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रविवार, 11 सितंबर 2011

कुण्डलिनी : दन्त-पंक्ति श्वेता रहे..... -- संजीव 'सलिल'

कुण्डलिनी :
दन्त-पंक्ति श्वेता रहे.....
-- संजीव 'सलिल'
*
दन्त-पंक्ति श्वेता रहे, सदा आपकी मीत.
मीठे वचन उचारिये, जैसे गायें गीत..
जैसे गायें गीत, प्रीत दुनिया में फैले.
मिट जायें सब झगड़े, झंझट व्यर्थ झमेले..
कहे 'सलिल' कवि, सँग रहें जैसे कामिनी-कंत.
जिव्हा कोयल सी रहे, मोती जैसे दन्त.
*
नेहा स्नेहा श्वास हो, सुगम सुगेहा आस.
गति-यति मति-वारी रहे, अधर सुशोभित हास..
अधर सुशोभित हास, त्रास किंचित न कभी हो.
मत कल पर कुछ टाल, कार्य हर आज-अभी हो..
कहे 'सलिल' कवि रति हो देहा, सुमति विदेहा.
रखें हास-परिहास भरा, जग-जीवन नेहा..
*

2 टिप्‍पणियां:

Shweta Mathur ने कहा…

sir sir sir,

bahuuuuuut accha likha aapne,...

Shweta Mathur 8:41am Sep 11

बेनामी ने कहा…

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