लघुकथा की आत्म कथा
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मैं लघुकथा हूँ।
मेरे दो तत्व 'लघुता' और 'कथा' हैं।
लघुता क्या है?
लघुता का अर्थ वामन में विराट होना है, बिंदु में सिंधु होना है, कंकर में शंकर होना है। तभी तो कहा गया है -
प्रभुता से लघुता भली, प्रभुता से प्रभु दूर।
चीटी लै सक्कर चली, हाथी के सिर धूर।।
मेरी आकारिक लघुता में विराट कथा तत्व का समावेशन आवश्यक है। कथा की विराटता से आशय उसकी मर्म बेधकता से है।
आकारिक लघुता के लिए शब्दों की उपयुक्तता, सटीकता सार्थकता और मितव्ययिता होना ही चाहिए।
कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक भावोद्रेक लघुकथा का वैशिष्ट्य है।
भाव का उद्रेक मर्म को छूता है। मर्म बेधकता लघुकथा का दूसरा लक्षण है।
मर्म-बेधन के लिए रसोद्रेक होना चाहिए। अब तक लघुकथा में अधिकांशत: विडंबना और विसंगति जनित करुण रस का प्राधान्य रहा है। यह एकांगीपन आधुनिक लघुकथा में नहीं होना चाहिए। रस जितना प्रगाढ़ होगा, लघुकथा उतना अधिक असर छोड़ेगी। लघुकथा रसलीन होकर रसनिधि और रसखान बन सके तो भुलाई नहीं जा सकेगी।
रस की एक बूँद ही 'तरस' को 'सरस' में बदल देती है। नीरस लघुकथा बिना रस के गन्ने की तरह है जिसे नष्ट कर दिया जाता है। रस की अधिकता 'सरस' में 'सड़न' पैदा कर देती है। इसलिए लघुकथा में रस टोकरी भर गुलाब फूल से प्राप्त बूँद मात्र इत्र की तरह हो।
कथा क्या है?
कथा वह जो कही जाए।
क्या, क्यों, कैसे, किसके द्वारा, किसके लिए और कब कही जाए?
इन प्रश्नों का उत्तर ही लघुकथा में कथा तत्व का निर्धारण कर सकता है। इन प्रश्नों का उत्तर लघुकथाकार को अपने भीतर ही खोजना होता है। हर लघुकथाकार के लिए इन प्रश्नों के उत्तर अन्यों से भिन्न होंगे। लघुकथाकार किसी अन्य के उत्तरों को आदर्श माँ लेगा तो उसकी लघुकथा किसी कारखाने में बने उत्पाद की तरह अमौलिक अर्थात नकल प्रतीत होगी।
शेष फिर
संजीव
जीवन सलिला में घटना सूर्य को देख, विचार हथेली पर कलम की अँगुली से एक ठोकर मारें। फैलते प्रकाश को समेटे लघुकथा जीवन में प्रकाश बिखेरती है। सकारात्मक चिंतन परक लघुकथाएँ लिखिए, नकारात्मकता से बचिए।
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