूल रचना:
हे चिरनूतन! आजि ए दिनेर प्रथम गाने
जीवन आमार उठुक विकाशि तोमारी पाने.
तोमार वाणीते सीमाहीन आशा,
चिरदिवसेर प्राणमयी भाषा-
क्षयहीन धन भरि देय मन तोमार हातेर दाने..
ए शुभलगने जागुक गगने अमृतवायु,
आनुक जीवने नवजनमेर अमल आयु
जीर्ण जा किछु, जाहा किछु क्षीण
नवीनेर माझे होक ता विलीन
धुये जाक जत पुराणो मलिन नव-आलोकेर स्नाने..

(गीत वितान, पूजा, गान संख्या २७३)
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हिंदी काव्यानुवाद:

हे चिर नूतन! गीत आज का प्रथम गा रहा.
हो विकास ऐसा अनुभव हो तुम्हे पा रहा.....
तेरे स्वर में हो असीम अब मेरी आशा
प्राणमयी भाषा चिर दिन की बने प्रकाशा..
तेरे कर से मम मन अक्षय दान पा रहा.....

इस शुभ पल में, अमृत वायु बहे अंबर में.
पूरित करदे नव जीवन अम्लान आयु से..
जो कुछ भी ही जीर्ण-क्षीर्ण नव में विलीन हो.
करे स्नान निष्प्राण-पुराना नवालोक में ..
मलिन शुभ्र हो, मिटे पुराना नया आ रहा.....
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

3 टिप्‍पणियां:

mukku41@yahoo.com ekavita ने कहा…

Mukesh Srivastava ✆

आचार्य संजीव जी,
हिंदी दिवस पर एक महान कवि की रचना का भाषानुवाद एक
अच्छी प्रस्तुतीकरण के साथ ई कविता पर लाने के लिए बहुत
बहुत साधुवाद.

मुकेश इलाहाबादी

shar_j_n ✆ ekavita ने कहा…

अहा!
बहुत सुन्दर आचार्यजी !
सादर
शार्दुला

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी ,
कवीन्द्र रवीन्द्र ठाकुर के बंगला गीत का इतना सफल भाव-प्रवण पद्यानुवाद पढ़कर आत्म-विभोर हो गया| आपकी प्रतिभा को नमन |
सादर,
कमल