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रविवार, 25 सितंबर 2011

मुक्तिका : फूल हैं तो बाग़ में _संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
फूल हैं तो बाग़ में
-- संजीव 'सलिल'

*

फूल हैं तो बाग़ में कुछ खार होना चाहिए.
मुहब्बत में बाँह को गलहार होना चाहिए.

लयरहित कविता हमेशा गद्य लगती है हमें.
गीत हो या ग़ज़ल रस की धार होना चाहिए..

क्यों डरें आतंक से हम? सामना डटकर करें.
सर कटा दें पर सलामत यार होना चाहिए..


आम लोगों को न नेता-दल-सियासत चाहिए.
फ़र्ज़ पहले बाद में अधिकार होना चाहिए..


ज़हर को जब पी सके कंकर 'सलिल' शंकर बने.
त्याग को ही राग का श्रृंगार होना चाहिए..

दुश्मनी हो तो 'सलिल' कोई रहम करना नहीं.
इश्क है तो इश्क का इज़हार होना चाहिए..
**********


 फायलातुन फायलातुन  फायलातुन फायलुन
( बहरे रमल मुसम्मन महजूफ )
२१२२            २१२२              २१२२         २१२
कफिया: आर (अखबार, इतवार, बीमार आदि)
रदीफ   : होना चाहिये
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

6 टिप्‍पणियां:

Rakesh Khandelwal ✆ ekavita ने कहा…

लयरहित कविता हमेशा गद्य लगती है हमें.
गीत हो या ग़ज़ल रस की धार होना चाहिए..

आपके सशक्त कथन को शिरोधार्य करते हर्ष होता है

सादर

राकेश

लय न हो जिसमें न उसमें काव्य होता है तनिक
जो रहें अल्षम उन्हें यह ज्ञात होना चाहिये.

shriprakash shukla ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
एक मुक्कमल ग़ज़ल के लिए दाद क़ुबूल करें | ग़ज़ल पढने के बाद मैं जो कुछ लिखने वाला था वो सब बाद में लिखा हुआ मिला | आज कर मैं ग़ज़ल का व्याकरण सीख रहा हूँ |
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल

बेनामी ने कहा…

deepti gupta


सराहनीय !
सादर,
दीप्ति

sanjiv 'salil' ने कहा…

वरिष्ठों का सलिल पर उपकार होना चाहिए.
मिले जब आशीष तो आभार होना चाहिए

Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

सलिल जी,

ग़ज़ल सुंदर है, विशेषत: निम्न--



लयरहित कविता हमेशा गद्य लगती है हमें.
गीत हो या ग़ज़ल रस की धार होना चाहिए..

आम लोगों को न नेता-दल-सियासत चाहिए.
फ़र्ज़ पहले बाद में अधिकार होना चाहिए..

ज़हर को जब पी सके कंकर 'सलिल' शंकर बने.
त्याग को ही राग का श्रृंगार होना चाहिए..


---एक मेरी ग़ज़ल का मकता पेश है:

रोज़ महफ़िल में ग़ज़ल कहना ज़रूरी तो नहीं

पर ख़लिश हर शेर असरदार होना चाहिए.
[ज़ाहिर है कि आपसे प्रेरणा पा कर ही लिखी है] --
(अपनी दूकानदारी तो ऐसे ही चलती है--

कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा
ख़लिश भाई ने नग़्मा जोड़ा.)

--ख़लिश

sanjiv 'salil' ने कहा…

आपकी कद्रदानी का शुक्रिया.
खलिश सहने की न तुझमें ताब क्यों है ऐ 'सलिल'?
सामने हो खलिश तो आदाब होना चाहिए..