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शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

poem: none of us alone

poem:

none of us alone
*
We are none of us alone
even as we exhale 

    it is inhaled by others
the light that shines upon me 

    shines upon my neighbor as well
in this way everything is connected
everything is connected to everything else


In this way I am connected to my friend even as I am connected to my enemy
In this way there is no difference between me and my friend
We are none of us alone
even as we exhale it is inhaled by others
the light that shines upon me shines upon my neighbor as well
in this way everything is connected
everything is connected to everything else
In this way I am connected to my friend even as I am connected to my enemy
In this way there is no difference between me and my friend
In this way there is no difference between me and my enemy
We are none of us alone

दोहा सलिला: गले मिलें दोहा यमक संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
गले मिलें दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
गले मिलें दोहा यमक, ले हांथों में हार।
हार न कोई मानता, बना प्यार तकरार।।
*
कलरव करती लहर से, बोला तट रह मौन।
कल रव अगर न किया तो, तुझको पूछे कौन?
*
शबनम से मिलकर गले, शब नम मौन उदास।
चाँद-चाँदनी ने मिटा, तम भर दिया उजास।।
*
गले मिले शिकवे-गिले, गले नहीं हैं शेष।
शेष-शेषशायी हँसे, लख सद्भाव अशेष।।
*
तिल-तिल कर जलते रहे, बाती तिल का तेल।
तिल भर डिगे न धर्म से, कमा न किंचित मेल।।
*
हल चल जाए खेत में, तब हलचल हो शांत।
सिया-जनक को पूछते, जनक- लोग दिग्भ्रांत।।
*
चल न हाथ में हाथ ले, यही चलन है आज।
नय न नयन का इष्ट है, लाज करें किस व्याज?
*
जड़-चेतन जड़-पेड़ भी, करते जग-उपकार।
जग न सो रहे क्यों मनुज, करते पर-अपकार।?
*
वाम मार्ग अपना रहे, जो उनसे विधि वाम।
वाम हस्त पर वाम दल, वाम  न हो परिणाम।।
*
खुश बू से कोई नहीं, खुशबू से खुश बाग़।
बाग़-बाग़ तितली हुई, सुन भ्रमरों का राग।।
*
हर संकट हर कर किया, नित जग पर उपकार।
सकल श्रृष्टि पूजित हुए तब ही शिव सरकार।।
*


बुधवार, 21 नवंबर 2012

नवगीत: नयन में कजरा... संजीव 'सलिल'

 नवगीत:

नयन में कजरा...
संजीव 'सलिल'
*
आँज रही है उतर सड़क पर
नयन में कजरा साँझ...
*
नीलगगन के राजमार्ग पर
बगुले दौड़े तेज.
तारे फैलाते प्रकाश तब
चाँद सजाता सेज.
भोज चाँदनी के संग करता
बना मेघ को मेज.
सौतन ऊषा रूठ गुलाबी
पी रजनी संग पेज.
निठुर न रीझा-
चौथ-तीज के सारे व्रत भये बाँझ.
आँज रही है उतर सड़क पर
नयन में कजरा साँझ...
*
निष्ठा हुई न हरजाई, है
खबर सनसनीखेज.
संग दीनता के सहबाला
दर्द दिया है भेज.
विधना बाबुल चुप, क्या बोलें?
किस्मत रही सहेज.
पिया पिया ने प्रीत चषक
तन-मन रंग दे रंगरेज.
आस सारिका गीत गये
शुक झूम बजाये झाँझ.
आँज रही है उतर सड़क पर
नयन में कजरा साँझ...
*
साँस पतंगों को थामे
आसें हंगामाखेज.
प्यास-त्रास की रास
हुलासों को परिहास- दहेज़.
सत को शिव-सुंदर से जाने
क्यों है आज गुरेज?
मस्ती, मौज, मजा सब चाहें
श्रम से है परहेज.
बिना काँच लुगदी के मंझा
कौन रहा है माँझ?.
आँज रही है उतर सड़क पर
नयन में कजरा साँझ...
*

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

कवि और कविता: अखिलेश श्रीवास्तव

कवि और कविता:

अखिलेश श्रीवास्तव

*
अखिलेश जी की कवितायेँ पारिस्थितिक वैषम्य और त्रासदियों से जूझते-टूटते निरीह मनुष्यों की व्यथा-कथा हैं। सत्यजित राय की फिल्मों की तरह इन कविताओं में दम तोड़ते आखिरी आदमी की जिजीविषा मुखर होती है। कहीं भी कोई आशा-किरण न होने, पुरुषार्थ की झलक न मिलने के बाद भी जिन्दगी है कि  जिए ही जाती है। चौर खुद्दी दिहाड़ी जैसे जमीन से जुड़े शब्द परिवेश की सटीक प्रतीति कराते हैं। जीवंत शब्द चित्र इन कविताओं को शब्दों का कोलाज बना देते हैं।
गोरखपुर उत्तर प्रदेश के निवासी अखिलेश जी हरकोर्ट बटलर टैक्नोलोजिक्ल इंस्टीटयूट कानपूर सेरासायानिक अभियांत्रिकी की शिक्षा प्राप्त कर वर्तमान में जुबिलेंट लाइफ साइंसेस लिमिटेड ज्योतिबा फुले नगर में उप प्रबंधक हैं। sampark sootr: JUBILANT LIFE SCIENCES LIMITED Bhartiagram,  
 
