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बुधवार, 3 नवंबर 2010

मुक्तिका: संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'
*
दीवाली को दीप-पर्व बोलें या तम-त्यौहार कहें?
लें उजास हम दीपशिखा से या तल से अँधियार गहें??....
*
कंकर में शंकर देखें या शंकर को कंकर कह दें.
शीतल-सुरभित शुद्ध पवन को चुभती हुई बयार कहें??
*
धोती कुरता धारे है जो देह खुरदुरी मटमैली.
टीम-टाम के व्याल-जाल से तौलें उसे गँवार कहें??
*
कथ्य-शिल्प कविता की गाड़ी के अगले-पिछले पहिये.
भाव और रस इंजिन-ईंधन, रंग देख बेकार कहें??
*
काम न देखें नाम-दाम पर अटक रहीं जिसकी नजरें.
नफरत के उस सौदागर को क्या हम रचनाकार कहें??
*
उठा तर्जनी दोष दिखानेवाले यह भी तो सोचें.
तीन उँगलियों के इंगित उनको भी हिस्सेदार कहें??
*
नेह-नर्मदा नित्य नहा हम शब्दब्रम्ह को पूज रहे.
सूरज पर जो थूके हो अनदेखा, क्यों निस्सार कहें??
*
सहज मैत्री चाही सबसे शायद यह अपराध हुआ.
अहम्-बुद्धिमत्ता के पर्वत गरजें बरस गुहार कहें??
*
पंकिल पद पखारकर निर्मल करने नभ से इस भू पर
आया, सागर जा नभ छूले 'सलिल' इसे क्यों हार कहें??
*
मिले विजय या अजय बनें यह लक्ष्य 'सलिल' का नहीं रहा.
मैत्री सबसे चाही, सब में वह, न किसे अवतार कहें??
*
बेटा बाप बाप का तो विद्यार्थी क्यों आचार्य नहीं?
हो विचार-आचार शब्दमय, क्यों न भाव-रस सार कहें??
*

8 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

पर्व के मोके पर बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!

Dr.M.C. Gupta ✆ ekavita ने कहा…

सलिल जी,

सारयुक्त रचना में इंगित भावों के लिए यही कहूँगा-
"समझने वाले समझ गए जो न समझे वो अनाड़ी है"
निम्न विशेष अच्छे लगे--
*
धोती कुरता धारे है जो देह खुरदुरी मटमैली.
टीम-टाम के व्याल-जाल से तौलें उसे गँवार कहें??
*
कथ्य-शिल्प कविता की गाड़ी के अगले-पिछले पहिये.
भाव और रस इंजिन-ईंधन, रंग देख बेकार कहें??
*
काम न देखें नाम-दाम पर अटक रहीं जिसकी नजरें.
नफरत के उस सौदागर को क्या हम रचनाकार कहें??
*
सहज मैत्री चाही सबसे शायद यह अपराध हुआ.
अहम्-बुद्धिमत्ता के पर्वत गरजें बरस गुहार कहें??
*
बेटा बाप बाप का तो विद्यार्थी क्यों आचार्य नहीं?
हो विचार-आचार शब्दमय, क्यों न भाव-रस सार कहें??
*
बेटा बाप बाप का तो >>> The child is father of the man--Wordsworth [But he did not say--The son is father of the father. He said--बच्चा ही मानव का जनक है].

किंतु, आचार्य सलिल ने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेलीं हैं. निम्न आख्यान पढ़िए. स्पष्ट हो जाएगा कि बेटे ने बाप को कैसे जन्म दिया.

[विद्यार्थी क्यों आचार्य नहीं--अष्टावक्र के पिता को राजा जनक ने शास्त्रार्थ में हारने के कारण जल-मृत्यु दी थी. उन्ही के पुत्र को जनक ने गुरु स्वीकार किया.]

Arun Kumar Pandey 'Abhinav' ने कहा…

वाह आदरणीय आचार्य जी !! मंत्र मुग्ध करती रचना !और आपके शब्द-भाव -वाक्य- श्रृंगार का क्या कहना !

dharmendra kumar singh ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना। वाकई मंत्रमुग्ध कर देने वाली है।

achal verma ekavita ने कहा…

This is very useful for me . A new thing to learn, there are so many deep things hidden in our religious texts that unless someone is kind enough to point them out in some pretext , we will never know, as we can not read all of it in one life time.
Thanks Khalish sahib , you have done a noble task .

Your's ,

Achal Verma

Naveen C Chaturvedi ने कहा…

फिर से एक बार अपनी पुरानी बात को ही दोहराता हूँ - तजुर्बे का पर्याय नहीं| आपकी मुक्तिका का कथ्य "नफ़रत के उस सौदागर को क्या हम रचनाकार कहें?" बरबस ही ध्यान आकर्षित करता है|

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

इशारों इशारों मे कुछ कहती यह रचना, सुंदर है,

Divya Narmada ने कहा…

कुछ न कहकर भी कहा जाये
यही कविता कला.
जो समझ ले वही पाठक
मानिये सबसे भला..