नवगीत :::
शेष धर
संजीव 'सलिल'
*
किया देना-पावना बहुत,
अब तो कुछ शेष धर...
*
आया हूँ जाने को,
जाऊँगा आने को.
अपने स्वर में अपनी-
खुशी-पीर गाने को.
पिया अमिय-गरल एक संग
चिंता मत लेश धर.
किया देना-पावना बहुत,
अब तो कुछ शेष धर...
*
कोशिश का साथी हूँ.
आलस-आराती हूँ.
मंजिल है दूल्हा तो-
मैं भी बाराती हूँ..
शिल्प, कथ्य, भाव, बिम्ब, रस.
सर पर कर केश धर.
किया देना-पावना बहुत,
अब तो कुछ शेष धर...
*
शब्दों का चाकर हूँ.
अर्थों की गागर हूँ.
मानो ना मानो तुम-
नटवर-नटनागर हूँ..
खुद को कर साधन तू
साध्य 'सलिल' देश धर.
किया देना-पावना बहुत,
अब तो कुछ शेष धर...
********
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 11 नवंबर 2010
नवगीत ::: शेष धर -- संजीव 'सलिल'
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3 टिप्पणियां:
आप तो हैं प्यारे सर
शब्दों के जादूगर
आप के लिए ही सब
क्या करूंगा शेष धर
मानो ना मानो तुम-
नटवर-नटनागर हूँ..
आप वाकई मस्त मौला हैं सलिल जी|
बहुत सुन्दर
खुद को कर साधन तू
साध्य 'सलिल' देश धर.
किया देना-पावना बहुत,
अब तो कुछ शेष धर...
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