सॉनेट
जय गणेश
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जय गणेश! घर आइए,
ऋद्धि-सिद्धि उर विराजित,
कर जीवन-पथ प्रकाशित,
रुचिकर मोदक खाइए।
भजन झूमकर गाइए,
शोभित गणपति नाथ हे!,
चरणों में नत माथ है,
भक्त प्रसादी पाइए।
नर-नारी हैं विनत सब,
हरें विघ्न विघ्नेश्वर,
सुख-समृद्धि बढ़ती रहे।
मंजिल तह बढ़ सकें अब,
कृपया करें करुणेश्वर,
मति नित नव गढ़ती रहे।
२९.१२.२०२३
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हाइकु
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समय ग्रंथ
एक बार फिर से
पलटा पन्ना।
*
हरेक वर्ष
आता है यह दिन
मनाओ हर्ष।
*
हर पल हो
सत-शिव-सुंदर
सुख दे साल।
*
हैलो डिअर!
विदाउट फिअर
हो न्यू इयर।
*
डूबता सूर्य
इक्कीस है बाईस
ऊगता सूर्य।
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सॉनेट
शीत
प्रीत शीत से कीजिए, गर्मदिली के संग।
रीत-नीत हँस निभाएँ, खूब सेंकिए धूप।
जनसंख्या मत बढ़ाएँ, उतरेगा झट रंग।।
मँहगाई छू रही है, नभ फीका कर रूप।।
सूरज बब्बा पीत पड़, छिपा रहे निज फेस।
बादल कोरोना करे, सब जनगण को त्रस्त।
ट्रस्ट न उस पर कीजिए, लगा रहा है रेस।।
मस्त रहे जो हो रहे, युवा-बाल भी पस्त।।
दिल जलता है अगर तो, जलने दे ले ताप।
द्वार बंद रख, चुनावी ठंड न पाए पैठ।
दिलवर कंबल भा रहा, प्रियतम मत दे शाप।।
मान दिलरुबा रजाई, पहलू में छिप बैठ।।
रैली-मीटिंग भूल जा, नेता हैं बेकाम।
ओमिक्रान यदि हो गया, कोई न आए काम।।
२९-१२-२०२१
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त्रिपदियाँ, तसलीस, माहिया
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नोटा मन भाया है,
क्यों कमल चुनें बोलो?
अब नाथ सुहाया है।
*
तुम मंदिर का पत्ता
हो बार-बार चलते
प्रभु को भी तुम छलते।
*
छप्पन इंची छाती
बिन आमंत्रण जाकर
बेइज्जत हो आती।
*
राफेल खरीदोगे,
बिन कीमत बतलाये
करनी भी भोगोगे।
*
पंद्रह लखिया किस्सा
भूले हो कह जुमला
अब तो न चले घिस्सा।
*
वादे मत बिसराना,
तुम हारो या जीतो-
ठेंगा मत दिखलाना।
*
जनता भी सयानी है,
नेता यदि चतुर तो
यान उनकी नानी है।
*
कर सेवा का वादा,
सत्ता-खातिर लड़ते-
झूठा है हर दावा।
*
पप्पू का था ठप्पा,
कोशिश रंग लाई है
निकला सबका बप्पा।
*
औंधे मुँह गर्व गिरा,
जुमला कह वादों को
नज़रों से आज गिरा।
*
रचना न चुराएँ हम,
लिखकर मौलिक रचना
निज नाम कमाएँ हम।
*
गागर में सागर सी
क्षणिका लघु, अर्थ बड़े-
ब्रज के नटनागर सी।
*
मन ने मन से मिलकर
उन्मन हो कुछ न कहा-
धीरज का बाँध ढहा।
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है किसका कौन सगा,
खुद से खुद ने पूछा?
उत्तर जो नेह-पगा।
*
तन से तन जब रूठा,
मन, मन ही मन रोया-
सुनकर झूठी-झूठा।
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तन्मय होकर तन ने,
मन-मृण्मय जान कहा-
क्षण भंगुर है दुनिया।
*
कार्यशाला:
दोहा - कुण्डलिया
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नवल वर्ष इतना करो, हम सब पर उपकार।
रोटी कपड़ा गेह पर, हो सबका अधिकार।। -सरस्वती कुमारी, ईटानगर
हो सबका अधिकार, कि वह कर्तव्य कर सके।
हिंदी से कर प्यार सत्य का पंथ वर सके।।
चमड़ी देखो नहीं, गुणों से प्यार सब करो।
नवल वर्ष उपकार, हम सब पर इतना करो।। -संजीव, जबलपुर
२९-१२-२०१८
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उपनिषद कहते हैं-
यक्ष प्रश्न १. चित्रगुप्त जी केवल कायस्थों के देवता कैसे हैं?
