१६ वर्णिक अथाष्टि जातीय छंद
१. मदनललिता     
विधान - म भ न म न ग। यति - ४-६-६।  
खेतों में जो; श्रम कर रहे; वे ही लड़ रहे। 
बोते हैं जो; फसल अब तो; वे ही डर रहे।।
सारे वादे; बिसर मुकरे; नेता कह रहे- 
जो बोले थे; महज जुमले; मैया! छल रहे।।
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२. नील     
विधान - ५ भ + ग।  
मैं तुम; हों हम; तो फिर क्या गम; खूब मिले। 
मीत बनें हम; प्रीत करें हम; भूल गिले।।
हार वरें जब; जीत मिले तब; हार गले- 
दीप जले जब; द्वार सजे तब; प्यार खिले।।
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३. मणिकल्पलता     
विधान - न ज र म भ ग। यति - १०-६।  
मिल-जल दीप दीपमाला; हो भू पे पुजते । 
मिल-जुल साथ-साथ सारे; अंधेरा हरते।।
जब तक तेल और बाती; हैं साथी उनके- 
तब तक वे प्रकाश देते; मुस्काते मिलते ।।
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४. अचलधृति    
विधान - ५ न + ल।  
अमल विमल सलिल लहर प्रवहित। 
अगिन सुमन जलज कमल मुकुलित।।
रसिक भ्रमर सरसिज पर मर-मिट- 
निरख-निरख शतदल-दल प्रमुदित।।
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५. प्रवरललिता   
विधान - य म न स र ग।   यति - ६-१०।  
तिरंगा ऊँचा है; हरदम रखें खूब ऊँचा। 
न होने देना है; मिलकर इसे यार नीचा।।
यही काशी-काबा; ब्रज-रज यही है अयोध्या - 
इन्हें सींचें खूं से; हम सब न सूखे बगीचा।।
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६. चंचला  
विधान -र ज र ज र ल।
है शिकार आज भी किसान जुल्म का हुजूर। 
है मजूर भूख का शिकार आज भी हुजूर।।
दूरदर्शनी हुआ सियासती प्रचार आज- 
दे रहा फिजूल में चुनौतियाँ इन्हें हुजूर।।
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७. रतिलेखा  
विधान -स न न न स ग। यति ११-५। 
अब तो जग कर विजय; हँस वनिताएँ। 
जय मंज़िल कर रुक न; बढ़ यश पाएँ।।
नर से बढ़कर सफल; अब यह होंगी-
गिरि-पर्वत कर फतह; ध्वज फहराएँ।।
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