मुक्तिका :
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अंधे देख रहे हैं, गूंगे बोल रहे
पोल उजालों की अँधियारे खोल रहे
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अंधे देख रहे हैं, गूंगे बोल रहे
पोल उजालों की अँधियारे खोल रहे
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लोभतंत्र की जय-जयकार करेगा जो
निष्ठाओं का उसके निकट न मोल रहे
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बाँध बनाती है संसद संयम के जो
नहीं देखती छिपे नींव में होल रहे
*
हैं विपक्ष जो धरती को चौकोर कहें
सत्ता दल कह रहा अगर भू गोल रहे
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कौन सियासत में नियमों की बात करे?
कुछ भी कहिए, पर बातों में झोल रहे
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निष्ठाओं का उसके निकट न मोल रहे
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बाँध बनाती है संसद संयम के जो
नहीं देखती छिपे नींव में होल रहे
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हैं विपक्ष जो धरती को चौकोर कहें
सत्ता दल कह रहा अगर भू गोल रहे
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कौन सियासत में नियमों की बात करे?
कुछ भी कहिए, पर बातों में झोल रहे
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