मुक्तिका
जय बोल रहे
*
हिंदीप्रेमी कलमकार मिल कविता की जय बोल रहे
दिल से दिल के बीच बनाकर पुल नित नव रस घोल रहे
सुख-दुख धूप-छाँव सम आते-जाते, पूछ सवाल रहे
शब्द-पुजारी क्या तुम खुद को कर्म तुला में तोल रहे?
को विद? है विद्वान कौन? यह कोविद उन्निस पूछ रहा
काहे को रोना?, कोरोना कहे न बाकी झोल रहे
खुद ही खुद का कर खयाल, घर में रह अमन-चैन से तू
सुरा हेतु मत दौड़ लगा तू, नहीं ढोल में पोल रहे
अनुशासित परउपकारी बन, कर सहायता निर्बल की
सज नहीं जो रहा 'सलिल' उसका तो बिस्तर गोल रहे
जय बोल रहे
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हिंदीप्रेमी कलमकार मिल कविता की जय बोल रहे
दिल से दिल के बीच बनाकर पुल नित नव रस घोल रहे
सुख-दुख धूप-छाँव सम आते-जाते, पूछ सवाल रहे
शब्द-पुजारी क्या तुम खुद को कर्म तुला में तोल रहे?
को विद? है विद्वान कौन? यह कोविद उन्निस पूछ रहा
काहे को रोना?, कोरोना कहे न बाकी झोल रहे
खुद ही खुद का कर खयाल, घर में रह अमन-चैन से तू
सुरा हेतु मत दौड़ लगा तू, नहीं ढोल में पोल रहे
अनुशासित परउपकारी बन, कर सहायता निर्बल की
सज नहीं जो रहा 'सलिल' उसका तो बिस्तर गोल रहे
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