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बुधवार, 21 सितंबर 2011

मुक्तिका: सामने आँखों के... -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
सामने आँखों के...
संजीव 'सलिल'
*
सामने आँखों के सारे दिन सुहाने आ गये.
तुमको देखा याद मिलने के बहाने आ गये..
*
गगन-पनघट, दामिनी के रूप की छवि देखने
मेघ यायावर लिये लोटा नहाने आ गये..
*
मिलन के युग पलों से कब कट गये किसको पता.
विरह के पल युगों से जी को दहाने आ गये..
*
जब हुई बोनी न तब जिनका पता थे खेत पर-
वही लेकर लट्ठ फसलों को गहाने आ गये..
*
तुम नहीं यदि साथ तो जग-जिंदगी है बेमजा.
साथ पाकर 'सलिल' जन्नत के मुहाने आ गये..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

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