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बुधवार, 10 नवंबर 2010

दिवाली के संग : दोहा का रंग संजीव 'सलिल' * दिया चन्द्र को साँझ ने, दीपक का उपहार. निशा जली, काली हुई, कौन बचावनहार?? * अँधियारे ने धरा पर, चाहा था अधिकार. तिलक लगा भू ने दिया, दीपक बंदनवार.. * काश दीप से सीख लें, हम जीवन-व्यवहार. मोह न आरक्षण करें, उजियारें संसार.. * घर-अंगना, तन धो लिया, रूप संवार-निखार. अपने मन का मैल भी, प्रियवर कभी बुहार.. * दीपशिखा का रूप लाख, हो दीवानावार. परवाना खुद जल-मरा, लेकिन मिला न प्यार.. * मिले प्यार को प्यार तब, जब हो प्यार निसार. है प्रकाश औ' ज्योति का, प्यार सांस-सिंगार.. * आयी आकर चली गयी, दीवाली कह यार. दीवाला निकले नहीं, कर इसका उपचार.. * श्री गणेश-श्री लक्ष्मी, गैर पुरुष-पर नार. पूजें, देख युवाओं को, क्यों है हाहाकार?? * पुरा-पुरातन देश है, आज महज बाज़ार. चीनी झालर से हुआ, है कुम्हार बेकार.. * लीप-पोतकर कर लिया, जगमग सब घर-द्वार. 'सलिल' न सोचा मिट सके, मन में पड़ी दरार.. * सब जग जगमग हो गया, अब मन भी उजियार. दीनबन्धु बनकर 'सलिल', पंकिल चरण पखार.. **********

दोहा सलिला/मुक्तिका

दिवाली के संग : दोहा का रंग

संजीव 'सलिल'  
                                                
*
दिया चन्द्र को साँझ ने, दीपक का उपहार.
निशा जली, काली हुई, कौन बचावनहार??
*
अँधियारे ने धरा पर, चाहा था अधिकार. 
तिलक लगा भू ने दिया, दीपक बंदनवार..
काश दीप से सीख लें, हम जीवन-व्यवहार. 
मोह न आरक्षण करें, उजियारें संसार.. 
घर-अंगना, तन धो लिया, रूप संवार-निखार. 
अपने मन का मैल भी, प्रियवर कभी बुहार.. 
दीपशिखा का रूप लाख, हो दीवानावार. 
परवाना खुद जल-मरा, लेकिन मिला न प्यार.. 
मिले प्यार को प्यार तब, जब हो प्यार निसार. 
है प्रकाश औ' ज्योति का, प्यार सांस-सिंगार.. 
आयी आकर चली गयी, दीवाली कह यार. 
दीवाला निकले नहीं, कर इसका उपचार.. 
श्री गणेश-श्री लक्ष्मी, गैर पुरुष-पर नार. 
पूजें, देख युवाओं को, क्यों है हाहाकार?? 
पुरा-पुरातन देश है, आज महज बाज़ार. 
चीनी झालर से हुआ, है कुम्हार बेकार.. 
लीप-पोतकर कर लिया, जगमग सब घर-द्वार. 
'सलिल' न सोचा मिट सके, मन में पड़ी दरार.. 
सब जग जगमग हो गया, अब मन भी उजियार. 
दीनबन्धु बनकर 'सलिल', पंकिल चरण पखार..  

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7 टिप्‍पणियां:

Yograj prabhakar. ने कहा…

Yograj Prabhakar
बहुत ही मनमोहक और अर्थपूर्ण दोहे कहे हैं आपने आचार्य जी, इतने सरल कि झट से कंठस्थ हो जाएँ ! किन्तु निम्नलिखित दोहे का अर्थ समझ नहीं आया :

//श्री गणेश-श्री लक्ष्मी, गैर पुरुष-पर नार.
पूजें, देख युवाओं को, क्यों है हाहाकार?? //

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

sanjiv verma 'salil'
श्री लक्षमी के पति श्री विष्णु तथा श्री गणेश की पत्नियाँ रिद्धि-सिद्धि हैं. दीपावली पर श्रीगणेश व श्री लक्ष्मी का पूजन होता है. इस पर किसी को आपत्ति नहीं होती. यथार्थ में कोई लड़का-लड़की या स्त्री-पुरुष साथ में हों तो लोग छींटाकशी करने लगते हैं. इसी मानसिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाया गया है.

yograj prabhakar ने कहा…

Yograj Prabhakar
धन्यवाद आचार्य जी !

Naveen C Chaturvedi ने कहा…

Navin C. Chaturvedi
विषय का चुनाव तो सही है

Naveen C Chaturvedi ने कहा…

Navin C. Chaturvedi :
ये दोहा तो मुझे याद रखने योग्य लगा है सलिल जी:
घर-अंगना, तन धो लिया, रूप संवार-निखार.
अपने मन का मैल भी, प्रियवर कभी बुहार..

याद रखने लायक इसलिए नहीं कि ये संपूर्ण विधान वाला दोहा है, इसलिए भी नहीं कि इस में ग़ज़ब की लय कायम रखी है आपने, बल्कि इसलिये कि अत्यंत साधारण शब्दों में बड़ी ही ग़ूढ बात कही है आपने| और सोने पे सुहागा की तरह 'बुहार' शब्द का प्रयोग इस दोहे का मजबूत पक्ष है सलिल जी| बधाई|

vikas rana janumanu 'fikr' ने कहा…

vikas rana janumanu 'fikr'
मशहूर कर - मशहूर को - मशहूर हो रहे|
गुमनाम फ़नकारों पे, ना नज़र करते हैं||

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

कोई नहीं गुमनाम है, कोई नहीं मशहूर.
है कोई है हालात के हाथों यहाँ मजबूर..

अपनी ही अपनी फ़िक्र है. गैरों का कहाँ ज़िक्र?
गैरों का तनिक ज़िक्र किया, फिर न रही फ़िक्र..

जिसने तराशा खुद को, वही पा सका है फूल.
जो दोष दे औरों को, चुने उसने खुद ही शूल..

शब्दों की नित आराधना का, पन्थ है कठिन.
पंक भी बनता है यहाँ, शतदली पुलिन..

अब जाग 'सलिल' मशक कर, कुछ होने दे रियाज़.
औरों पे न ऊँगली उठा, पर तौल भर परवाज़.