Distt.Jyotiba Phoolay Nagar, Gajraula - 244223   T: 7013 |
 
E-mail AkhileshSrivastava@jubl.com |Web Site : www.jubl.com

चीनी, दाल, चावल और गेहूँ


चीनी:
पिता जी चिल्लाकर
कर रहे हैं रामायण का पाठ
बेटा बिना खाए गया है स्कूल
छुटकी को दी गयी है नाम कटा
घर बिठाने की धमकी
माँ एकादसी के मौन व्रत में
बड़बड़ाते हुए कर रही है
बेगान-स्प्रे का छिड़काव
हुआ क्या है?
कुछ नहीं ...
कल रात
चिटियाँ ढो ले गयी हैं
चीनी के तीन दाने
रसोई से।
*
दाल :
बीमार बेटे को
सुबह का नुख्सा और
दोपहर का काढ़ा देने के बाद
वो घोषित कर ही रहा होता है
अपने को सफल पिता
कि
वैद्य का पर्चा डपट देता है उसे
सौ रुपये की दिहाड़ी में कहाँ से लायेगा
शाम को
दाल का पानी
*
चावल :
आध्यात्मिक भारत बन गया है
सोने की चिड़िया
और चुग रहा है मोती
पर छोटी गौरैया की
टूटे चोच से रिस रहा है खून
जूठी पर
साफ़ से ज्यादा साफ़
थालियों में आज भी
नहीं मिल पाया चाउर खुद्दी का
इक भी दाना
बेहतर होता
अम्मा की नज़र बचा
खा लेती
नाली के किनारे के
दो चार कीड़े।
*
गेहूँ:
तैतीस करोड़ देवताओ में
अधिकांश को मिल गए हैं
कमल व गुलाब के आसन
पर लक्ष्मी तो लक्ष्मी है
वो क्षीर सागर में लेटे
सृष्टिपालक विष्णु के
सिरहाने रखे
गेहूँ की बालियों पर
विराजमान हैं।
*
विदर्भ: कर्जे में कोंपल

मैं इक खेतिहर बाप हूँ
पर कहाँ से छीन कर लाऊँ रोटी.
सुना है कुछ लोग लौटे है कल चाँद से
रोटी जैसा दिखता था कमीना
पत्थर निकला.
बरसों हुए खेत में
बिना कर्जे की कोपल फूटे.
धरती चीर कर निकले
छोटे छोटे अंकुर
मेड पर साहूकार देखते ही
सहम जाते है.

अंकुर की पहली दो पत्तियाँ
सीना ताने आकाश से बाते नहीं करती
वो मिट्टी‌ की तरफ झुकी रहती है
मेरे कंधे की तरह.
हर पिछली पत्ती
नयी निकलने वाली कोंपल को
बता देती है पहले ही
तेरे ऊपर जिम्मेदारी ज्यादा है
ब्याज बढ़ चुका है पिछले दस दिनों में.
अपने बच्चे का बचपन बचा पाने की कोशिश में
हर किसान देखना चाहता है अपने पौधों को
समय से पहले बूढ़ा.
प्रधान के लहलहाते खेतों को देखकर
जाने क्या बतियाते रहते है मेरे पौधे
कल निराई करते समय सुनी थी मैंने
दो की बात
इस जलालत की जिंदगी से मौत अच्छी है
मेरे राम
दयालु राम सुनते हैं उनकी प्रार्थना
एक साल अगन बरसा ले लेते है अग्नि परीक्षा
दुसरे साल दे देते हैं जल समाधि अपने भक्तों को
अपनी तरह.

मेरा लंगोटिया यार बरखू किसान भी मेरे जैसा ही है
उसके यहाँ भी कोई नहीं मना करता बच्चों को
मिट्टी‌ खाने से.
विज्ञान औंधे मुँह गिरा है विदर्भ में
वहाँ मिट्टी‌ खाने से मर जाते है पेट के कीड़े.
कुँआ कूद कल मरा है बरखू
घर में सब डरे हैं कि
अपने घर में सब के सब जिन्दा है अब तक.
बीजों पर कर्जा
रेहन पर खेत
अब क्या बेचूँ?
मुँह में पल्लू ठूँस लेती है मेरी बीवी
मेरा सवाल सुनकर
रोने की आवाज़ सुनकर जाग गए बच्चे
तो फिर जपने लगेंगे
नारद की तरह रोटी-रोटी

अपने बालों को बिखराए
चेहरे पर खून के खरोंचे लिए
मुँह से फेन गिराती
पिपरा के पेड़ के नीचे
कल शाम से खिलखिला कर हँस रही है
मेरी घरतिया
दो माह के दुधमुँहे छुटके को
दो सौ में बेच कर आयी है डायन
आज मेरे चारों बच्चे भात और रोटी
दोंनों खा रहे है
पांचवा मैं खा लूँ गर
थोड़ा सा भात
पांच लोगों को श्राद्ध खिलाने की
पंडित जी की आज्ञा पूरी हो
मिल जाये छुटके को जीते जी मोक्ष.
*

बोध कथा: फर्क

बोध कथा:
फर्क

गीत : अटल बिहारी बाजपेयी

गीत : अटल बिहारी बाजपेयी

दोहा सलिला: नीति के दोहे संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला



नीति के दोहे
संजीव 'सलिल'
*
रखें काम से काम तो, कर पायें आराम .
व्यर्थ  घुसेड़ें नाक तो हो आराम हराम।।

