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मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

गीत, सॉनेट,मुक्तक,मुक्तिका,छंद प्लवंगम्,हाइकु ,भूकंप नेपाल, नवगीत



सॉनेट 
ओ तू
ओ तू कितना सदय-निठुर है?
बिन माँगे सब कुछ दे देता।
बिना बताए ले भी लेता
अपना-गैर न, कृपा-कहर है।।

मिलकर मिले न, जुदा न होता
सब करते हैं तेरी बातें।
मंदिर-मस्जिद में शह-मातें
फसल काटता, फिर फिर बोता।।

ओ तू क्या है? कभी बता दे?
ओ तू मुझसे मुझे मिला दे।
ओ तू मुझको राह दिखा दे।।

मुझे नचा खुश है क्या ओ तू?
भेज-बुला खुश है क्या ओ तू?
तुझमें मैं, मुझमें क्या ओ तू??
२६-४-२०२२
•••
मुक्तक और मुक्तिका
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल
*
हिंदी काव्य में वे समान पदभार के वे छंद जो अपने आप में पूर्ण हों अर्थात जिनका अर्थ उनके पहले या बाद की पंक्तियों से संबद्ध न हो उन्हें मुक्तक छंद कहा गया है। इस अर्थ में दोहा, रोला, सोरठा, उल्लाला, कुण्डलिया, घनाक्षरी, सवैये आदि मुक्तक छंद हैं।
कालांतर में चौपदी या चतुष्पदी (चार पंक्ति की काव्य रचना) को मुक्तक कहने का चलन हो गया। इनके पदान्तता के आधार पर विविध प्रकार हैं। १. चारों पंक्तियों का समान पदांत -
हर संकट को जीत
विहँस गाइए गीत
कभी न कम हो प्रीत
बनिए सच्चे मीत (ग्यारह मात्रिक पद)
२. पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति का समान तुकांत -
घर के भीतर ही रहें
खुद ही सुन खुद ही कहें
हाथ बटाएँ काम में
अफवाहों में मत बहें (तेरह मात्रिक पद)
३. पहली-दूसरी पंक्ति का एक तुकांत, तीसरी-चौथी पंक्ति का भिन्न तुकांत -
चूं-चूं करती है गौरैया
सबको भाती है गौरैया
चुन-चुनकर दाना खाती है
निकट गए तो उड़ जाती है (सोलह मात्रिक)
४. पहली-तीसरी-चौथी पंक्ति का समान तुकांत -
भारत की जयकार करें
दुश्मन की छाती दहले
देश एक स्वीकार करें
ऐक्य भाव साकार करें (चौदह मात्रिक)
५. पहली-दूसरी-तीसरी पंक्ति का समान तुकांत -
भारत माँ के बच्चे
झूठ न बोलें सच्चे
नहीं अकल के कच्चे
बैरी को मारेंगे (बारह मात्रिक)
६. दूसरी, तीसरी, चौथी पंक्ति की समान तुक -
नेता जी आश्वासन फेंक
हर चुनाव में जाते जीत
धोखा देना इनकी रीत
नहीं किसी के हैं ये मीत (पंद्रह मात्रिक)
७. पहली-चौथी पंक्ति की एक तुक दूसरी-तीसरी पंक्ति की दूसरी तुक -
रात रानी खिली
मोगरा हँस दिया
बाग़ में ले दिया
आ चमेली मिली (दस मात्रिक)
८. पहली-तीसरी पंक्ति की एक तुक, दुसरी-चौथी पंक्ति की अन्य तुक -
होली के रंग
कान्हा पे डाल
राधा के संग
गोपियाँ निहाल (नौ मात्रिक)
*
इनमें से दूसरे प्रकार के मुक्तक अधिक लोकप्रिय हुए हैं ।
घर के भीतर ही रहें
खुद ही सुन खुद ही कहें
हाथ बटाएँ काम में
अफवाहों में मत बहें
यह तेरह मात्रिक मुक्तक है।
इसमें तीसरी-चौथी पंक्ति की तरह पंक्तियाँ जोड़ें -
घर के भीतर ही रहें
खुद ही सुन खुद ही कहें
हाथ बटाएँ काम में
अफवाहों में मत बहें
प्रगति देखकर अन्य की
द्वेष अग्नि में मत दहें
पीर पराई बाँट लें
अपनी चुप होकर सहें
याद प्रीत की ह्रदय में
अपने हरदम ही तहें
यह मुक्तिका हो गयी। इस शिल्प की कुछ रचनाओं को ग़ज़ल, गीतिका, सजल, तेवरी आदि भी कहा जाता है।
*
संपर्क ९४२५१८३२४४
***
हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल
छंद सलिला:
प्लवंगम् छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक लोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणारंभ गुरु, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), यति ८-१३।
लक्षण छंद:
प्लवंगम् में / रगण हो सदा अन्त में
आठ - तेरह न / भूलें यति हो अन्त में
आरम्भ करे / गुरु- लय न कभी छोड़िये
जीत लें सभी / मुश्किलें मुँह न मोड़िए
उदाहरण:
१. मुग्ध उषा का / सूरज करे सिंगार है
भाल सिंदूरी / हुआ लाल अंगार है
माँ वसुधा नभ / पिता-ह्रदय बलिहार है
बंधु नाचता / पवन लुटाता प्यार है
२. राधा-राधा / जपते प्रति पल श्याम ज़ू
सीता को उर / धरते प्रति पल राम ज़ू
शंकरजी के / उर में उमा विराजतीं
ब्रम्ह - शारदा / भव सागर से तारतीं
३. दादी -नानी / कथा-कहानी गुमे कहाँ?
नाती-पोतों / बिन बूढ़ा मन रमें कहाँ?
चंदा मामा / गुमा- शेष अब मून है
चैट-ऐप में फँसा बाल-मन सून है
*********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
२६-४-२०१४
***
नेपाल में भूकंपजनित महाविनाश के पश्चात रचित
हाइकु सलिला:
संजीव
.
सागर माथा
नत हुआ आज फिर
देख विनाश.
.
झुक गया है
गर्वित एवरेस्ट
खोखली नीव
.
मनमानी से
मानव पराजित
मिटे निर्माण
.
अब भी चेतो
न करो छेड़छाड़
प्रकृति संग
.
न काटो वृक्ष
मत खोदो पहाड़
कम हो नाश
.
न हो हताश
करें नव निर्माण
हाथ मिलाएं.
.
पोंछने अश्रु
पीड़ितों के चलिए
न छोड़ें कमी
***
नेपाल में भूकंपीय महाविनाश के पश्चात् रचित
नवगीत:
संजीव
.
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
वसुधा मैया भईं कुपित
डोल गईं चट्टानें.
किसमें बूता
धरती कब
काँपेगी अनुमाने?
देख-देख भूडोल
चकित क्यों?
सीखें रहना साथ.
अनसमझा भूकम्प न हो अब
मानवता का काल.
पृथ्वी पर भूचाल
हुए, हो रहे, सदा होएंगे.
हम जीना सीखेंगे या
हो नष्ट बिलख रोएँगे?
जीवन शैली गलत हमारी
करे प्रकृति से बैर.
रहें सुरक्षित पशु-पक्षी, तरु
नहीं हमारी खैर.
जैसी करनी
वैसी भरनी
फूट रहा है माथ.
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
टैक्टानिक हलचल को समझें
हटें-मिलें भू-प्लेटें.
ऊर्जा विपुल
मुक्त हो फैले
भवन तोड़, भू मेटें.
रहे लचीला
तरु ना टूटे
अड़ियल भवन चटकता.
नींव न जो
मजबूत रखे
वह जीवन-शैली खोती.
उठी अकेली जो
ऊँची मीनार
भग्न हो रोती.
वन हरिया दें, रुके भूस्खलन
कम हो तभी विनाश।
बंधन हो मजबूत, न ढीले
रहें हमारे पाश.
छूट न पायें
कसकर थामें
'सलिल' हाथ में हाथ
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
नवगीत:
संजीव
.
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
पर्वत, घाटी या मैदान
सभी जगह मानव हैरान
क्रंदन-रुदन न रुकता है
जागा क्या कोई शैतान?
विधना हमसे क्यों रूठा?
क्या करुणासागर झूठा?
किया भरोसा क्या नाहक
पल भर में ऐसे टूटा?
डँसते सर्पों से सवाल
बार-बार फुँफकार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
कभी नहीं मारे भूकंप
कबि नहीं हांरे भूकंप
एक प्राकृतिक घटना है
दोष न स्वीकारे भूकंप
दोषपूर्ण निर्माण किये
मानव ने खुद प्राण दिए
वन काटे, पर्वत खोदे
खुद ही खुद के प्राण लिये
प्रकृति अनुकूल जिओ
मात्र एक उपचार
.
नींव कूटकर खूब भरो
हर कोना मजबूत करो
अलग न कोई भाग रहे
एकरूपता सदा धरो
जड़ मत हो घबराहट से
बिन सोचे ही मत दौड़ो
द्वार-पलंग नीचे छिपकर
राह काल की भी मोड़ो
फैलता अफवाह जो
उसको दो फटकार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
बिजली-अग्नि बुझाओ तुरत
मिले चिकित्सा करो जुगत
दीवारों से लग मत सो
रहो खुले में, वरो सुगत
तोड़ो हर कमजोर भवन
मलबा तनिक न रहे अगन
बैठो जा मैदानों में
हिम्मत देने करो जतन
दूर करो सब दूरियाँ
गले लगा दो प्यार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
*
२६-४-२०२१५
हरदोई में मिल गये, हरि हर दोई संग।
रमा उमा ने कर दिया जब दोनों को तंग।।
जब दोनों को तंग, याद तब विधि की आई।
जान बचायें दैव, हमें दें रक्षा का वर।
विधि बोले शारदा पड़ी हैं पीछे हरिहर।।
***