'काया स्थिते स: कायस्थ:' अर्थात जब वह (निराकार परमात्मा) काया में (आत्मा रूप में) स्थित होता है तो कायस्थ कहलाता है।
यक्ष प्रश्न २. चित्रगुप्त जी सभी जातियों के देवता क्यों नहीं हैं?
चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानम सर्व देहिनाम' अर्थात सभी देहधारियों में आत्मा रूप में बसे चित्रगुप्त (चित्र आकार से बनता है, चित्र गुप्त है अर्थात नहीं है क्योंकि परमात्मा निराकार है) को सबसे पहले प्रणाम।
इसीलिए सशक्त और समृद्ध होने पर भी वैदिक काल से १०० वर्ष पूर्व तक चित्रगुप्त जी के मंदिर, मूर्ति, पुराण, कथा, आरती, भजन, व्रत आदि नहीं बनाये गए। स्वयं को चित्रगुप्त का वारिस माननेवाला समुदाय गणेश, शिव, शक्ति, विष्णु, बुद्ध, महावीर, आर्य समाज, युगनिर्माण योजना, साई बाबा आदि का अनुयायी होता रहा। कण-कण में भगवान् और कंकर कंकर में शंकर के आदि सत्य को स्वीकार कर देश और समाज के प्रति समर्पित रहा। अब अन्यों की नकल पर ये भी मंदिर, मूर्ति और जन्मना जातीयता के शिकार क्यों हो रहे हैं?
यक्ष प्रश्न ३. जात का अर्थ क्या है?
जब कोई भद्र दिखनेवाला मनुष्य गिरी हुई हरकत करे तो कहते हैं 'जात दिखा गया। बुंदेली कहावत 'जात दिखा गया' का अर्थ है अपनी सचाई (असलियत) दिखा गया।
जात कर्म अर्थात जन्म देने कई क्रिया (गर्भ में छिपी सचाई सामने आना), जातक = जन्म लेनेवाला शिशु, जाया = जन्म दिया, जच्चा = जन्मदात्री, जाना = बच्चा देना, जगतजननी का एक नाम 'जाया' (जिसने सबको जन्म दिया) भी है।
यक्ष प्रश्न ४. क्या जात और जाति समानार्थी हैं?
जाति अर्थात एक जैसे गुण-धर्म के लोग, जिनमें समानता हो ऐसा समूह। जात और जाति का अर्थ लगभग समान है।
मुरारी गुप्ता - स्वभाव को भी जात कहा गया ।
इन्द्र देव सिंह - बंधुवर! भारत में जाति कभी नहीं रही, सिर्फ जात ही रहा ... प्राचीन साहित्य में जाति शब्द का प्रयोग आज के जाति के समानार्थी नहीं है। 'कास्ट' शब्द का पहली बार प्रयोग पुर्तगालियो ने किया ..
संजय वर्मा - संगीत में भी जाति का वर्णन है... राग की जाति ... ताल की जाति
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कार्यशाला- छंद बहर का मूल है- २.
उर्दू की १९ बहरें २ समूहों में वर्गीकृत की गयी हैं।
१. मुफरद बहरें-
इनमें एक ही अरकान या लय-खण्ड की पुनरावृत्ति होती है।
इनके ७ प्रकार (बहरे-हज़ज सालिम, बहरे-ऱज़ज सालिम, बहरे-रमल सालिम, बहरे-कामिल, बहरे-वाफिर, बहरे-मुतक़ारिब तथा बहरे-मुतदारिक) हैं।
२. मुरक्कब बहरें-
इनमें एकाधिक अरकान या लय-खण्ड मिश्रित होते हैं।
इनके १२ प्रकार (बहरे-मनसिरह, बहरे-मुक्तज़िब, बहरे-मुज़ारे, बहरे-मुजतस, बहरे-तवील, बहरे-मदीद, बहरे-बसीत, बहरे-सरीअ, बहरे-ख़फ़ीफ़, बहरे-जदीद, बहरे-क़रीब तथा बहरे-मुशाकिल) हैं।
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ख. बहरे-मनसिरह
बहरे-मनसिरह मुसम्मन मतवी मक़सूफ़-
शायरों ने इस बहर का प्रयोग बहुत कम किया है। इसके अरकान 'मुफ़तइलुन फ़ाइलुन मुफ़तइलुन फ़ाइलुन' (मात्राभार ११११२ २१२ ११११२ २१२) हैं।
यह १६ वर्णीय अथाष्टिजातीय छंद है जिसमें ८-८ पर यति तथा पदांत में रगण (२१२) का विधान है।
यह २२ मात्रिक महारौद्र जातीय छंद है जिसमें ११-११ मात्राओं पर यति तथा पदांत में २१२ है।
उदाहरण-
१.
