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रविवार, 21 नवंबर 2010

एक गीत: मत ठुकराओ संजीव 'सलिल'

एक गीत:                                                                                                      

मत ठुकराओ

संजीव 'सलिल'
*
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
*
मेवा-मिष्ठानों ने तुमको
जब देखो तब ललचाया है.
सुख-सुविधाओं का हर सौदा-
मन को हरदम ही भाया है.

ऐश, खुशी, आराम मिले तो
तन नाकारा हो मरता है.
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
*
मेंहनत-फाके जिसके साथी,
उसके सर पर कफन लाल है.
कोशिश के हर कुरुक्षेत्र में-
श्रम आयुध है, लगन ढाल है.

स्वेद-नर्मदा में अवगाहन
जो करता है वह तरता है.
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
*
खाद उगाती है हरियाली.
फसलें देती माटी काली.
स्याह निशासे, तप्त दिवससे-
ऊषा-संध्या पातीं लाली.

दिनकर हो या हो रजनीचर
रश्मि-ज्योत्सना बन झरता है.
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
**************************

6 टिप्‍पणियां:

sn Sharma /ahuti@gmail.com ने कहा…

आ० आचार्य जी,
अति सुन्दर परिकल्पना और अनूठा विषय लिये आपके गीत को साधुवाद |
अंतिम पंक्तियाँ मन मुग्ध कर गयीं -
दिनकर हो या रजनीचर
रश्मि-ज्योत्स्ना बन झरता है
मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है

सादर
कमल

ana ने कहा…

behatareen... ati sundar.

- drajanmejay@yahoo.com ने कहा…

आद० आचार्य जी
अभिवादन
सुंदर,अनूठे गीत के लिये बधाई स्वीकारें
डा० अजय जनमेजय,बिजनोर,उ०प्र०[०९४१२२१५९५२]

achal verma ekavita ने कहा…

कूडा खाद बना करता है ,
सत्य अकाट्य सदा से ही है ,
उसका भी स्थान जहां है
वहीं रहे तो बात सही है |

देते हैं बिखेर राहों पर
इस कूड़े को लोग जभी भी दृश्य बहुत ही लगे अटपटा
जी घबराता बहुत तभी |

मगर बात ये ठीक आपकी
इस कूड़े को ठुकरावो मत ,
साफ़ रहे परिवेश हमारा
ध्यान रहे, है तभी गनीमत


Your's ,

Achal Verma

Divya Narmada ने कहा…

कूड़ा नहीं सड़क पर आता,
मानव लाता उसे सड़क पर.
मन का कूड़ा रहे छिपाए,
पर उपदेश सुनाये कड़ककर..
धन्यवाद..

मानव ही कूड़ा उपजाता,
सम्यक निस्तारण करे तो.
कहीं न कोई ढेर दिखेगा,
गर सार्थकता वरण करे तो..

वर्मा बन रक्षण कर पाये,
रहे अचल पग नहीं डिगाए.
नहीं निरुपयोगी कुछ जग में,
हर बेकाम काम में आये..

कूड़े की गुहार इतनी है
चेतन- जड़ को चेतनता दे.
स्वयं न निष्ठुर जड़ हो जाये
कूड़े को कुछ नूतनता दे..

******

Dr.M.C. Gupta ✆ ekavita ने कहा…

सलिल जी,

निम्न बहुत अच्छे लगे--


मत ठुकराओ तुम कूड़े को
कूड़ा खाद बना करता है.....
*


मेंहनत-फाके जिसके साथी,
उसके सर पर कफन लाल है.
कोशिश के हर कुरुक्षेत्र में-
श्रम आयुध है, लगन ढाल है.


खाद उगाती है हरियाली.
फसलें देती माटी काली.

--ख़लिश