खाली रहे दिमाग तो, बस जाता शैतान।
बेसिर-पैर विचार से, मन होता हैरान।।

फलता है विश्वास ही, शंका हरती बुद्धि।
कोशिश करिए अनवरत, 'सलिल' तभी हो शुद्धि।।

सकाराsत्मक साथ से, शुभ मिलता परिणाम।
नकाराsत्मक मित्रता, हो घातक अंजाम।।


दोष गैर के देखना, खुद को करता हीन।
अपने दोष सुधारता, जो- वह रहे न दीन।।

औसत बुद्धि करे सदा, घटनाओं पर सोच।
तेज दिमाग विकल्प को सोचे रखकर लोच।।

जो महान वह मौन रह, करता काम तमाम।
दोष गैर के देख कर, करे न काम तमाम।।

रचनात्मक-नैतिक रहे, चिंतन रखिए ध्यान।
आस और विश्वास ही, लेट नया विहान।।

मत संकल्प-विकल्प में, फँसिए आप हुजूर।
सही निशाना साधिए, आयें हाथ खजूर।।

बदकिस्मत हैं सोचकर, हों प्रिय नहीं हताश।
कोशिश सकती तोड़ हर, असफलता का पाश।।

***

पैरोडी: संजीव 'सलिल'

ई मित्रता पर पैरोडी:
संजीव 'सलिल'
*
(बतर्ज़: अजीब दास्तां है ये,
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम...)
*
हवाई दोस्ती है ये,
निभाई जाए किस तरह?
मिलें तो किस तरह मिलें-
मिली नहीं हो जब वज़ह?
हवाई दोस्ती है ये...
*
सवाल इससे कीजिए?
जवाब उससे लीजिए.
नहीं है जिनसे वास्ता-
उन्हीं पे आप रीझिए.
हवाई दोस्ती है ये...
*
जमीं से आसमां मिले,
कली बिना ही गुल खिले.
न जिसका अंत है कहीं-
शुरू हुए हैं सिलसिले.
हवाई दोस्ती है ये...
*
दुआ-सलाम कीजिए,
अनाम नाम लीजिए.
न पाइए न खोइए-
'सलिल' न न ख्वाब देखिए.
हवाई दोस्ती है ये...
*
Sanjiv Verma 'salil'
divyanarmada.blogspot.com
salil.sanjiv@gmail.com

सोमवार, 19 नवंबर 2012

अहिंदुओं द्वारा हिन्दू धर्म अपनाने पर कायस्थ समाज में प्रवेश: आचार्य संजीव 'सलिल'

अहिंदुओं को हिन्दू धर्म अपनाने पर कायस्थ समाज में प्रवेश  मिलेगा: आचार्य संजीव 'सलिल'

      जयपुर। '' विगत 500 साल से हिन्दू समाज की अबला स्त्रियों और बच्चियों को अहिंदुओं द्वारा बलात अथवा लोभ से वशीभूत कर अपनी आबादी बढ़ाने का उपकरण बना कर उपयोग किया गया है। कूपमंडूक सनातनधर्मी अपने आँख और कान बंद कर अपनी ही बहू-बेटियों को विधर्मी होता देख रहे हैं। जनगणना के आंकड़े अहिंदुओं की तेजी से बढ़ती तथा हिन्दुओं की तेजी से घटती जन्मदर का खतरनाक संकेत कर रहे हैं। अगले 50 वर्ष के अंदर हिन्दू जनसंख्या अल्पमत में होगी और तब बहुसंख्यक अहिंदू धर्म परिवर्तन को हथियार बनाकर असम और कश्मीर की तरह हिन्दुओं के अस्तित्व के लिए संकट बन जायेंगे। अतः समय की मांग है की सनातन धर्मी हिन्दू  गोत्र, अल्ल, आंकने, व्यवसाय, क्षेत्र, भाषा, भूषा, इष्ट, विचार धारा आदि के आधार पर बने वैवाहिक प्रतिबंधों को समाप्त कर युवाओं को मन पसंद जीवन साथी चुनने दें। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार सनातन धर्मियों में लड़कों की तुलना में लड़कियों की घटती संख्या को देखते हुए अंतर्वर्गीय, अंतरजातीय, अंतर्भाषिक, अंतर्देशीय, अंतर्धार्मिक विवाहों को सहर्ष स्वीकार ही न किया जाए अपितु प्रोत्साहित भी किया जाए तथा अहिंदुओं द्वारा हिन्दू धारण स्वीकारने पर उन्हें कायस्थ समाज का सदस्य स्वीकार किया जाए।''  राष्ट्रीय कायस्थ महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की आसंदी से जबलपुर से पधारे आचार्य संजीव 'सलिल' द्वारा प्रस्तुत विचारोत्तेजक उद्बोधन के पश्चात् उक्त प्रस्ताव सर्व सहमति से स्वीकार किया गया।

     इस दुरभिसंधि के प्रति सजग होते हुए मसिजीवी कायस्थ समाज ने शंखनाद किया है कि अहिंदू समाजों में गए सभी बंधुओं को वापिस आने पर हिन्दू कायस्थ समाज में ससम्मान ग्रहण किया जाएगा। कायस्थ समाज एसे सभी गैर सनातनियों तथा अंतरजातीय विवाह के कारण बहिष्कृत युवाओं को पुनः सनातन धर्म ग्रहण कराएगा और उनके मूल वर्ण (ब्राम्हण, क्षत्रीय, वैश्य या शूद्र) में उन्हें स्थान न मिले तो उन्हें कायस्थ समाज में सहभागिता देगा।