जब-जब जो जोड़ते, तब-तब वो छोड़ते
कर-कर के साथ हैं, पग-पग को मोड़ते
कर कुछ तू साधना, कर कुछ आराधना
जुड़-जुड़ जाता वही, जिस-जिस को तोड़ते
२.
निकट हमें देखना, सजन सुखी लेखना
सजग रहो हो कहीं, सलवट की रेख ना
उर्दू व्याकरण के अनुसार गुरु के स्थान पर २ लघु या दो लघु के स्थान पर गुरु मात्रा का प्रयोग करने पर छंद का वार्णिक प्रकार बदल जाता है जबकि मात्रिक प्रकार तभी बदलता है जब यह सुविधा पदांत में ली गयी हो। हिंदी पिंगल-नियम यह छूट नहीं देते। उर्दू का एक उदाहरण देखें-
१.
यार को क़ा/सिद मिरे/जाके अगर/देखना
मेरी तरफ/से भी तू/ एक नज़र/देखना
(सन्दर्भ ग़ज़ल रदीफ़-काफ़िया और व्याकरण, डॉ. कृष्ण कुमार 'बेदिल')
२९-१२-२०१६
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लघुकथा:
करनी-भरनी
*
अभियांत्रिकी महाविद्यालय में परीक्षा का पर्यवेक्षण करते हुए शौचालयों में पुस्तकों के पृष्ठ देखकर मन विचलित होने लगा। अपना विद्यार्थी काल में पुस्तकों पर आवरण चढ़ाना, मँहगी पुस्तकों की प्रति तैयार कर पढ़ना, पुस्तकों में पहचान पर्ची रखना ताकि पन्ने न मोड़ना पड़े, वरिष्ठ छात्रों से आधी कीमत पर पुस्तकें खरीदना, पढ़ाई कर लेने पर अगले साल कनिष्ठ छात्रों को आधी कीमत पर बेच अगले साल की पुस्तकें खरीदना, पुस्तकालय में बैठकर नोट्स बनाना, आजीवन पुस्तकों में सरस्वती का वास मानकर खोलने के पूर्व नमन करना, धोखे से पैर लग जाए तो खुद से अपराध हुआ मानकर क्षमाप्रार्थना करना आदि याद हो आया।
नयी खरीदी पुस्तकों के पन्ने बेरहमी से फाड़ना, उन्हें शौच पात्रों में फेंक देना, पैरों तले रौंदना क्या यही आधुनिकता और प्रगतिशीलता है?
रंगे हाथों पकड़ेजानेवालों की जुबां पर गिड़गड़ाने के शब्द पर आँखों में कहीं पछतावे की झलक नहीं देखकर स्तब्ध हूँ। प्राध्यापकों और प्राचार्य से चर्चा में उन्हें इसकी अनदेखी करते देखकर कुछ कहते नहीं बनता। उनके अनुसार वे रोकें या पकड़ें तो उन्हें जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों या गुंडों से धमकी भरे संदेशों और विद्यार्थियों के दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। तब कोई साथ नहीं देता। किसी तरह परीक्षा समाप्त हो तो जान बचे। उपाधि पा भी लें तो क्या, न ज्ञान होगा न आजीविका मिलेगी, जैसा कर रहे हैं वैसा ही भरेंगे।
२९-१२-२०१५
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समस्यापूर्ति:
अना की चादर उतार फेंके, मुहब्बतों के चलन में आये
मुक्तिका
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मिले झुकाये पिया निगाहें, लगा कि चन्दा गहन में आये
बसी बसायी लुटी नगरिया, अमावसी तम सहन में आये
उठी निगाहें गिरी बिजुरिया, न चाक हो दिल तो फिर करे क्या?
मिली नज़रिया छुरी चल गयी, सजन सनम के नयन में आये
समा नज़र में गयी है जबसे, हसीन सूरत करार गम है
पलक किनारे खुले रह गये, करूँ बंद तो सपन में आये
गया दिलरुबा बजा दिलरुबा, न राग जानूँ न रागिनी ही
कहूँ किस तरह विरह न भये, लगन लगी कब लगन में आये
जुदा किया क्यों नहीं बताये?, जुदा रखा ना गले लगाये
खुद न चाहे कभी खुदाया, भुला तेरा दर सदन में आये
छिपा न पाये कली बेकली, भ्रमर गीत जब चमन में गाये
एना की चादर उतार फेंके, मुहब्बतों के चलन में आये
अनहद छेड़ूँ अलस्सुबह, कर लिए मंजीरा सबद सुनाऊँ
'सलिल'-तरंगें कलकल प्रवाहित, मनहर छवि हर-भजन में आये
२९-१२-२०१३
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