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गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

दोहा ग़ज़ल अंगिका, सॉनेट

सॉनेट
जागरण
जागरण का समय जागो
बहुत सोये अब न सोना।
भुज भरे आलस्य त्यागो
नवाशा के बीज बोना।।

नमन कर रख कदम भू पर
फेफड़ों में पवन भर ले।
आचमन कर सलिल का फिर
गगन-रवि को नमन कर ले।।

मुड़ न पीछे, देख आगे
स्वप्न कुछ साकार कर ले।
दैव भी वरदान माँगे
जगत का उद्धार कर दे।।

भगत के बस में रहे वह
ईश जिसको जग रहा कह।।
२१-४-२०२२
•••
दोहा ग़ज़ल (अंगिका):
(अंगिका बिहार के अंग जनपद की भाषा, हिन्दी का एक लोक भाषिक रूप)

काल बुलैले केकरs, होतै कौन हलाल?
मौन अराधे दैव कै, ऐतै प्रातः काल..

मौज मनैतै रात-दिन, होलै की कंगाल.
साथ न आवै छाँह भी, आगे कौन हवाल?.

एक-एक के खींचतै, बाल- पकड़ लै खाल.
नीन नै आवै रात भर, पलकें करैं सवाल..
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