चौपाई चर्चा
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भारत में शायद ही कोई हिन्दीभाषी होगा जिसे चौपाई छंद की जानकारी न हो। रामचरित मानस में प्रयुक्त मुख्य छंद चौपाई ही है। शिव चालीसा, हनुमान चालीसा आदि धार्मिक रचनाओं में चौपाई का प्रयोग सर्वाधिक हुआ है किन्तु इनमें प्राय: बोलियों (अवधी, बुन्देली, बृज, भोजपुरी आदि ) का प्रयोग किया गया है।
रचना विधान-
यह ६४ मात्रिक छंद है। चौपाई के चार चरण (पाए) होने के कारण इसे चौपाई नाम मिला है. यह एक सममात्रिक द्विपदिक चतुश्चरणिक छंद है। इसके चार चरणों में मात्राओं की संख्या निश्चित तथा समान १६ - १६ होना अनिवार्य है। प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं जिनकी अंतिम मात्राएँ समान (दोनों में लघु-लघु या दोनों में गुरु) होती हैं किन्तु गुरु लघु नहीं होती। । चौपाई के प्रत्येक चरण में १६ तथा प्रत्येक पंक्ति में ३२ मात्राएँ होती हैं। चौपाई के चारों चरणों की समान मात्राएँ हों तो नाद सौंदर्य में वृद्धि होती है किन्तु यह अनिवार्य नहीं है। चौपाई के पद के दो चरण विषय की दृष्टि से आपस में जुड़े होते हैं किन्तु हर पंक्ति अपने में स्वतंत्र हो सकती है। चौपाई के पठन या गायन के समय हर चरण के बाद अल्प विराम लिया जाता है जिसे यति कहते हैं।अत:, किसी चरण का अंतिम शब्द अगले चरण में नहीं जाना चाहिए अथवा दो चरणों की संधि में शब्द युग्म इस तरह न हो कि आधा शब्द एक चरण में और आधा शब्द दूसरे चरण में आए। चौपाी के चरणान्त में गुरु-लघु मात्राएँ वर्जित हैं अर्थात चरण के अंत में जगण (ISI) एवं तगण (SSI) नहीं होने चाहिए किन्तु नगण वर्जित नहीं है। चौपाई के चरणान्त में गुरु गुरु, लघु लघु गुरु, गुरु लघु लघु या लघु लघु लघु लघु ही होता है।
मात्रा बाँट - चौपाई में चार चौकल हों तो उसे पादाकुलक कहा जाता है। द्विक्ल या चौकल के बाद सम मात्रिक कल द्विपद या चौकल रखा जाता है। विषम मात्रिक कल त्रिकल आदि होने पर पुन: विषम मात्रिक कल लेकर उन्हें सममात्रिक कर लिया जाता है। विषम कल के तुरंत बाद सम कल नहीं रखा जाता।
उदाहरण:
१. जय गिरिजापति दीनदयाला | -प्रथम चरण
१ १ १ १ २ १ १ २ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ
सदा करत संतत प्रतिपाला || -द्वितीय चरण
१ २ १ १ १ २ १ १ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ
भाल चंद्रमा सोहत नीके | - तृतीय चरण
२ १ २ १ २ २ १ १ २ २ = १६ मात्राएँ
कानन कुंडल नाग फनीके || -चतुर्थ चरण (शिव चालीसा से)
२ ११ २ ११ २ १ १२ २
२. ज१ य१ ह१ नु१ मा२ न१ ज्ञा२ न१ गु१ न१ सा२ ग१ र१ = १६ मात्रा
ज१ य१ क१ पी२ स१ ति१ हुं१ लो२ क१ उ१ जा२ ग१ र१ = १६ मात्रा
रा२ म१ दू२ त१ अ१ तु१ लि१ त१ ब१ ल१ धा२ मा२ = १६ मात्रा
अं२ ज१ नि१ पु२ त्र१ प१ व१ न१ सु१ त१ ना२ मा२ = १६ मात्रा - (हनुमान चालीसा से)
३. कितने अच्छे लगते हो तुम। बिना जगाये जगते हो तुम।।
नहीं किसी को ठगते हो तुम। सदा प्रेम में पगते हो तुम।।
दाना-चुग्गा मंगते हो तुम। चूँ-चूँ-चूँ-चूँ चुगते हो तुम।।
आलस कैसे तजते हो तुम? क्या प्रभु को भी भजते हो तुम?
चिड़िया माँ पा नचते हो तुम। बिल्ली से डर बचते हो तुम।।
क्या माला भी जपते हो तुम? शीत लगे तो कँपते हो तुम?
सुना न मैंने हँसते हो तुम । चूजे भाई! रुचते हो तुम।।
(चौपाई छन्द का प्रयोग कर 'चूजे' विषय पर मुक्तिका (हिंदी गजल) में बाल गीत - रचनाकार संजीव वर्मा 'सलिल')
४ .भुवन भास्कर बहुत दुलारा। मुख मंडल है प्यारा-प्यारा।।
सुबह-सुबह जब जगते हो तुम। कितने अच्छे लगते हो तुम।। - रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
५ . हर युग के इतिहास ने कहा। भारत का ध्वज उच्च ही रहा।।
सोने की चिड़िया कहलाया। सदा लुटेरों के मन भाया।। -छोटू भाई चतुर्वेदी
६ .मुझको जग में लानेवाले। दुनिया अजब दिखानेवाले।
उँगली थाम चलानेवाले। अच्छा बुरा बतानेवाले।। - शेखर चतुर्वेदी
७ . श्याम वर्ण, माथे पर टोपी। नाचत रुन-झुन रुन-झुन गोपी।।
हरित वस्त्र आभूषण पूरा। ज्यों लड्डू पर छिटका बूरा।। - मृत्युंजय
८ . निर्निमेष तुमको निहारती। विरह –निशा तुमको पुकारती।।
मेरी प्रणय –कथा है कोरी। तुम चन्दा, मैं एक चकोरी।। - मयंक अवस्थी
९. मौसम के हाथों दुत्कारे। पतझड़ के कष्टों के मारे।।
सुमन हृदय के जब मुरझाये। तुम वसंत बनकर प्रिय आये।। - रविकांत पाण्डे
१० . जितना मुझको तरसाओगे। उतना निकट मुझे पाओगे।
तुम में 'मैं', मुझमें 'तुम', जानो। मुझसे 'तुम', तुमसे 'मैं', मानो।। - राणा प्रताप सिंह
११. एक दिवस आँगन में मेरे। उतरे दो कलहंस सबेरे।
कितने सुन्दर कितने भोले। सारे आँगन में वो डोले। - शेषधर तिवारी
१२ . नन्हें मुन्हें हाथों से जब । छूते हो मेरा तन मन तब॥
मुझको बेसुध करते हो तुम। कितने अच्छे लगते हो तुम।। - धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन'
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