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शनिवार, 3 सितंबर 2011

मुक्तिका: श्वास-श्वास घनश्याम हो गयी..... -- संजीव 'सलिल'


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अलस्सुबह मन-दर्पण देखा, श्वास-श्वास घनश्याम हो गयी.
जब नयनों से नयन मिलाये, आस-आस सुख-धाम हो गयी..

अँजुरी भर जल से मुँह धोकर, उषा थपकती मन के द्वारे.
तुहिन बिंदु सज्जित अनूप-छवि, सुंदरता निष्काम हो गयी..

नर्तित होती रवि किरणों ने, सलिल-लहरियों में अवगाहा.
सतत साधना-दीप लिये वंदना विमल आयाम हो गयी..

ज्ञान-परिश्रम-प्रेम त्रिवेणी, नेह नर्मदा हुई निनादित.
कंकर-कंकर को शंकर कर, दुपहरिया बेनाम हो गयी..

सांध्य-अर्चना के निर्मल पल, कलकल निर्झर ध्वनि संप्राणित.  
नीराजन कर लिये नीरजा, मूंदे नयन अनाम हो गयी..

सब संकल्प-विकल्प परखकर, श्रांत-क्लांत पग ठिठक थम गये.
अंतर से अंतर तज अंतर्वीणा विनत प्रणाम हो गयी..

काट-काट कर्मों की कारा, सुध बेसुध हो मौन हुई तो-
काम-कुसुम निष्काम हो गये, राका पूरनकाम हो गयी..

शशि-नभ शशिवदनी-शशीश सम, अभयदान दे रहे मौन रह.
थी जैसी जितनी जिजीविषा, जिसकी वह अंजाम हो गयी..

मन्वन्तर ने अभ्यंतर में, आत्म प्रकाशित होते पाया.
मृण्मय 'सलिल' न थक-रुक, झुक-चुक, बूँद-बूँद परमात्म हो गयी..

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com



2 टिप्‍पणियां:

sn Sharma ने कहा…

आ० आचार्य जी,
मुक्तिकाओं ने मन मुग्ध कर दिया | आपकी लेखनी को बारम्बार नमन |
भाव-विभोर कर गईं ये -
ज्ञान-परिश्रम-प्रेम त्रिवेणी,
नेह नर्मदा हुई निनादित.
कंकर-कंकर को शंकर कर,
दुपहरिया बेनाम हो गयी..

सांध्य-अर्चना के निर्मल पल,
कलकल निर्झर ध्वनि संप्राणित.
नीराजन कर लिये नीरजा,
मूंदे नयन अनाम हो गयी..

कमल

kusum sinha ✆ ekavita ने कहा…

priy sanjiv ji

aapki muktikayein man ko mugdh kar deti hain bahut sundar bahut hi sundar maa saraswati ne aapko ashirwad diya hai

kusum