     इस प्रस्ताव के अनुसार कोई भी मनुष्य जो अन्य किसी भी धर्म से आकर सनातन धर्म अपनाना चाहता है उसे कायस्थ समाज अपनाएगा। इस हेतु आवेदक सपरिवार प्रतिदिन ध्यान-उपासना तथा योग करने, गायत्री मन्त्र का जाप करने, हर माह सत्य नारायण की कथा करने, सकल प्राणिमात्र में आत्मा के रूप में परमात्मा का अंश विद्यमान होने के कारण किसी भी आधार पर भेद-भाव न करने, देश तथा मानवता के प्रति निष्ठावान होने, पर्यावरण प्रदूषण कम करने, सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने तथा कायस्थ समाज की गतिविधियों में यथा शक्ति सहभागी होने का संकल्प पत्र सहित लिखित आवेदन प्रस्तुत कर चित्रगुप्त यज्ञ, गायत्री मन्त्र का जाप तथा सत्यनारायण की कथा कर चित्रगुप्त जी के चरणामृत का पान तथा बिरादरी के साथ सपरिवार भोज करेगा। उसे समस्त मानव मात्र को एक समान ईश्वरीय संतान मानने और धर्म, जाति, भाषा, भूषा, लिंग, क्षेत्र, देश आदि किसी भी अधर पर भेद-भाव न करने और हर एक को अपनी योग्यता वृद्धि का समान अवसर और योग्यता के अनुसार जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध कराने के सिद्धांत से लिखित सहमति के पश्चात् कायस्थ समाज में सम्मिलित किया जाएगा। 

वर्तमान में चाहने पर भी कोई विधर्मी हिन्दू नहीं बन पाता क्योंकि हिन्दू समाज का कोई वर्ग उन्हें नहीं अपनाता। अब बुद्धिजीवी कायस्थ समाज ने यह क्रांतिकारी कदम उठाकर सबके लिए सनातन धर्म का दरवाज़ा खोल दिया है।कूप मंडूक सनातन धर्मी अपने आँख और कान बंद कर अपनी ही बहू-बेटियों को विधर्मी होता देख रहे हैं। जयपुर में राष्ट्रीय कायस्थ महा परिषद् की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की आसंदी से मैंने इस कुचक्र को रोकने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसे सर्व सम्मति से स्वीकार किया गया। इस प्रस्ताव के अनुसार कोई भी मनुष्य जो अन्य कोई भी धर्म से आकर सनातन धर्म अपनाना चाहता है उसे कायस्थ समाज अपनाएगा तथा एक धार्मिक क्रिया संपन्न कराकर समस्त मानव मात्र को एक समान ईश्वरीय संतान मानने और धर्म, जाति, भाषा, भूषा, लिंग, क्षेत्र, देश आदि किसी भी अधर पर भेद-भाव न करने और हर एक को अपनी योग्यता वृद्धि का समान अवसर और योग्यता के अनुसार जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध कराने के सिद्धांत से लिखित सहमति के पश्चात् कायस्थ बनाया जाएगा। 

     वर्तमान में चाहने पर भी विधर्मी हिन्दू नहीं बन पाता क्योंकि हिन्दू समाज का कोई वर्ग उन्हें नहीं अपनाता। अब बुद्धिजीवी कायस्थ समाज ने यह क्रांतिकारी कदम उठाकर सबके लिए सनातन धर्म का दरवाज़ा खोल दिया है।

आरक्षण समाप्त हो - सचिन खरे
Sachin Khare की प्रोफाइल फोटो
     आरक्षण संविधान प्रदत्त समानाधिकार पर कुठाराघात कर हमारे देश की एकता तथा सामाजिक सद्भाव को दीमक की तरह खोखला करता जा रहा है।  जयपुर में राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में राष्ट्रीय कायस्थ मह्परिषद के राजस्थान प्रान्त के संयोजक सचिन खरे  ने इस कुचक्र को रोकने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसे सर्व सम्मति से स्वीकार किया गया। पारित प्रस्ताव के अनुसार हर व्यक्ति को योग्यता विकास के समान अवसर मिलना चाहिए तथा योग्यतानुसार आजीविका का समान अवसर मिलें। किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। आरक्षण अपरिहार्य माना जाने पर अनारक्षित वर्गों को अनारक्षित स्थान इस तरह आवंटित किये जाएँ कि अधिक जनसँख्या वृद्धि दर वाले वर्ग को कम तथा कम जनसँख्या वृद्धि वाले वर्ग को अधिक स्थान मिलें। आरक्षण प्राप्त वर्गों को भी जनसँख्या वृद्धि दर के व्युत्क्रमानुपात में आरक्षण प्रतिशत दिया जाए ताकि जन संख्या वृद्धि की मानसिकता हतोत्साहित हो।
*************
आचार्य संजीव 'सलिल'
salil.sanjiv@gmail.com
divyanarmada.blogspot.com
0761 2411131 / 9425183244

गजल: - कुँअर बेचैन

गजल:



- कुँअर बेचैन
बहर:
बह्रे मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ 

मफ्ऊलु
फायलातु
मफाईलु
फायलुन्
221
2121
1221
212

चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया

जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया

सूखा पुराना जख्म नए को जगह मिली
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया


आती न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया


आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया
नजरों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया


अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया
 

गम मिलते हैं तो और निखरती है शायरी
यह बात है तो सारे जमाने का शुक्रिया


अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर
यूँ मुझसे `कुँअर' रूठ के जाने का शुक्रिया


*******
इस बहर में ये अश’आर निम्नवत रूप से फिट होंगे। इसमें बहुत सी जगहों पर मात्राएँ गिराकर पढ़ना पड़ेगा।

चोटों पे \ चोट देते \ ही जाने का \ शुक्रिया
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२

पत्थर को \ बुत की शक्ल \ में लाने का \ शुक्रिया

२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२

जागा र \ हा तो मैंने \ नए काम \ कर लिए
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२
ऐ नींद \ आज तेरे \ न आने का \ शुक्रिया
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२

सूखा पु \ राना जख्म \ नए को ज \ गह मिली
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२
स्वागत \ नए का और \ पुराने का \ शुक्रिया
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२

आती न \ तुम तो क्यों मैं \ बनाता ये \ सीढ़ियाँ
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२
दीवारों, \ मेरी राह \ में आने का \ शुक्रिया
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२

आँसू-सा \ माँ की गोद में \ आकर सि \ मट गया
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२
नजरों से \ अपनी मुझको \ गिराने का \ शुक्रिया२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२

अब यह हु \ आ कि दुनिया \ ही लगती है \ मुझको घर
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२
यूँ मेरे \ घर में आग \ लगाने का \ शुक्रिया
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२
गम मिलते \ हैं तो और \ निखरती है \ शायरी
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२
यह बात \ है तो सारे \ जमाने का \ शुक्रिया
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२
अब मुझको \ आ गए हैं \ मनाने के \ सब हुनर
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२
यूँ मुझसे \ `कुँअर' रूठ \ के जाने का \ शुक्रिया
२२१ \ २१२१ \ १२२१ \ २१२

एक जगह बहर गड़बड़ हो रही है। ‘कुँअर’ पर, इसको २१ बाँधा गया है जबकि १२ बाँधना चाहिए था।

मात्रा गिराने के नियम देखने हेतु निम्नवत लिंक देख सकते हैं-
http://openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5170231:Topic:288813

अश’आर लिखने के पहले बहर निश्चित की जा सकती है जैसा कि तरही मुशायरों में होता है और लिखने के बाद शब्दों का हेर फेर करके उसको बहर में लाया भी जा सकता है। इन दोनों ही तरीकों का मिलाजुला प्रयोग किया जाता है।
______________________________________

शिशु गीत सलिला : 2 -संजीव 'सलिल'

शिशु गीत सलिला : 2
संजीव 'सलिल'
*
11. पापा-1




पापा लाड़ लड़ाते खूब,
जाते हम खुशियों में डूब।
उन्हें बना लेता घोड़ा-
हँसती, देख बाग़ की दूब।।
*

12. पापा-2


पापा चलना सिखलाते,
सारी दुनिया दिखलाते।
रोज बिठाकर कंधे पर-
सैर कराते मुस्काते।।

गलती हो जाए तो भी,
कभी नहीं खोना आपा।
सीख सुधारूँगा मैं ही-
गुस्सा मत होना पापा।।
*
13. भैया-1





मेरा भैया प्यारा है,
सारे जग से न्यारा है।
बहुत प्यार करता मुझको-
आँखों का वह तारा है।।
*
14. भैया-2



नटखट चंचल मेरा भैया,
लेती हूँ हँस रोज बलैया।
दूध नहीं इसको भाता-
कहता पीना है चैया।।
*
15. बहिन -1



बहिन गुणों की खान है,
वह प्रभु का वरदान है।
अनगिन खुशियाँ देती है-
वह हम सबकी जान है।।
*
16. बहिन -2



बहिन बहुत ही प्यारी है,
सब बच्चों से न्यारी है।
हँसती तो ऐसा लगता-
महक रही फुलवारी है।।
*
17. घर



पापा सूरज, माँ चंदा,
ध्यान सभी का धरते हैं।
मैं तारा, चाँदनी बहिन-
घर में जगमग करते हैं।।
*
18. बब्बा



बब्बा ले जाते बाज़ार,
दिलवाते टॉफी दो-चार।
पैसे नगद दिया करते-
कुछ भी लेते नहीं उधार।।

मम्मी-पापा डांटें तो
उन्हें लगा देते फटकार।
जैसे ही मैं रोता हूँ,
गोद उठा लेते पुचकार।।
*
19. दादी-1


दादी बनी सहेली हैं,
मेरे संग-संग खेली हैं।
उनके बिना अकेली मैं-
मुझ बिन निपट अकेली हैं।।
*
20. दादी-2




राम नाम जपतीं दादी,
रहती हैं बिलकुल सादी।
दूध पिलाती-पीती हैं-
खूब सुहाती है खादी।।

गोदी में लेतीं, लगतीं -
रेशम की कोमल गादी।
मुझको शहजादा कहतीं,
बहिना उनकी शहजादी।।
*

रविवार, 18 नवंबर 2012

नवगीत: जितनी आँखें उतने सपने... संजीव 'सलिल'

नवगीत:






जितनी आँखें उतने सपने...
संजीव 'सलिल'
*
जितनी आँखें
उतने सपने...
*
मैंने पाए कर-कमल,
तुमने पाए हाथ।
मेरा सर ऊंचा रहे,
झुके तुम्हारा माथ।।

प्राण-प्रिया तुमको कहा,
बना तुम्हारा नाथ।
हरजाई हो, चाहता-
जनम-जनम का साथ।।

बेहद बेढब
प्यारे नपने,
जितनी आँखें
उतने सपने...
*
घडियाली आँसू बहा,
करता हूँ संतोष।
अश्रु न तेरे पोछता,
अनदेखा कर रोष।।

टोटा टटके टकों का,
रीता मेरा कोष।
अपने मुँह से कर रहा,
अपना ही जयघोष।।

सोच कर्म-फल
लगता कंपने,
जितनी आँखें
उतने सपने...
*


श्रृद्धांजलि: हिंदुत्व-केसरी नहीं रहा... संजीव 'सलिल'

श्रृद्धांजलि: बाल ठाकरे



हिंदुत्व-केसरी नहीं रहा...
संजीव 'सलिल'
*
कर जोड़ो शीश झुकाओ रे!
महाराष्ट्र-केसरी नहीं रहा...
***
वह वह नेता जन-मन को प्रिय था,
वह मजदूरों में सक्रिय था।
उसके रहते कुछ कदम थमे-
आतंकवाद कुछ निष्क्रिय  था।।
अब सम्हलो, चेतो, जागो रे!
महाराष्ट्र-केसरी नहीं रहा,
हिंदुत्व-केसरी नहीं रहा...
***
वह शिव सेना का नायक था,
वह व्यंग्यचित्र-शर धारक था।
हर शब्द तीक्ष्ण शर मारक था-
चिर-कुंठित का उद्धारक था।।
था प्रखर-मुखर, सर्वोच्च शिखर-
कार्टून-केसरी नहीं रहा,
हिंदुत्व-केसरी नहीं रहा...
***
सरकारों का निर्माता था,
मुम्बई का भाग्य-विधाता था।
धर्मांध सियासत का अरि था-
मजहबी रोग का त्राता था।।
निज गौरव के प्रति जागरूक
इंसान-केसरी नहीं रहा,
हिंदुत्व केसरी नहीं रहा...
***
उसके इंगित पर शिव सैनिक ,
तूफानों से टकराते थे।
उसकी दहाड़ सुन दिल्लीपति-
संकुचाते थे, शर्माते थे।।
मुंबई का बेटा! भूमि-पुत्र!!
बलिदान-केसरी नहीं रहा,
हिंदुत्व केसरी नहीं रहा...
***
उसने सत्ता को ठुकराया,
पद-मोह न बाँध उसे पाया।
उन चुरुट दबाये अधरों का-
चीता सा दिल था सरमाया।।
दुर्बल काया, दृढ़ अंतर्मन-
अरमान-केसरी नहीं रहा,
हिंदुत्व केसरी नहीं रहा...
***

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शनिवार, 17 नवंबर 2012

दोहा सलिला: चाँद हँसुलिया... संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
चाँद हँसुलिया...



संजीव 'सलिल'

*
चाँद हँसुलिया पहनकर, निशा लग रही हूर.
तारे रूप निहारते, आह भरें लंगूर..
*
नभ मजूर ने हाथ में, चाँद हँसुलिया थाम..
काटी तारों की फसल, लेकर प्रभु का नाम..
*
निशा-निमंत्रण चाँद के, नाम देख हो क्रुद्ध.
बनी चाँदनी हँसुलिया, भीत चन्द्रमा बुद्ध..
*
चाँद हँसुलिया बना तो, बनी चाँदनी धार.
पुरा-पुरातन प्रीत पर, प्रणयी पुनि बलिहार..
*
चाँद-हँसुलिया पहनकर, बन्नो लगे कमाल.
बन्ना दीवाना हुआ, धड़कन करे धमाल..
*
चाँद-हँसुलिया गुम हुई, जीन्स मेघ सी देख।
दिखा रही है कामिनी, काया की हर रेख।।
*
देख हँसुलिया हो गयी, नज़रें तीक्ष्ण कटार।
कौन सके अनुमान अब, तेल-तेल की धार??
*
चाँद-हँसुलिया देखकर, पवन गा रहा छंद।
ज्यों मधुबाला को लिए, झूमे देवानंद।।
*
पहन हँसुलिया निशा ने, किया नयन-शर-वार।
छिदा गगन-उर क्षितिज का, रंग हुआ रतनार।।
*



पैरोडी: 'गा बैजू गा ...' ~ 'आतिश'

पैरोडी:
'गा बैजू गा ...'

 (रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ .. 'मेहदी हसन')
~ 'आतिश'
 

आतिश
*
बे-सुर ही सही, सर ही दुखाने के लिए गा...
आ छत पे मेरी, कऊए उड़ाने के लिए गा ...
बे-सुर ही सही ... |


तू लय से जो लुढके, तो फटे-ढोल सा गा ले ... (२)
कानों पे मेरे बिजली गिराने के लिए गा...
बे-सुर ही सही ... |


है ताल से नाराज़, तो हकला के चला ले... (२)
तबले के मुक़द्दर को मिटाने के लिए गा ...
बे-सुर ही सही ... | 


गर बीन ना बज पाए तेरी भैंसों के आगे ... (२)
सोते हुए गधों को जगाने के लिए गा ...
बे-सुर ही सही, सर ही दुखाने के लिए गा ...