गीत
हे समय के देवता!
*
हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...
*
श्वास जब तक चल रही है, आस जब तक पल रही है
अमावस का चीरकर तम,प्राण-बाती जल रही है.
तब तलक रवि-शशि सदृश हम, रौशनी दें तनिक जग को.
ठोकरों से पग न हारें-करें ज्योतित नित्य मग को.
दे सको हारे मनुज को, विजय का अरमान दो तुम.
हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...
*
नयन में आँसू न आये, हुलसकर हर कंठ गाये.
कंटकों से भरे पथ पर-चरण पग धर भेंट आये.
समर्पण विश्वास निष्ठांसिर उठाकर जी सके अब.
मनुज हँसकर गरल लेकर-शम्भु-शिववत पी सकें अब.
दे सको हर अधर को मुस्कान दो, मधुगान दो तुम..
हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...
*
सत्य-शिव को पा सकें हम, गीत सुन्दर गा सकें हम.
सत्-चित्-आनंद घन बन, दर्द-दुःख पर छा सकें हम.
काल का कुछ भय न व्यापे, अभय दो प्रभु!, सब वयों को.
प्रलय में भी जयी हों-संकल्प दो हम मृण्मयों को.
दे सको पुरुषार्थ को परमार्थ की पहचान दो तुम.
हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...
२६-४-२०१०
***

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