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शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

navgeet- raajmarga

नवगीत
राजमार्ग
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राजमार्ग होने
जनपथ ही मुजरा करवाता
गलियों से.
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आंदोलित होती जो राहें
उसको बैरी सम खलती हैं.
सहयोगी होती जो बाँहें
कुचली जाकर कर मलती हैं.
देहरी-मोरी जय न बोलतीं 
दाल वक्ष पर ज्यों दलती हैं
कुंठित-मिथ्या
आश्वासन दे, करवा फ़िकवाता
कुलियों से.
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पर्व मनाता है नुचवाकर
जुही-चमेली को माली से.
परदेसी का मन बहलाता
नथ-बेंदा मँगवा गाँवों से.
एड़ी में जो फ़टी बिमाई
दिखे न, मेंहदी ला बागों से
तितली ला
नारी-विमर्श के जुमले कहलाता
मिसरी दे.
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बेच खेत-बाखर भूखे हो
मजबूरी में मजदूरी कर,
तन बेचो, मन कुचलो पल-पल
अंकशायिनी अंगूरी कर.
भूल किताबों में गुलाब रख
रात नशीली मगरूरी कर
नेता अफ़सर
सेठ त्रयी का मन बहला
नित निज ललियों से.
...
संजीव
८-१२-२०१७ 

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