 
बे-सुर ही सही ... |
**************

कविता: राम ने सिया को त्याग दिया ?' -एक भ्रान्ति ! शिखा कौशिक 'विख्यात'

कविता:  

राम ने सिया को त्याग  दिया ?' -एक  भ्रान्ति !


शिखा कौशिक 'विख्यात'


  Jai Shri Ram
[google se sabhar ]




  सदैव से इस प्रसंग पर मन में ये विचार  आते रहे हैं कि-क्या आर्य कुल नारी भगवती माता सीता को भी कोई त्याग सकता है ...वो भी नारी सम्मान के रक्षक श्री राम ?मेरे मन में जो विचार आये व् तर्क की कसौटी पर खरे उतरे उन्हें  इस रचना के माध्यम से मैंने प्रकट करने का छोटा सा प्रयास किया है -


हे  प्रिय  ! सुनो  इन  महलो  में
अब और  नहीं  मैं  रह  सकती  ;
महारानी  पद पर रह आसीन  
जन जन का क्षोभ  न  सह  सकती .

एक गुप्तचरी को भेजा था 
वो  समाचार ये लाई है 
''सीता '' स्वीकार   नहीं जन को 
घर रावण  के रह  आई   है .

जन जन का मत  स्पष्ट  है ये 
चहुँ और हो  रही  चर्चा है ;
सुनकर ह्रदय छलनी होता है 
पर सत्य तो सत्य होता है .

मर्यादा जिसने लांघी  है 
महारानी कैसे हो सकती ?
फिर जहाँ उपस्थित  प्रजा न हो 
क्या अग्नि परीक्षा हो सकती ?

हे प्रभु ! प्रजा के इस  मत ने 
मुझको भावुक  कर  डाला है ;
मैं आहत हूँ ;अति विचलित हूँ 
मुश्किल से मन  संभाला है .

पर प्रजातंत्र में प्रभु मेरे
 हम प्रजा के सेवक  होते  हैं ;
प्रजा हित में प्राण त्याग की 
शपथ भी तो हम लेते हैं .

महारानी पद से मुक्त करें 
हे प्रभु ! आपसे विनती है ;
हो मर्यादा के प्रहरी तुम 
मेरी होती कहाँ गिनती है ?

अश्रुमय  नयनों  से  प्रभु  ने 
तब सीता-वदन  निहारा था ;
था विद्रोही भाव युक्त 
जो मुख सुकोमल प्यारा था . 

गंभीर स्वर में कहा प्रभु ने 
'सीते !हमको सब ज्ञात है 
पर तुम हो शुद्ध ह्रदय नारी 
निर्मल तुम्हारा गात है .

ये  भूल  प्रिया  कैसे  तुमको 
बिन अपराध करू दण्डित ?
मैं राजा हूँ पर पति भी हूँ 
सोचो तुम ही क्षण भर किंचित . 

राजा के रूप में न्याय करू 
तब भी तुम पर आक्षेप नहीं ;
एक पति रूप में विश्वास मुझे 
निर्णय का मेरे संक्षेप यही .

सीता ने देखा प्रभु अधीर 
कोई त्रुटि नहीं ये कर बैठें ;
''राजा का धर्म एक और भी है ''
बोली सीता सीधे सीधे .

'हे प्रभु !मेरे जिस क्षण तुमने 
राजा का पद स्वीकार था ;
पुत्र-पति का धर्म भूल 
प्रजा -हित लक्ष्य तुम्हारा था .

मेरे कारण विचलित न हो 
न निंदा के ही पात्र बनें ;
है धर्म 'लोकरंजन 'इस क्षण 
तत्काल इसे अब पूर्ण करें .

महारानी के साथ साथ 
मैं आर्य कुल की नारी हूँ ;
इस प्रसंग से आहत हूँ 
क्या अपनाम की मैं अधिकारी हूँ ?

प्रमाणित कुछ नहीं करना है 
अध्याय सिया का बंद करें ;
प्रभु ! राजसिंहासन उसका है 
जिसको प्रजा स्वयं पसंद करे .

है विश्वास अटल मुझ पर '
हे प्रिय आपकी बड़ी दया  ;
ये कहकर राम के चरणों में 
सीता ने अपना शीश धरा .

होकर विह्वल श्री राम झुके 
सीता को तुरंत  उठाया था ;
है कठोर ये राज-धर्म जो 
क्रूर घड़ी ये लाया था .

सीता को लाकर ह्रदय समीप 
श्री राम दृढ   हो ये बोले;
है प्रेम शाश्वत प्रिया हमें 
भला कौन तराजू ये तोले ? 

मैंने नारी सम्मान हित 
रावण कुल का संहार किया  ;
कैसे सह सकता हूँ बोलो 
अपमानित हो मेरी प्राणप्रिया ?

दृढ निश्चय कर राज धर्म का 
पालन आज मैं करता हूँ ;
हे प्राणप्रिया !हो ह्रदयहीन  
तेरी इच्छा पूरी  करता हूँ .

होकर करबद्ध सिया ने तब 
श्रीराम को मौन प्रणाम किया ;
सब सुख-समृद्धि त्याग सिया ने 
नारी गरिमा को मान दिया .

मध्यरात्रि  लखन   के  संग 
त्याग अयोध्या गयी सिया ;
प्रजा में भ्रान्ति ये  फ़ैल गयी 
''श्री राम ने सिया को त्याग दिया ''!!! 
 
******                                           

गीत: दीप, ऐसे जलें... संजीव 'सलिल'

गीत:
दीप, ऐसे जलें...
संजीव 'सलिल'
 
दीप के पर्व पर जब जलें-
दीप, ऐसे जलें...
स्वेद माटी से हँसकर मिले,
पंक में बन कमल शत खिले।
अंत अंतर का अंतर करे-
शेष होंगे न शिकवे-गिले।।

नयन में स्वप्न नित नव खिलें-
 

दीप, ऐसे जलें... 
  
श्रम का अभिषेक करिए सदा,
नींव मजबूत होगी तभी।
सिर्फ सिक्के नहीं लक्ष्य हों-
साध्य पावन वरेंगे सभी।।

इंद्र के भोग, निज कर मलें-

दीप, ऐसे जलें...


जानकी जान की 
 खैर हो,
वनगमन-वनगमन ही न हो।
चीर को चीर पायें ना कर-
पीर बेपीर गायन न हो।।

दिल 'सलिल' से न बेदिल मिलें-

दीप, ऐसे जलें...

हा... हा... हा... ha... ha... ha...

हा... हा... हा... ha... ha... ha...

Girls & Boys After Marriage

कविता : फसल दीप्ति शर्मा / संजीव 'सलिल'








रचना  : 
फसल 

Deepti Sharma की प्रोफाइल फोटो 



 दीप्ति शर्मा
*
वर्षों पहले बोयी और
आँसूओं से सींची फसल
अब बड़ी हो गयी है
नहीं जानती मैं!!
कैसे काट पाऊँगी उसे
वो तो डटकर खड़ी हो गयी है
आज सबसे बड़ी हो गयी है
कुछ गुरूर है उसको
मुझे झकझोर देने का
मेरे सपनों को तोड़ देने का
अपने अहं से इतरा और
गुनगुना रही वो
अब खड़ी हो गयी है
आज सबसे बड़ी हो गयी है ।
वो पक जायेगी एक दिन
और बालियाँ भी आयेंगी
फिर भी क्या वो मुझे
इसी तरह चिढायेगी
और मुस्कुराकर इठलायेगी
या हालातों से टूट जायेगी
पर जानती हूँ एक ना एक दिन
वो सूख जायेगी
पर खुद ब खुद

*******
प्रति रचना:
फसल 

 संजीव 'सलिल' 
 *
वर्षों पहले
आँसुओं ने बोई
संवेदना की फसल
अंकुरित, पल्लवित,
पुष्पित हुई।

मनाता हूँ देव से
हर विपदाग्रस्त के साथ
संवेदना बनकर
फलित होती रहे।
*
कुछ कमजोर पलों में
आशा के कुंठित होनेपर
आँसुओं ने बोई
निराशा की फसल।  

मनाता हूँ देव से
पाँव के छालों को
हौसला बख्शे,
राह के काँटों से 
गले मिल हंस लें।।
*

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

शिशु गीत सलिला : 1 संजीव 'सलिल'

शिशु गीत सलिला : 1
संजीव 'सलिल'
*
1.श्री गणेश




श्री गणेश की बोलो जय,
पाठ पढ़ो होकर निर्भय।
अगर सफलता पाना है-
काम करो होकर तन्मय।।
*
2. सरस्वती




माँ सरस्वती देतीं ज्ञान,
ललित कलाओं की हैं खान।
जो जमकर अभ्यास करे-
वही सफल हो, पा वरदान।। 
*
3. भगवान




सुन्दर लगते हैं भगवान,
सब करते उनका गुणगान।
जो करता जी भर मेहनत-
उसको देते हैं वरदान।।
*
4. देवी



देवी माँ जैसी लगती,
काम न लेकिन कुछ करती।
भोग लगा हम खा जाते-
कभी नहीं गुस्सा करती।।
*
5. धरती माता
धरती सबकी माता है,
सबका इससे नाता है।
जगकर सुबह प्रणाम करो-
फिर उठ बाकी काम करो।।
*
6. भारत माता



सजा शीश पर मुकुट हिमालय,
नदियाँ जिसकी करधन।
सागर चरण पखारे निश-दिन-
भारत माता पावन।
*
7. हिंदी माता


हिंदी भाषा माता है,
इससे सबका नाता है।
सरल, सहज मन भाती है-
जो पढ़ता मुस्काता है।।
*
8. गौ माता



देती दूध हमें गौ माता,
घास-फूस खाती है।
बछड़े बैल बनें हल खीचें
खेती हो पाती है।
गोबर से कीड़े मरते हैं,
मूत्र रोग हरता है,
अंग-अंग उपयोगी
आता काम नहीं फिकता है।
गौ माता को कर प्रणाम
सुख पाता है इंसान।
बन गोपाल चराते थे गौ
धरती पर भगवान।।
*
9. माँ -1


माँ ममता की मूरत है,
देवी जैसी सूरत है।
थपकी देती, गाती है,
हँसकर गले लगाती है।
लोरी रोज सुनाती है,
सबसे ज्यादा भाती है।।
*

10. माँ -2


माँ हम सबको प्यार करे,
सब पर जान निसार करे।
माँ बिन घर सूना लगता-
हर पल सबका ध्यान धरे।।
*